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भारत की पैदल चाल एथलीट प्रियंका गोस्वामी (एपी फोटो)
दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में प्रियंका ने अपने करियर के शुरुआती दिनों के संघर्ष को साझा किया। प्रियंका ने कहा जब पापा की नौकरी चली गई तो कोई सहारा नहीं बना। रिश्तेदार और गांव के लोग मनोबल बढ़ाने की जगह पापा और मां को मेरे खिलाफ भड़काया
लखनऊ। प्रियंका गोस्वामी जब 14 साल की थीं तब पापा की नौकरी अचानक चली गई। करीब 10 साल हो गए, लेकिन अभी तक आर्थिक तंगी बहाली नहीं हुई। वह रोडवेज बस में कंडक्टर थे। ऐसी स्थिति में खिलाड़ी बनना तो दूर, दो जून की रोटी की डगर भी कठिन दिखने लगी। मन में देश के लिए कुछ करने की ललक थी, लेकिन आíथक संकट के चलते परिवार में बात करने की हिम्मत नहीं थी। इसके बाद एक दिन स्कूल में कोच ने प्रियंका से पूछा कि खेल में रुचि है? उन्होंने झट से हां कह दिया। इसके बाद शुरू हुआ प्रियंका के ट्रैक में दौड़ने का सफर। प्रियंका ने कहा कि वर्ष 2009 में मेरा दाखिला मेरठ के कैलाश प्रकाश खेल स्टेडियम में हो गया। यहीं से मेरा एथलीट बनने का सफरनामा शुरू हुआ। जहां से मैंने टोक्यो ओलंपिक तक का सफर तय किया।
वर्ष 2006 में मुफ्फरनगर के सागड़ी गांव से मदनपाल गोस्वामी, पत्नी अनीता गोस्वामी और दोनों बच्चे प्रियंका व कपिल को लेकर मेरठ आ गए। पिता मदनपाल ने कहा कि वर्ष 2010 में रोडवेज के उच्चाधिकारियों ने मिलीभगत कर मुझे नौकरी से निलंबित करा दिया। बहाली के लिए सालों तक अधिकारियों के चक्कर लगाता रहा, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। पिता मदनपाल ने शहर में टैक्सी चलाकर बेटी का सपना पूरा किया। यह उन लोगों के लिए मिसाल है, जो आíथक संकट का बहाना बनाकर मैदान से दूरी बना लेते हैं।
परिवार ने कठिन समय में मनोबल बढ़ाया : दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में प्रियंका ने अपने करियर के शुरुआती दिनों के संघर्ष को साझा किया। प्रियंका ने कहा, 'जब पापा की नौकरी चली गई तो कोई सहारा नहीं बना। मैंने जब कैलाश खेल स्टेडियम में दाखिला लिया तो रिश्तेदार और गांव के लोग मनोबल बढ़ाने की जगह पापा और मां को अपने निर्णय पर फिर से विचार करने के लिए कहने लगे। लेकिन, पापा ने सबकी बातों को दरकिनार कर मुझे कड़ी मेहनत करने की सलाह दी, क्योंकि पापा ने मेरी आंखों से अपने लिए सपना देखा था। वर्ष 2011 में मैंने अपनी तैयारी को और पुख्ता करने के लिए पटियाला के नेताजी सुभाषचंद्र बोस नेशनल इंस्टीट्यूट आफ स्पोर्ट्स (एनआइएस) में दाखिला लिया। घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण पटियाला में भी संघर्ष जारी रहा। पैसे बहुत कम होते थे, लिहाजा सुबह का खाना बनाती तो शाम के खाने के लिए लंगर खाने गुरुद्वारा पहुंच जाती। ये वो दिन थे जिन्हें मैं कभी नहीं भुला सकती।'
राष्ट्रीय रिकार्ड से हासिल किया ओंलपिक टिकट : पिछले साल कोरोना संक्रमण के चलते कई प्रतियोगिताएं निरस्त हुईं। ओलंपिक भी इससे अछूता नहीं रहा। प्रियंका के लिए 13 फरवरी 2021 इतिहास रचने का दिन था। मौका था रांची में आयोजित राष्ट्रीय पैदल चाल चैंपियनशिप का। मेरठ की स्टार एथलीट ने इस चैंपियनशिप में अपने धमाकेदार प्रदर्शन की बदौलत ना सिर्फ नया राष्ट्रीय रिकार्ड भी स्थापित किया, बल्कि 20 किलोमीटर की पैदल चाल एक घंटा 28 मिनट और 45 सेकेंड में पूरी कर ओलंपिक का टिकट भी हासिल किया। भारत में इससे पहले यह रिकार्ड राजस्थान की एथलीट भावना जाट (एक घंटा 29 मिनट 54 सेकेंड) के नाम था। प्रियंका इन दिनों बेंगलुरु साई सेंटर में ओलंपिक की तैयारी में जुटी हैं। उन्होंने कहा, 'मैंने पापा से ओलंपिक में पदक जीतने का वादा किया है। इसके लिए कोशिश जारी है।'