पंजाब में बिजली की सियासत आम उपभोक्ताओं पर भारी पड़ी, बढ़ता गया सब्सिडी का बोझ

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RGAन्यूज़

पंजाब में बढ़ती बिजली सब्सिडी आम उपभोक्‍ताओं पर भारी पड़ रही है। (सांकेतिक फोटो)

पंजाब में अगले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर राजनीतिक दल बिजली को सियासी मुद्दा बनाने में जुट गए हैं और मुफ्त बिजली देने को लेकर बढ़-चढ़ कर घोषणाएं कर रहे हैं। राज्‍य में बिजली पर सब्सिडी का भार लगातार बढ़ रहा है और इसका बोझ आम उपभोक्‍ताओं पर पड़ रहा है।

चंडीगढ़। पंजाब में अगले साल 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर राजनीति दल बिजली को मुद्दा बनाने में जुटे हुए हैं। सियासी दल मु्फ्त बिजली देने के बढ़-चढ़ कर दावे कर रहे हैं। इससे पहले भी राज्‍य में बिजली सब्सिडी का खेल चलता रहा है और इसका खामियाजा आम उपभोक्‍ताओं को भुगतना पड़ रहा है। बिजली सब्सिडी बढ़ने के साथ ही आम उपभोक्‍ताओं पर इसका भार बढ़ता जा रहा है।

मुफ्त बिजली देने के बढ़-चढ़ कर दावे करने की राजनीतिक दलों में होड़ लगी

दरअसल अगले विधानसभा चुनाव के लिए राजनीतिक पार्टियों को ड्रग्स का मुद्दा भा नहीं रहा है। पिछले चुनाव में ड्रग्स के मुद्दे को काठ की हांडी बनाकर राजनीतिक पार्टियों खूब चढ़ाया लेकिन इस बार यह गायब है। उसकी जगह महंगी बिजली के मुद्दे ने ले लिया है। यहर कारण है कि सभी पार्टियां, बिजली सस्ती कैसी हो इसके कुछ उपाय सोचने की बजाए लोगों को मुफ्तखोरी पर लगाने में व्यस्त हैं।

5 फीसदी से शुरू हुई इलेक्ट्रिसिटी ड्यूटी 18 फीसदी तक पहुंच गई है

एक दूसरे से बढ़कर मुफ्त बिजली देने की घोषणाएं की जा रही हैं। उधर, आर्थिक नीतियों के माहिरों का कहना है कि लोगों की यह बड़ी भूल है कि राजनीतिक पार्टियां के मुफ्तखोरी के बहकावे बस वोट पाने के लिए कर रही हैं। वास्तविकता यह है कि जब जब मुफ्त बिजली देने के दायरे बढ़ाए गए तब तब सरकार ने सब्सिडी का बढ़ता बोझ उपभोक्ताओं पर ही लादा है। इसका सबसे ज्यादा नुकसान शहरी वर्ग के छोटे दुकानदारों को हो रहा है।

इस समय बिजली उपभोक्ताओं पर 18 फीसदी इलेक्ट्रिसिटी ड्यूटी है जिसमें से पांच फीसदी इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड लगाया है। इसके अलावा दो फीसदी म्युनिस्पल कार्पोरेशन टैक्स भी लगा हुआ है। बिजली सब्सिडी के रूप में खजाने से दी जाने वाली राशि को उपभोक्ताओं से जुटाने का तरीका सरकार ने 2004 में उस समय इजाद किया जब विधानसभा में एक बिल लाकर सरकार ने 10 पैसे प्रति यूनिट लगा दिया।

बाद में इसे अकाली भाजपा सरकार ने चुपके से बढ़ाकर 5 फीसदी कर दिया ताकि जब भी बिजली की दरें बढ़ें , यह ड्यूटी अपने आप बढ़ जाए। फिर धीरे धीरे करके इसे 18 फीसदी कर दिया है। साल 2018 में ही सरकार ने दो फीसदी बढ़ाकर कुल इलेक्ट्रिसिटी बीस फीसदी कर दी लेकिन इसे अलग अलग हिस्सों में बांट दिया

अब 13 फीसदी इलेक्ट्रिसिटी ड्यूटी है। 5 फीसदी इंफ्रास्ट्रक्चर सैस और 2 फीसदी म्युनिस्पल कार्पोरेशन टैक्स में बांट दिया है। मान लीजिए घरेलू सेक्टर की बिजली का रेट सात रुपए यूनिट है तो इस पर 1.40 पैसे प्रति यूनिट इलेक्ट्रिसिटी ड्यूटी, इंफ्रास्ट्रक्चर सैस और म्यूनिस्पल कार्पोरेशन टैक्स लगे हुए हैं।

दरअसल विभिन्न वर्गों को दी जा रही 10668 करोड़ रुपये की सब्सिडी में से 4000 करोड़ रुपये सरकार इसी टैक्स से जुटाती है। यानी लोगों से ही लेकर लोगों को सब्सिडी दी जा रही है। वोट बैंक के चलते कोई भी पॉलिटिकल पार्टी का नेता इस पर नहीं बोलता।

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