कल्याण की कलम से गीत भी निकले, दिव्य -ध्येय की ओर तपस्वी जीवनभर अविरल चलता है ...

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RGA न्यूज़

प्रखर वक्ता कल्याण सिंह बेहतरीन रचनाकार भी थे। उनकी कलम देशभक्ति के गीतों पर खूब चला करती थी। मुश्किल के दौर में तो कल्याण सिंह मां भारती के सच्चे सपूत बन जाया करते थे और ओज-जोश से लिपटे गीत दिल की गहराइयों तक बैठ जाया करते थे।

प्रखर वक्ता कल्याण सिंह बेहतरीन रचनाकार भी थे।

अलीगढ़, प्रखर वक्ता कल्याण सिंह बेहतरीन रचनाकार भी थे। उनकी कलम देशभक्ति के गीतों पर खूब चला करती थी। मुश्किल के दौर में तो कल्याण सिंह मां भारती के सच्चे सपूत बन जाया करते थे और ओज-जोश से लिपटे गीत दिल की गहराइयों तक बैठ जाया करते थे। आपातकाल के दौरान उनकी कलम जेल में जय बोल उठी। उन्होंने दिव्य -ध्येय की ओर तपस्वी गीत की रचना की। इस गीत में लक्ष्य की ओर इंगित किया तो एक साधक की तरह कठिन साधना का भी संदेश दिया। जनसमूह में कभी भी कल्याण सिंह ने यह गीत गाया तो देशभक्ति हिलोर मारने लगती थी। अथाह राष्ट्र भक्ति के सैलाब में लोग डूब जाया करते थे।

कल्‍याण सिंह में देशभक्‍ति कूट कूटकर भरी थी

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुडऩे के कारण कल्याण सिंह के अंदर देशभक्ति कूट-कूट कर भरी हुई थी। बात 1975-76 के आपातकाल की है। कल्याण सिंह उस समय जनसंघ से विधायक थे। उनकी भी गिरफ्तारी हो गई थी। उस समय जेल में आरएसएस और जनसंघ के कार्यकर्ता देशभक्ति के गीत गुनगुनाया करते थे। उसी समय कई गीतों की रचना की थी। दिव्य -ध्येय की ओर तपस्वी जीवनभर अविरल चलता है यह गीत जनसमूह में खूब गूंजा करता था। उनके साथ चुनाव प्रचार करने वाले पूर्व प्रवक्ता ऋषिपाल सिंह बताते हैं कि 1977 में कल्याण सिंह जनता पार्टी से अतरौली विधानसभा का चुनाव जीत गए थे । फिर वो तमाम जगहों पर देशभक्ति से लबरेज कविताओं की पंक्तियां बोलते थे। वो बताया करते थे कि आपातकाल के समय उन्होंने जेल में यह पंक्तियां लिखी थीं। भाजपा के जिलाध्यक्ष चौधरी ऋषिपाल सिंह बताते हैं कि बाबूजी के गीतों से ही उन्होंने अपने जीवन में सेवाकार्य को प्रमुखता दी। उनके गीत और ओज से भरी पंक्तियां हिलोरे पैदा कर दिया करती थीं। वह एक सच्चे साधक थे। अधिवक्ता नवाब सिंह बताते हैं कि बाबूजी ने देशभक्ति के साथ ही किसान-गरीबों पर भी गीत की रचना की थी। 1985 में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के समय भी वो मंचों पर अपनी कविताएं और गीतों से जोश भरने का काम करते थे।

मुख्यमंत्री रहते हुए पहुंचे थे संघ कार्यालय

संघ से जनसंघ और फिर भाजपा तक पहुंचने वाले कल्याण सिंह ने अपनों को कभी नहीं बिसारा। मुख्यमंत्री होने के बाद भी वह प्रोटोकाल को कई बार भूल जाया करते थे, संघ के प्रचारकों से मुलाकात करने पहुंच जाते थे। बात 1991 की है। वे पहली बार मुख्यमंत्री बने थे। उस समय चौधरी ऋषिपाल सिंह इगलास में तहसील प्रचारक थे। यतेंद्र अलीगढ़ के विभाग प्रचारक थे। कल्याण सिंह अचानक अलीगढ़ के द्वारिकापुरी स्थित आरएसएस कार्यालय पहुंचे। यहां पर ऋषिपाल सिंह को देखकर गले लगा लिया। कहा कि हमारे अतरौली तहसील क्षेत्र से भी प्रचारक निकल रहे हैं, वह भी जाट समाज से, यह तो आश्चर्य की बात है। ऋषिपाल सिंह कहते हैं कि उस समय उनकी आंखें भर आईं थीं।

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