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आप चाहें या न चाहें, जिंदगी में कुछ बातेंं होती ही रहती हैं। खास तौर पर वो घटनाएं जो प्रतिकूल हैं या हमारे चाहे अनुसार नहीं हैं। ऐसे समय क्या करें? जब जीवन में अनचाहा होने लगे तो तीन हालात बनेंगे। या तो आप उससे निपटने के लिए उत्साह में आ जाएंगे या निराशा में डूब जाएंगे। इन दोनों से भी खतरनाक एक स्थिति होती है जो है आप ईर्ष्या में डूब जाएंगे। ध्यान रखिएगा, ईर्ष्या क्या करा जाती है? हमारे साथ कुछ गलत हो गया तो ईर्ष्या कहती है तुम दूसरों के साथ भी गलत करो। प्रेम में पीड़ा मिल गई हो तो कहेगी प्रेम करना ही बंद कर दो।
यदि किसी से ठगा गए तो ईर्ष्या कहती है तुम भी छल पर उतर आओ। अच्छे और भले लोगों के साथ भी बुरी बातें होती रहती हैं। लेकिन जब अच्छे व्यक्ति के साथ गलत होता है तो वह और अच्छा बनता है, पर ईर्ष्या उसे रोकते हुए कहती है और अच्छे बनकर क्या करोगे? तुम्हारे साथ बुरा हुआ है तो तुम भी बुरे हो जाओ। ईर्ष्या एक ऐसा दुर्गुण है जो हमारे भीतर धीमे जहर के रूप में उतरता है। जिन्हें ईर्ष्या मिटाना हो उन्हें एक मंत्र जीवन में उतार लेना चाहिए। सीधा सा वाक्य है- भगवान ने मुझे मेरे हिस्से का दिया है, फिर क्यों दूसरों पर नजर डालूं? योग में इसे अपरिग्रह कहा गया है। अपरिग्रह का मतलब है जो मिल गया, उसी में में संतोष रखें। बस, ईर्ष्या यहीं से गलेगी और उस ईर्ष्या ने आपकी जिस अच्छाई को रोक रखा है, वह अपने आप उभरकर आएगी।