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RGA न्यूज़
अनजानी जिंदगियों को बचाने के लिए खतरे में डाली जान
कोविड काल में एक तरफ जहां वायरस आम लोगों के साथ इलाज में लगे चिकित्सकों को भी संक्रमित कर अपना शिकार बना रहा था। वहीं चिकित्सकों का जज्बा कुछ ऐसा था कि खुद की जान खतरे में डालकर उन्होंने संक्रमित मरीजों को नई जिंदगी दी।
बरेली, कोविड काल में एक तरफ जहां वायरस आम लोगों के साथ इलाज में लगे चिकित्सकों को भी संक्रमित कर अपना शिकार बना रहा था। वहीं चिकित्सकों का जज्बा कुछ ऐसा था कि खुद की जान खतरे में डालकर उन्होंने हजारों संक्रमित मरीजों को नई जिंदगी दी। ये जिजीविशा भी तब जबकि एक के बाद एक कर कई डाक्टर कोरोना का शिकार हो चुके थे। आइएमए अध्यक्ष डा.मनोज कुमार अग्रवाल के मुताबिक डाक्टर्स डे पर इस बार भी पिछले साल की तरह कोविड-19 ही थीम है। वैसे तो किसी चिकित्सक विशेष को इस दिन याद करना ही काफी नहीं है। फिर भी डाक्टर्स के जज्बे को दिखाने वाले कुछ उदाहरण...
डर तो था लेकिन जिम्मेदारी ज्यादा थी
एसआरएमएस में गायनी विभाग की एचओडी डॉ.शशिबाला आर्य के नेतृत्व में कोविड काल के दौरान करीब सौ कोविड संक्रमित महिलाओं का सिजेरियन आपरेशन कर कठिन हालात में भी नई जिंदगी का स्वागत किया। वह बताती हैं कि हमारे गायनी विभाग में कोई भी केस सामान्य नहीं आता। सारी इमरजेंसी सेवाएं ही होती हैं। महिला और गर्भ में बच्चे की हालात को देखते हुए डिलीवरी किसी भी वक्त करानी पड़ती है। ज्यादातर में उनकी कोविड जांच रिपोर्ट का इंतजार करने का भी वक्त नहीं मिलता। आपरेशन के साथ मरीजों को अटैंड जरूरी होता है।
लेकिन पिछले साल ऐसे हालात नहीं थे, कोविड का बेहद खौफ था। मां- बाप और बच्चे साथ में होने से हम सभी डरे हुए थे। लेकिन ट्रेनिंग और जज्बे से डर के आगे जीत पाई। पहली ही ड्यूटी में एक संक्रमित महिला का आपरेशन किया। इसके बाद कोई डर नहीं लगा। तब से विभाग के दूसरे डाक्टर सहयोगियों की तरह हर छह हफ्ते में कोविड ड्यूटी कर रही हैं। पिछले वर्ष से अब तक विभाग में करीब सौ कोविड पाजिटिव महिलाओं का सिजेरियन आपरेशन किया है। इतना जरूर कहूंगी कि यह वक्त अब लौट कर न आए। सभी के सहयोग से हमने कोविड संक्रमण को कम करने में सफलता पाई है लेकिन अब भी सावधान रहने की जरूरत है कोविड कम हुआ है खत्म नहीं।
मरीजों से दोस्ती कर निकाला संक्रमण का डर
श्रीराम मूर्ति स्मारक मेडिकल कालेज के क्रिटिकल केयर यूनिट के हेड डा. ललित बीते डेढ़ साल से लगातार कोविड मरीजों का इलाज कर रहे हैं। इस दौरान तकरीबन दो से तीन हजार वह लोग जो कोविड से गंभीर रूप से ग्रसित थे, उन्हें उपचार दिया और ठीक कर घर भेजा। डा. ललित बताते हैं कि कोविड में मरीज का सबसे बड़ा दुश्मन उसका डर था। इसे समझने के बाद मरीजों से दोस्ती या कहें अपनत्व का अहसास कराकर उनके भीतर से डर निकाला। कई बार उनकी पत्नी डा. गीता जो एनस्थीसिया विभाग की इंचार्ज हैं, वह भी उनके साथ रहीं। इस दौरान बच्चों से दूरी भी बनानी पड़ी। कहते हैं कि तीसरी लहर आने की आशंका से इन्कार नहीं किया जा सकता। इसलिए सबसे जरूरी है कि एहतियात रखें और लक्षण दिखने पर लापरवाही बिल्कुल न करें।
डॉ.वागीश और डॉ.अतुल की हिम्मत भी लाजवाब
कोरोना संक्रमण के दौर में फेहरिस्त में दो और नाम भी शुमार हैं। 300 बेड कोविड अस्पताल के प्रभारी डॉ.वागीश वैश्य उन डाक्टरों में शुमार रहे, जिन्होंने कोरोना संक्रमण के दौर में शुरूआती केस भी देखे। बतौर डाक्टर 300 बेड कोविड अस्पताल में लगातार मरीजों के इलाज में शामिल रहे। बावजूद इसके कोरोना संक्रमण से बचे रहे। हालांकि प्रशासकीय जिम्मेदारी के दौरान एक बार हार्ट संबंधी दिक्कत भी आई, लेकिन आपरेशन और जरूरी आराम के बाद फिर से कोविड मरीजों के इलाज में जुट गए। इसी तरह डॉ.अतुल अग्रवाल सीधे तौर पर भले ही कोरोना संक्रमण के इलाज में नहीं जुड़े। लेकिन वैक्सीनेशन से जुड़े जरूरी सुझाव और किसी गलती पर विशेषज्ञ के तौर पर उन्होंने अपनी राय सरकार तक समय-समय पर पहुंचाई। वह फिलहाल अकेले निजी डाक्टर हैं, जो जिले में वैक्सीनेशन कर रहे हैं।