सच्चाई उन सभी पण्डित पुरोहितों  की  समाज के कई लोग  जिन्हें लुटेरा कहते हैं.

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RGAन्यूज़ बरेली समाचार

सच्चाई उन सभी पण्डित पुरोहितों  की  समाज के कई लोग  जिन्हें लुटेरा कहते हैं.

 जो सबसे बड़ा लुटेरा है

 जेठ की चिलचिलाती धूप में डरते और हड़बड़ाते हुए साइकिल को तेज गति से चलाते पंडित जी घर से 5 किलोमीटर दूर गांव में कथा कराने जा रहे थे... सत्यनारायण भगवान की... पसीने में नहाए हुए थे... और गला सूख रहा था... परंतु चिंता थी कि... यजमान के यहां पहुंचने में देरी हो जाएगी... दोपहर के 1:00 बजे गए थे... पंडित जी साईकिल से उतरे और यजमान के घर के सामने खड़े हुए.... यजमान बड़े ही क्रोध में आंखें लाल करके... ..आ गए पंडित.... इसी तरह से रहा तो.... तुम्हारी पंडिताई ज्यादा दिन नहीं चलेगी.... ऐसे तंज कसते हुए.... चलिए पूजा कराइए.... बहुत देर हो गई और उस समय वह पंडित यह भी ना कह सके... कि मैं प्यासा हूँ और यजमान को यह दिखाई भी ना दिया... ..पूजा शुरू हुई... पूजा संपूर्ण होने के बाद... श्रद्धानुसार दक्षिणा पंडित जी को दे दिया गया.... प्रसाद के रूप में पंडित जी ने संकोच बस पंजीरी ले ली.. दो केले ले लिए और वापस अपने घर के लिए चल पड़े... घर पहुंचे तो पंडित जी की छोटी सी बेटी और बेटा दौड़ते हुए आए... पिताजी क्या लाए हैं हमारे लिए
बेटी देख लो... कुछ तुम्हारे खाने की चीजें हैं.... प्रसाद हैं तुम सब बांट के खा लो... पंडित जी की बेटी ने कहा... पिताजी आप लड्डू नहीं लाए... पंडित जी ने कहा... बेटी यजमान लड्डू लाए तो थे... परंतु उतना ही... कि उनके घर के लिए हो जाए... अतिरिक्त में नहीं था... जो है इसे खा लो... अगली बार अवश्य लाऊंगा ... इतने में बेटे ने कहा... पिता जी मास्टर जी ने कहा है... स्कूल की फीस जमा कर दें... नहीं तो परीक्षा में नहीं बैठने देंगे.... पंडित जी ने जवाब दिया... बेटा मास्टर जी से कहना... जल्दी ही फीस जमा हो जाएगी... इतने में पंडितानी बोली.... मेरी साड़ी बहुत पुरानी हो गई है... मुझे एक साड़ी चाहिए
 पंडित जी का गला भर आया... कहने लगे तुम तो जानती हो... कि मैं इस पौरोहित कर्म से इतना भी नहीं कमा पाता कि... तुम सबको खुशहाल रख सकूं... परंतु क्या करूं... यदि अपने पूर्वजों की इस धरोहर को छोड़ दूं तो पूर्वजों की मर्यादा नष्ट हो... और यदि इसका पालन करूं... तो मैं अपने बच्चों का पेट भी ना भर पाऊंगा... यदि मैं भी कहीं नौकरी कर रहा होता तो... मेरे भी बच्चे प्राइवेट विद्यालय में पढ़ते.... मैं भी तुम्हें अच्छे वस्त्र ले आ पाता... और हम भी अपनी हर एक शौक को पूरा कर पाते... हमारे बाप दादाओं का जीवन एक लुंगी और धोती में बीत गया... मेरा भी जीवन इसी प्रकार बीत रहा है... फिर भी पता नहीं जाने क्यों लोग... मुझे लुटेरा कहते हैं
लग्न के समय में यदि दो चार शादियाँ करा दी... तो लोग कहते हैं पंडित ने तो लुटाई मचा दी है
किसी यजमान के घर से लौटे... तो लोग कहते हैं कि पंडित आज उसको कितने का चूना लगाया... 
ना जाने क्यों लोग हमसे इस तरह की भावनाएं रखते हैं.... हमने कब इसका धन लूटा है.... हम तो सदैव ही सब के कल्याण की कामना करते हैं फिर भी लोग हमें लुटेरा क्यों कहते हैं ||

निवेदन कृपया समस्त हिंदू समाज इस बात को समझें कि पौरोहित्य कर्म करने वाला कितना मजबूर होता है.... ना तो वह किसी के यहां मजदूरी कर सकता है.... ना ही वह अपने आत्म स्वाभिमान को बेच सकता है.... ब्राह्मण होने के नाते ना तो उसे सरकार से कोई लाभ प्राप्त होता है...ब्राह्मणों के भी जीवन में ख्वाहिशें होती हैं।किसी भी ब्राह्मण के साथ विश्वासघात न करें।

यदि मेरी बात थोड़ी भी ह्रदय में लगे तो कृपया आज के बाद सभी आचार्यों का सम्मान करें

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