बापू ने पत्रकारों के बुलावे पर कानपुर की धरती पर रखे थे नंगे पांव, प्रताप प्रेस था ठिकाना

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RGA न्यूज़

कानपुर में महात्मा गांधी पहली बार पत्रकारों के आमंत्रण पर आए थे और उन्होंने प्रताप प्रेस में ठहराया गया था। यहां पर पूरी रात उन्होंने दरी पर गुजारी थी और मुरारी लाल रोहतगी को संगठन खड़ा करने की जिम्मेदारी सौंपी थी।

महात्मा गांधी का कानपुर से रहा खास जुड़ा

कानपुर, गांधीजी पहली बार कानपुर पत्रकारों के आमंत्रण पर आए थे। इस दौरान उन्होंने न तो कोई जनसभा की और न ही ज्यादा लोग उनसे मिलने पहुंचे। हां, गांधीजी की पहली यात्रा कानपुर में कांग्रेस के मजबूत संगठन का आधार बनी। उन्होंने युवा चेतना और शक्ति जाग्रत करने और संगठन खड़ा करने की जिम्मेदारी डा. मुरारीलाल अग्रवाल को सौंपी।

लखनऊ अधिवेशन में 28 दिसंबर 1916 को प्रताप प्रेस के संपादक गणेश शंकर विद्यार्थी और माखनलाल चतुर्वेदी ने गांधीजी से मुलाकात की और उन्हें कानपुर आने का आमंत्रण दिया। गांधीजी ने आमंत्रण स्वीकार किया और एक जनवरी 1917 को कानपुर पहुंचे। उनके साथ उनके सहयोगी मिस्टर पोलाक भी थे। चूंकि कांग्रेस के मजबूत संगठन का अभाव था ऐसे में गांधीजी को प्रताप प्रेस में ठहराया गया। प्रताप आफिस के बड़े कमरे में फर्श पर एक बड़ी दरी बिछी और मिस्टर पोलाक और गांधी जी ने जमीन पर विश्राम किया

नंगे पांव कानपुर की धरती पर उतरे थे गांधी

प्रताप प्रेस के सहयोगी दशरथ प्रसाद द्विवेदी उन्हें कानपुर सेंट्रल से प्रताप प्रेस तक लाए थे। दशरथ प्रसाद लिखते हैं कि गांधीजी उस समय तीसरे दर्जे मे सफर करते थे और नंगे पैर रहते थे। सर पर एक काठियावाड़ी ढंग की पगड़ी बांधा करते थे और एक चौबन्दी पहना करते थे। उनके कंधे पर खादी का एक झोला टंगा था। भरी हुई एक स्पेशल ट्रेन से वह रात आठ बजे कानपुर उतरे थे। अपने साथी शिव नारायण के साथ उन्होंने काफी मुश्किल से गांधीजी को ढूंढा था। खादी का झोला लेने की बहुत कोशिश की लेकिन गांधीजी ने उसे नहीं दिया। जिसके बाद उन्हें तांगे से प्रताप प्रेस तक लाया गया।

नेताओं में थी कांग्रेस के प्रति उदासीनता

इतिहासकार अनूप शुक्ला बताते हैं कि देश की जनता मे कांग्रेस का अच्छा प्रभाव था कानपुर में संगठन जैसा कुछ न होने के चलते यहां के नेताओं मे कांग्रेस के प्रति उदासीनता थी। भोजन करने के बाद जब गांधीजी ने नगर के नेताओ से बात करने की इच्छा व्यक्त की तो उन्हें निराशा हाथ लगी। इतने बड़े शहर में केवल डा. मुरारीलाल रोहतगी और नारायण प्रसाद निगम ही अपने दो चार मित्रों के साथ मिलने पहुंचे। अनूप बताते हैं कि गांधीजी कानपुर के जन नेताओं के इस उपेक्षापूर्ण व्यवहार से खिन्न हो गए थे

युवा चेतना को जागृत करने की नसीहत पर खड़ा हुआ संगठन

वार्तालाप के दौरान गणेश शंकर विद्यार्थी ने गांधीजी से कहा, यहां नौजवानों को प्रोत्साहित करने वाला कोई नहीं है। इसके बाद गांधीजी ने डा. मुरारीलाल रोहतगी को यह जिम्मेदारी देते हुए कहा, डाक्टर साहब आप क्यों नहीं इन नौजवानों से काम लेते हैं? अगर इन्हें आप उत्साहित करेंगे तो यह बहुत कुछ कर दिखाएंगे। उन्होंने युवा शक्ति को जागृत करने का आश्वासन मांगा। इस पर मुरारी लाल रोहतगी ने ऐसा करने का वचन दिया। इसके बाद कानपुर में मजबूत संगठन खड़ा हुआ। गांधीजी के असहयोग आंदोलन में कानपुर के युवाओं ने अंग्रेजों को खूब छकाया।

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