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अमरीका ने यह क़दम कथित तौर पर कई सालों से हो रही 'इंटलेक्चुअल प्रॉपर्टी की चोरी' के बदले में उठाया गया है.
व्हाइट हाउस ने कहा है कि चीनी अर्थव्यवस्था से मिलने वाली अन्यायपूर्ण चुनौती से मुक़ाबला करने के लिए उचित क़दम उठाना जरूरी है.
उधर चीन का कहना है कि इसे जवाब में वह 'उपयुक्त' पलटवार के लिए तैयार है.
इससे पहले ट्रंप प्रशासन ने स्टील और एल्यूमीनियम समेत बहुत सारे विदेशी सामान पर आयात शुल्क बढ़ा दिया था. इस तरह अब ट्रेड वॉर यानी कारोबारी जंग का साया मंडराने लगा पहले अमरीका ने स्टील के आयात पर लगाया था शुल्क
अमरीकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने कहा है कि वह उम्मीद करते हैं कि अन्य देश अमरीकी कंपनियों के लिए बराबरी के नियम रखें.
व्हाइट हाउस में इससे संबंधित मेमो पर हस्ताक्षर करने के बाद उन्होंने कहा, "हम चीन के साथ समझौतों को लेकर चल रही लंबी बातचीत के बीच में है. देखते हैं कि क्या नतीजा निकलता है."
क्यों लगाया गया शुल्क?
चीन पर शुल्क लगाने का फ़ैसला करने से पहले पिछले साल अगस्त में अमरीकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने चीनी की नीतियों की जांच का आदेश दिया था.
व्हाइट हाउस ने कहा है कि '301 इन्वेस्टिगेशन' नाम से पुकारे जाने वाले इस रिव्यू में पता चला है कि कई सारे 'अन्यायपूर्ण' काम किए जा रहे हैं, जिनमें विदेशी स्वामित्व पर प्रतिबंध, जिस कारण कंपनियों पर टेक्नोलॉजी ट्रांसफ़र करने का दबाव बनता है.
अमरीका को ऐसे सबूत भी मिले हैं कि चीन अमरीकी कंपनियों पर अन्यायपूर्ण शर्तें थोपता है, रणनीतिक तौर पर अहम अमरीकी कंपनियों में निवेश में बाधा डालता है और साइबर हमले करवाता और ऐसे हमलों का समर्थन करता है.
व्हाइट हाउस ने कहा है कि कि उसने 1000 से ज्यादा उत्पादों की सूची बनाई है, जिनपर शुल्क लगाया जा सकता है. आख़िरी सूची को लागू किए जाने से पहले इस पर कारोबारों को अपनी राय रखने का मौका भी दिया जाएगा.
अधिकारियों का कहना है कि अमरीका वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन में भी चीन की कथित अन्यायपूर्ण लाइसेंस शर्तों की शिकायत करेगा.