सिर से उठा मां-बाप का साया, अब बेबसी की जिंदगी जी रहे मासूम

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RGA news

कोरोना संकट काल में वैसे तो दुनिया भर में लाखों लोगों ने अपनों को खोया है लेकिन सबसे बड़ा दुखों का पहाड़ छोटे बच्चों पर टूटा है। कई परिवारों के सपने ऐसे समय तोड़ दिए जब उनके घर का कमाऊ व्यक्ति असमय काल के गाल में समा गया

कोरोना संकट काल में वैसे तो दुनिया भर में लाखों लोगों ने अपनों को खोया है।

अलीगढ़,। कोरोना संकट काल में वैसे तो दुनिया भर में लाखों लोगों ने अपनों को खोया है, लेकिन सबसे बड़ा दुखों का पहाड़ छोटे बच्चों पर टूटा है। कई परिवारों के सपने ऐसे समय तोड़ दिए, जब उनके घर का कमाऊ व्यक्ति असमय काल के गाल में समा गया। जिले में भी दर्जनों बच्चों में से किसी ने अपने मां को खोया है तो किसी ने अपने बाप को। कई के अन्य अभिभावक अब इस दुनिया में नहीं रहे। पांच बच्चे तो ऐसे हैं, जिनके माता-पिता दोनो ही अब उनके बीच नहीं हैं। पिछले कई महीनों से इन परिवारों  का एक-एक मिनट सालों की तरह गुजर रहा है। कोई रो-रो कर अपनों का याद कर रहा है तो दो वक्त की रोटी के लिए गम का दिल से लगाकर भागदौड़ कर रहा है। प्रस्तुत है ऐसे ही कुछ बच्चों के परिवार की रिपोर्ट ...

एक सप्ताह में उजड़ गई हंसती खेलती दुनिया

खैर निवासी एक व्यापारी परिवार की हंसती-खेलती दुनिया थी। दो भाई अपने मम्मी-पापा के साथ खुशी से जीवन जी रहे थे। होली पर तो खुशियों का गुलाल कई दिनों तक छाया रहा था, लेकिन एक सप्ताह बाद ही वक्त की क्रूरता ने 13 अप्रैल को इन बच्चों की मां और 22 अप्रैल को पिता दोनों को छीन लिया। कोरोना संक्रमण का शिकार होने के बाद इन बच्चों के माता-पिता नहीं रहे। मां-बाप के जाने के बाद यह परिवार बेबसी का जिंदगी जी रहा है। अब न तो घर की कोई आय है और न ही कोई फैसले लेने वाला। आर्थिक संकट तो बढ़ ही रहा है, साथ ही बच्चों का भविष्य भी अंधकार में फंस गया है। दोनों भाई ही एक दूसरे का सहारा बनकर मुफलिसी की जिंदगी जी रहे हैं। घर का सन्नाटा इन्हें हर वक्त मां-बाप की याद दिलाता है।

मां पर पूरी जिम्मेदारी, रिश्तेदारों ने किया किनारा

आगरा रोड स्थित सराय बुर्ज निवासी एक बैटरी विक्रेता के परिवार में मई से पहले सब कुछ ठीक था। बैटरी विक्रेता मुखिया दो बेटी, एक बेटा व पत्नी के साथ खुशी से जीवन यापन कर रहे थे, लेकिन मई के पहले सप्ताह में इस परिवार को किसी की नजर लग गई। घर के मुखिया कोरोना संक्रमित हो गए। 23 मई को इनकी जान चली गई। जब रिश्तेदारों को यह खबर लगी तो उन्होंने भी इन मासूमों से किनारा कर लिया। अब मुखिया की मौत को दो महीने बीत चुके हैं, लेकिन शायद ही इस परिवार में कभी दो वक्त की रोटी बन पाई हैं। तीन नाबालिग बच्चों के साथ जैसे-तैसे मां संघर्ष भरे जीवन को आगे बढ़ा रही हैं। घर में आर्थिक संकट तो ही है, साथ ही बच्चों के भविष्य भी अधर में फंसा है। पूरे परिवार का पिता की याद में रो-रो कर बुरा हाल है।

अनाथ हो गया हंसता-खेलता परिवार

शहर के सराय लवरिया निवासी एक मजदूर परिवार में चार लोग हैं। इनमें मां , दो भाई व एक बहन शामिल हैं। पिता की 2016 में ही पहले ही मौत हो चुकी है। मां ने जैसे-तैसे चार साल में मुखिया के तौर पर कड़ी मेहनत-मजदूरी कर परिवार को संभाला था, लेकिन पिछले साल कोरोना महामारी ने इन्हें भी अपने चपेट में ले लिया है। अब इस गरीब परिवार के तीन बच्चे मां-बाप के जाने के बाद अनाथ हो गए हैं। इनमें एक भाई व एक बहन तो अभी नाबालिग है। अब पूरे परिवार की जिम्मेदारी बालिग भाई पर ही है। पूरे परिवार पिछले काफी समय से मुश्किल जिंदगी जी रहा है

शहर के साहब बाग पुरानी निवासी पीडब्लूडी ठेकेदार की चार मई को कोरोना की चपेट में आने से मौत हो गई है। अब इनके परिवार में दो बेटियां, एक बेटा व पत्नी हैं। परिवार की आर्थिक हालात पहले से ही अच्छी नहीं हैं, अब मुखिया के जाने से संकट और गहरा हो गया है। आथिंग सकंट के चलते बच्चों व पत्नी को दो वक्त की रोटी तक मिलना मुश्किल हो गई हैं। जैस-तैसे कर्ज लेकर परिवार का भरण पोषण चल रहा है। परिवार के लोग मुखिया के जाने से रो-रो कर परेशान हैं। बच्चों की पढ़ाई तक बीच में रुक गई है।

सरकार ने शुरू की बाल सेवा योजना

प्रदेश सरकार ने ऐसे बच्चों की मदद के लिए मुख्यमंत्री बाल सेवा योजना शुरू की है। इसके तहत 18 साल तक के बच्चों को चार हजार रुपये प्रति महीने के हिसाब से धनराशि दी जा रही है। वहीं, शिक्षा के लिए भी घोषणा हुई है। इसमें बालकों को अटल आवासीय विद्यालय व बालिकाओं को कस्तूरबा गांधी विद्यालय में पढ़ाया जाएगा। इसके साथ ही बालिकाओं के शादी योग्य होने पर विवाह के लिए 1 लाख 1 हजार रूपये की सहायता राशि भी दी जाएगी। वहीं, कक्षा 9 या इससे ऊपर की कक्षा में शिक्षा प्राप्त कर रहे बच्चों को लैपटाप या टेबलेट मिलेगी। पहले चरण में चार हजार रुपये महीने के हिसाब से प्रत्येक बच्चे के खाते में तीन महीने के लिए 12 हजार की धनराशि भेजी गई है

76 बच्चों का अब तक हो चुका है चयन

जिले में अब तक कोरोना से प्रभावित 76 बच्चों का चयन हो चुका है। इनमें 39 बालिकाएं एवं 37 बालक शामिल हैं। 71 बच्चों के माता-पिता में से किसी की जान गई है। वहीं, पांच बच्चे ऐसे हैं, जिनके माता-पिता दोनों ही अब इस दुनिया में नहीं रहे हैं।

प्रमाण पत्र के फेर में दर्जनों बच्चे

 सरकार की बाल सेवा योजना के लिए कोरोना संक्रमण का प्रमाण पत्र होना अनिवार्य है। लेकिन, जिले में कई परिवार ऐसे हैं, जिनके पास यह प्रमाण पत्र नहीं हैं। ऐसे में अब यह इसके लिए भटक रहे हैं। अस्पतालों ने भी हाथ खड़े कर दिए हैं, लेकिन लाभ नहीं मिल रहा है। हालांकि, संकट इन परिवारों पर भी उतना ही है, जितना अन्य पर है।

कोरोना से प्रभावित बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी सरकार ने स्वयं ली है। हर बच्चे के संरक्षण को 18 साल तक की उम्र पूरी होने तक चार हजार रुपये महीने दिए जाएंगे। इसके साथ शिक्षा दिलाने की भी व्यवस्था की है।

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