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यदि कोई मनुष्य अपने ही हाथों दीन-हीन बना रहेगा तो उसके लिए इससे बड़ा पाप और कोई दूसरा नहीं होगा। व्यक्ति का सार्थक प्रयास हर कठिन चीज को आसान बना देता है। इसलिए हर एक को अपने अंदर प्रयास करने की भावना को विकसित करने की आवश्यकता है।
जीवन चेतना: जिसे पूर्णता अनुभव करनी होती है, वह सदैव सकारात्मक रूप से सक्रिय रहता है
प्रत्येक मनुष्य के शरीर में अनंत शक्तियों का भंडार होता है, किंतु अधिकांश इनका सदुपयोग नहीं कर पाते हैं। उनकी ये अनंत शक्तियां सोई ही रहती हैं। यहां तक कि उनके जीवन की अंतिम घड़ी भी आ जाती है, लेकिन वे अपनी इन शक्तियों को जागृत नहीं कर पाते हैं। ऐसे लोग अपनी बहुत-सी शारीरिक और मानसिक शक्तियों का प्रयोग आधा-अधूरा भी नहीं कर पाते हैं। इसी कारण अधिकांश मनुष्य अपने आत्मा के समक्ष हीन भावना के साथ जिंदगी व्यतीत करते हैं।
ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि वे अपने आत्मा को अपने शरीर की अग्नि के प्रकाश से प्रकाशित नहीं कर पाते हैं। उनके शरीर की अग्नि शरीर में बुझी-सी जलती है। व्यक्ति का सक्रिय और संरचनात्मक जीवन ही उसे इस स्थित से उबार सकता है।
यदि कोई मनुष्य अपने ही हाथों दीन-हीन बना रहेगा तो उसके लिए इससे बड़ा पाप और कोई दूसरा नहीं होगा। व्यक्ति का सार्थक प्रयास हर कठिन चीज को आसान बना देता है। इसलिए हर एक को अपने अंदर प्रयास करने की भावना को विकसित करने की आवश्यकता है। हमारे स्वयं के प्रयास ही हमें वहां पर पहुंचा देते हैं, जहां हमें किसी की मदद की जरूरत नहीं रह जाती है। हमें इस प्रकार के प्रयासों के प्रति सदैव सजग रहना चाहि
जिस मनुष्य को अपने आप की पूर्णता अनुभव करनी होती है वह सदैव सकारात्मक रूप से सक्रिय रहता है। ऐसे लोग अपने विचारों को क्रियात्मक रूप में बदल लेते हैं। ये इसी विधा का प्रयोग करके शक्ति रूपी कुआं खोद लेते हैं, जबकि तर्क-वितर्क करने वाले व्यक्ति हाथ पर हाथ धरे बैठे ही रहते हैं।
वास्तव में सकारात्मक सक्रियता और सृजनात्मक कार्य ही मनुष्य को उसकी अनंत शक्तियों की अनुभूति कराने के सूत्र हैं। इसी का प्रयोग करके वह अपनी पूर्ण संभावित शक्तियों को जीवंत कर लेता है और अपनी आत्मशक्ति की अनंतता को अनुभव करने में सफल हो जाता है।