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RGA न्यूज़
आनलाइन क्लास के नाम पर बच्चे गेम्स खेल रहे हैं।
पढ़ते-पढ़ते बीच-बीच में कर रहे दूसरी साइट का अवलोकन। कोई खेल रहा आनलाइन गेम तो कोई कर रहा गैम्बलिंग। साइबर क्राइम में फंसने का भी डर। स्कू।लों से जानकारी जुटा रहे हैं अभिभावक। साइबर विशेषज्ञ का कहना है कि स्मार्ट बनें अभिभावक।
आगरा
केस वन
आवास विकास कालोनी निवासी जसप्रीत सिंह का बेटा पढ़ने में होशियार है। समय से आनलाइन पढ़ाई भी करता है। लेकिन अभिभावकों की नजर हटते ही एक्शन गेम खेलने लगता है। इसलिए वह अभिभावकों के इधर-उधर होने के इंतजार में रहता है। इससे पढ़ाई प्रभावित हो रही है।
केस टू
जयपुर हाउस निवासी आलोक उपाध्याय का बेटा पढ़ने में ठीक है, लेकिन आनलाइन गेम खेलने की आदत ने स्वजन को परेशान कर दिया है। वह मौका मिलते ही छुपकर गेम खेलने लगता है। कभी-कभी देर रात उठकर भी चोरी-छुपे गेम खेलता है। इससे उसका पढ़ाई में कम मन लगता है।
आनलाइन क्लास के नाम पर जब से विद्यार्थियों के हाथों में मोबाइल, टेबलेट और लैपटाप आया है, तब से वह आनलाइन क्लास के नाम पर उसी में नजरें गढ़ाए नजर आते हैं। अभिभावकों के पूछने पर उन्हें पढ़ने के नाम पर बरगला भी रहे हैं। अब तकनीकी रूप से कम सक्षम अभिभावकों के सामने उनकी स्क्रीन मानीटरिंग की समस्या खड़ी हो गई है। ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि बच्चे उनके सामने तो पढ़ने के लिए डिजिटल बुक या आनलाइन क्लास की विंडो खोल लेते हैं, लेकिन अभिभावकों के हटते ही एक्शन गेम, कामिक्स या अन्य सामग्री खोल लेते हैं। कई बच्चे तो प्रतिबंधित साइट पर भी सर्फिंग कर रहे हैं, इसको लेकर अब अभिभावकों को डर सताने लगा है कि कहीं उनका बच्चा साइबर ठगों के चंगुल में न फंस जाए।
स्कूलों से पूछ रहे सुझाव
जीडी गोयनका पब्लिक स्कूल के प्रधानाचार्य पुनीत वशिष्ठ ने बताया कि इस तरह की समस्याएं लेकर अभिभावक आ रहे हैं कि आनलाइन टीचिंग के नाम पर उनके बच्चे क्या पढ़ रहे हैं, वह उनकी स्क्रीन की मानीटरिंग नहीं कर पा रहे। अंजान साइट्स पर जाने से बच्चों के साइबर बुलिंग में फंसने का खतरा है। हालांकि, थोड़ी सी सावधानी से बच्चों को गलत राह पर जाने से रोका जा सकता है। अभिभावकों को थोड़ा सचेत रहना होगा। मानीटरिंग साइट्स का सहारा लेकर बच्चों के स्क्रीन पर नजर रखी जा सकती है और बच्चों को लगेगा भी नहीं कि अभिभावक उस पर विश्वास नहीं करते।
इन एप से रख सकते हैं नजर
बच्चों के मोबाइल में एनी डेस्क साफ्टवेयर, फायरवाल, गूगल क्रोम, वेब फिल्टर और टीम लिवर जैसे एप और सर्चिंग साइट्स आदि से प्राक्सी लगाकर बच्चों के मोबाइल, टेबलेट और लैपटाप के स्क्रीन की मानीटरिंग की जा सकती है। इसके साथ यह एप भी सहायक हो सकते हैं:
एम-स्पाई: इस एप को आसानी से कोई भी अपने मोबाइल में इंस्टाल कर सकता है। इससे आप तुरंत जान जाएंगे कि आपके बच्चे ने नेट पर क्या सर्च किया? बच्चा कहां गया है? आदि।
मोबीसिप: इस एप को भी मोबाइल पर इंस्टाल कर सकते हैं। यह एप्लीकेशन आपको सारी जानकारी आसानी से उपलब्ध कराएगा।
फोन सिरेसिश: इस एप में टाइमर भी लगा होता है। आनलाइन क्लास करने को यदि बच्चों को मोबाइल दे रहे हैं तो उसमें समय सेट किया जा सकता है। इसमें जितनी देर समय से करेंगे मोबाइल उतना ही देर चलेगा।
दूसरी साइट्स देखने का लगा चस्का
कई विद्यार्थी ऐसे हैं, जो आनलाइन पढ़ाई के दौरान ही दूसरी प्रतिबंधित या वयस्क साइट्स खोल लेते हैं। अभिभावक इस पर विशेष ध्यान दें। इसके लिए अभिभावक थोड़ा तकनीक का सहारा ले सकते हैं।
अभिभावकों को होना होगा स्मार्ट
साइबर विशेषज्ञ सुधीर भारद्वाज का कहना है कि आनलाइन शिक्षण लंबी चलने वाली प्रक्रिया है। इसलिए यदि अभिभावक चाहते हैं कि बच्चों की आनलाइन पढ़ाई पर नजर रखें, तो इसके लिए बच्चों को अकेले पढ़ाई न करने दें। अभिभावक विभिन्न एप का सहारा लेकर नजर रखें। साथ ही विभिन्न एप को प्रयोग करने की जानकारी भी रखनी होगी।