रसायनों के प्रयोग से प्राकृतिक सफाईकर्मी गिद्ध हो रहा विलुप्त

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RGA न्यूज़

विशेषज्ञों द्वारा गिद्धों के खत्म होने से मानवीय जीवन पर अनेक गंभीर बीमारियों के खतरे पैदा होने की संभावनाएं व्यक्त की जा रही हैं। इसी क्रम में गिद्ध संरक्षण पर जागरूकता के लिए प्रति वर्ष 4 सितंबर को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गिद्ध जागरूकता दिवस मनाते हैं।

गिद्ध संरक्षण पर जागरूकता के लिए प्रति वर्ष 4 सितंबर को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गिद्ध जागरूकता दिवस मनाते हैं।

आगरा, भारत जैवविविधताओं से परिपूर्ण देश है, जहां पूरी दुनिया का आठ फीसद जैवविविधता वाला भाग मौजूद है। सभी जीव एक दूसरे से खाद्य शृंखला द्वारा संबंधित हैं। इनमें से किसी एक का विलुप्त हो जाना, पूरी पारिस्थिति को प्रभावित करता है। प्रकृति में गिद्द का महत्वपूर्ण स्थान है। गिद्द हमारे ईको सिस्टम का अति महत्वपूर्ण अंग है। मवेशियों के मृत अपशिष्ट को भोजन के रूप में खाकर प्रकृति की सफाई का कार्य करता है। मृत स्तनधारियों की लाशें ही इसका मुख्य भोजन है। लेकिन यह छोटे पक्षी व सरीसृप का शिकार कर लेता है। यह गिद्द चट्टानी पहाड़ियों की दरारों, पुरानी इमारतों व खंडहरों में अपना घोंसला बनाता है। डाइक्लोफैनिक दवाओं के प्रयोग से गिद्धों के जीवन पर संकट खड़ा हुआ है और यह प्रजाति धीरे धीरे विलुप्ती के कगार पर खडी है।

विशेषज्ञों द्वारा गिद्धों के खत्म होने से मानवीय जीवन पर अनेक गंभीर बीमारियों के खतरे पैदा होने की संभावनाएं व्यक्त की जा रही हैं। इसी क्रम में गिद्ध संरक्षण पर जागरूकता के लिए प्रति वर्ष 4 सितंबर को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गिद्ध जागरूकता दिवस मनाया जाता है।

भारत में गिद्ध की 9 प्रजातियों में से 4 पर गंभीर खतरा

विश्व भर में पुरानी और नई दुनिया की कुल वल्चर की 22 प्रजातियां मौजूद हैं। जिनमें से 15 प्रजातियां पुरानी दुनिया की हैं। ( पुरानी दुनिया में अमेरिका के दोनों महाद्वीप शामिल नहीं है। ) भारत में गिद्धों की कुल 9 प्रजातियां पाई जाती है जिनमें स्थानीय आवासीय एवं प्रवासी प्रजातियां शामिल हैं। ये प्रजातियां लॉन्ग विल्ड वल्चर, व्हाइट बैक्ड वल्चर, सिलेन्डर विल्ड वल्चर, हिमालयन ग्रिफाॅन वल्चर, वियर्ड वल्चर, किंग वल्चर, इजिप्सीयन वल्चर, सिनेरियस वल्चर, यूरेशियन ग्रिफाॅन वल्चर हैं

आगरा में दिखने वाले अकेले इजिप्सीयन वल्चर की संख्या हो रही है कम

पक्षी विशेषज्ञ डॉ केपी सिंह ने बताया कि भारत में पाई जाने वाली गिद्द की नौ प्रजातियों मे से विलुप्ति की कगार पर खड़ी चार प्रजातियों में से एक इजिप्शीयन गिद्द को आगरा और आस पास देखा जाता है। इसे सफेद गिद्द के नाम से भी जाना जाता है । इसका वैज्ञानिक नाम नियोफ्रोन पेर्क्नोटेरस है। यह ऍक्सिपिट्रिडी फैमिली का सदस्य है। आईयूसीएन द्वारा इसे विलुप्त होने वाली प्रजाति की श्रेणी में रखा गया है। आगरा में फतेहपुर सीकरी, अछनेरा, किरावली, जगनेर तांतपुर, बाह, कीठम, ताज नेचर वाक के पीछे एवं कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में कभी कभार इजिप्सियन वल्चर रिकार्ड किए जाते हैं। जिनकी संख्या लगातार घट रही 

गिद्धों की घटती जनसंख्या के कारण

गिद्ध के मुख्य भोजन मे शामिल मवेशियों के शरीर में पहुंच रहे डाइक्लोफैनिक व अन्य हानिकारक रसायनों से इनके जीवन को गंभीर खतरा है क्योंकि इन मृत मवेशियों के हानिकारक मांस को गिद्ध भोजन के रूप में ग्रहण करते हैं। इसके अतिरिक्त गिद्धों के हेविटाट और प्रजनन स्थलों में आ रही कमी इनकी जनसंख्या कम होने के प्रमुख कारण हैं।

गिद्ध संरक्षण के लिए करने होंगे यह उपाय

बायोडायवर्सिटी रिसर्च एंड डवलपमेंट सोसाइटी के अध्यक्ष डॉ केपी सिंह के अनुसार गिद्धों के संरक्षण के लिए इनके हेविटाट और प्रजनन स्थलों का संरक्षण अति महत्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त इनको नुकसान पहुंचा रहे रसायनिक पदार्थों पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। प्रजनन केन्द्र की स्थापना के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में कुछ स्थलों को मवेशियों के मृत शरीर फेंकने के लिए निर्धारित किया जाना चाहिए। साल में एक बार जिले में मौजूद वल्चर की प्रजातियों को रिकार्ड किया जाना चाहिए।

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