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RGA न्यूज़
करीब दो हजार इंजेक्शन दूसरी लहर के दरम्यान बच गए थेे जिनकी सितंबर माह में एक्सपायरी डेट है। शासन ने इन्हें खरीद कर भेजा था अब फार्मास्युटिकल कंपनी में उसकी वापसी भी नहीं है ऐसे में स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि इन बचे हुए इंजेक्शनों का करे तो क्या।
जीवन रक्षक समझे जाने वाले रेमडेसिविर इंजेक्शन अब स्वास्थ्य विभाग के गले की फांस की तरह हो गए हैं
प्रयागराज, कोरोना संक्रमित लोगों के जीवन रक्षक के रूप में समझे जाने वाले रेमडेसिविर इंजेक्शन अब स्वास्थ्य विभाग के गले की फांस की तरह हो गए हैं। करीब दो हजार इंजेक्शन दूसरी लहर के दरम्यान बच गए थेे जिनकी सितंबर माह में एक्सपायरी डेट है। शासन ने इन्हें खरीद कर भेजा था, अब फार्मास्युटिकल कंपनी में उसकी वापसी भी नहीं है, ऐसे में स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि इन बचे हुए इंजेक्शनों का करे भी तो क्या।
एमआरपी के अनुसार है 80 लाख का माल
रेमडेसिविर इंंजेक्शन की कीमत फुटकर बाजार में 4000 रुपये है। 2000 इंजेक्शन के हिसाब से यह 80 लाख का माल है जो निष्प्रयोज्य बचा है। हालांकि शासन ने कंपनी से बल्क में खरीदा था इसलिए बजट कम खर्च होने का अनुमान है लेकिन, इंजेक्शन खरीद के बाद मरीजों को नहीं लग पाए यह सच्चाई है।
कहां-कहां डंप हैं इंजेक्शन
सीएमओ प्रयागराज के अधीन 109 इंजेक्शन डंप हैं। स्वरूपरानी नेहरू चिकित्सालय में करीब 1100 इंजेक्शन, फुटकर व्यापारियों के पास 500 इंजेक्शन, 100 इंजेक्शन बेली अस्पताल में, 200 इंजेक्शन प्राइवेट कोविड अस्पतालों में डंप हैं। फिलहाल एक भी कोरोना संक्रमित इन दिनों प्रयागराज के अस्पताल में भर्ती नहीं है और जो होम आइसोलेशन में हैं उन्हें भी इस इंजेक्शन की जरूरत नहीं है।
कहां ले जाएं इंजेक्शन
सीएमओ डा. नानक सरन ने कहा कि उनके पास जो इंजेक्शन बचे हैं उनकी एक्सपायरी डेट सितंबर माह में है। यानी करीब डेढ़ महीने बाद इंजेक्शन किसी काम के नहीं रह जाएंगे। हालांकि इसकी जानकारी लिखित रूप में शासन काे भेजेंगे। लेकिन दवा चूंकि क्रय करके आई थी इसलिए कंपनी में उसकी वापसी भी संभव नहीं है। हालांकि जिले में अलग-अलग अस्पतालों में रखे इंजेक्शन की एक्सपायरी डेट भिन्न भी हो सकती है लेकिन सीएमओ कार्यालय में जो इंजेक्शन हैं उनकी एक्सपायरी डेट सितंबर तक ही हैं।
संक्रिमतों को पड़ी थी जरूरत
कोरोना की दूसरी लहर के दौरान अस्पताल में भर्ती संक्रमितों को रेमडेसिविर इंजेक्शन की काफी जरूरत पड़ी थी। इसे जीवनरक्षक माना गया था इसे देखते हुए इंजेक्शन की कालाबाजारी भी खूब हुई थी।