बदरका गाँव में पूजे जाते हैं चंद्रशेखर आजाद

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देश की आन बान शान और देश को आजाद कराने के लिए जंगे आजादी में कूदने वाले चंद्रशेखर आजाद को बदरका के लोग पूजते हैं। जिला मुख्यालय से 8 किलोमीटर दूर बदरका गांव में उन की भव्य प्रतिमा और आजाद पार्क लोगों के लिए आस्था का प्रतीक है। जन्मस्थान के भेदभाव से परे होकर यहां के लोग चंद्रशेखर आजाद के सम्मान में भव्य मेले का आयोजन भी करते हैं। आजाद के जन्मदिन पर जहां पूरे इलाके में लोग खुशियां मनाते हैं वहीं उनके बलिदान दिवस पर श्रद्धा सुमन अर्पित कर गर्व से कहते हैं कि वह आजाद के गांव के रहने वाले हैं। साहित्य और वीरों के नाम से जानी जाने वाली बैसवाड़ा की धरती आज भी चंद्रशेखर आजाद के बलिदान को नहीं भुला पाती है। 

साधारण परिवार में हुआ था जन्म
जनपद के बदरका गांव के साधारण परिवार में  मां जगरानी देवी की कोख से 7 जनवरी 1906 को जन्मे अमर शहीद चन्द्र शेखर आजाद बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। पिता सीताराम तिवारी ने बाल्यावस्था में इन्हें संस्कृत की शिक्षा दीक्षा लेने के लिए बनारस भेजा।यह दौर था वर्ष 1921 का जब देश मे असहयोग आंदोलन प्रारम्भ हो चुका था इसमें शामिल होने वालों को बर्तानिया हुकूमत द्वारा गिरफ्तार किया जा रहा था आजाद जी का मन पढ़ाई लिखाई में न लगकर देश की स्वाधीनता में ज्यादा लग रहा था इसलिए उन्होंने ने भी महज 14 वर्ष की उम्र में असहयोग आंदोलन में भाग लेकर धरना पदर्शन किया।

उम्र कम होने की वजह से 14 कोड़े की सजा 
असहयोग आंदोलन के दौरान  आजाद को गिरफ्तार कर लिया गया। उम्र कम होने से मजिस्ट्रेड ने छोड़ दिया।कुछ समय बाद फिर पकड़े जाने पर पारसी न्यायधीश के समक्ष पेश किया गया।उसने पूछा तुम्हारा क्या नाम है तो चन्द्रशेखर ने कहा आजाद ,पिता का नाम स्वधीनता व घर जेलखाना बताया तो न्यायाधीश आग बबूला हो गया और उसने 14 कोड़ो की सजा सुनायी।बताया जाता है कि उसी जगह से इनका नाम आजाद पड़ा और प्रत्येक कोड़े की सजा पर वन्देमातरम,भारत माता की जय का उदघोष किया। इस कांड के बाद इनका नाम क्रांतिकारियों की सूची में शामिल होने लगा और अपना अलग दल बनाकर देश के स्वधीनता की लड़ाई में कूद पड़े।

काकोरी में लूटा था रेलवे का खजाना
लड़ाई में धन की समस्या खड़ी होने से इन्होंने अपने साथियों के साथ 9 अगस्त 1925 को काकोरी स्टेशन पर रेल का खजाना लूट असलहों का प्रबंध किया ।काकोरी कांड के बाद आजाद अग्रेजों के आँख की किरकिरी बने रहे।जीते जी कभी पुलिस के हाथ नही लगे। आजादी की लड़ाई में 27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में इनको अंग्रेज सिपाहियों ने घेर लिया जिनसे मोर्चाबंदी करते हुए जब इनके माउजर में एक गोली बची तो अपनी कनपटी में लगा भारत माता की जय बोलते हुए शहीद हो गए।

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