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RGA न्यूज़
मां दुर्गा की आराधना आज से घरों में आरंभ हो रही है। देवी को प्रसन्न करने के लिए बहुत ही सरल मंत्रों का उच्चारण किया जा सकता है। आइए हम बताते हैं कि हवन किस तरह किया जाए और आहुति के दौरान किन मंत्रों का जाप करना फलदायक रहता है
गुरुवार से नवरात्रि आरंभ हो गई हैं और घरों में कलश स्थापना की जा रही है।
आगरा, आज यानि गुरुवार सात अक्टूबर से नवरात्र का आरंभ होने जा रहा है। इस बार आठ दिन तक मां भगवती की आराधना घर घर में होगी। माता के इन पवित्र दिनों में सबसे महत्वपूर्ण होता है प्रतिदिन किया जाने वाला हवन। माना जाता है कि हवन वो ही पूर्ण होता है जो विधि विधान से मंत्रों के साथ किया जाए। ऐसे में लोगों को चिंता रहती है कि विधान पूर्वक हवन कौन कराए। इस बाबत धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जय जोशी बताते हैं कि हवन के लिए किसी को खोजना जरूरी नहीं। आप स्वयं भी नवरात्रि का हवन कर सकते हैं।
क्या है हवन में मंत्रों का महत्व
यदि आपने कोई मंत्र जप संकल्पित होकर नवरात्रि में किया है तो उसका दशाश हवन कर देना चाहिए। कोई भी जप चाहे नवरत्रि का हो किसी और काल का वह बिना दशांश हवन के पूर्ण नहीं होता। लेकिन यदि कोई विशेष मंत्र संकल्प के साथ नहीं जपा है आपने तो इसकी आवश्यकता नहीं। दशांश हवन का अर्थ होता है कि जितना जप किया है उसका दस प्रतिशत हवन कर देना। यानी आपने यदि सवा लाख मंत्र जपे हैं तो दस प्रतिशत। यानी 12,500 आहुतियां उसी मंत्र को पढ़ते हुए दें। परंतु ये बाध्यता तभी है जब आपने संकल्प लेकर जप आरंभ किया था। यदि संकल्प लेकर आरंभ नहीं किया था तो यह बाध्यता नहीं है। अगर यथासंभव हवन कर दिया जाए तो अच्छा ही है। शास्त्रों में एक और मार्ग बताया गया है। यदि साढ़े बारह हजार आहुतियां देनी हैं तो जरूरी नहीं कि केवल जपकर्ता ही दे। एक व्यक्ति मंत्र पढ़ने के बाद स्वाहा कहता हो। 10 लोग इसी भाव से आहुतियां दे रहे हों कि वे भी इसी मंत्र के लिए आहुति दे रहे हैं। इस तरह सिर्फ 1,250 आहुति ही देनी होगी। सबके अंश से एक आहुति की गिनती हो जाएगी। इस प्रकार साढ़े बारह हजार आहुतियां पूर्ण मानी जाएंगी। यदि पांच लोग आहुति दे रहे हों तो 2500 आहुति देनी होगी।
नवरात्रि हवन की सरल विधि
सबसे पहले अपनी नियमित पूजा कर लें फिर हवन की तैयारी करें। हवनकुंड वेदी को साफ करें। कुण्ड का लेपन गोबर जल आदि से करें। फिर आम की चौकोर लकड़ी हवन के लिए लगा लें। नीचे में कपूर रखकर जला दें। अग्नि प्रज्जवलित हो जाए तो चारों ओर समिधाएं लगाएं। हवनकुंड की अग्नि प्रज्जवलित हो जाए तो पहले घी की आहुतियां दी जाती हैं।
इन मंत्रों से शुद्ध घी की आहुति दें-
ॐ प्रजापतये स्वाहा। इदं प्रजापतये न मम्।
ॐ इन्द्राय स्वाहा। इदं इन्द्राय न मम्।
ॐ अग्नये स्वाहा। इदं अग्नये न मम।
ॐ सोमाय स्वाहा। इदं सोमाय न मम।
ॐ भूः स्वाहा।
उसके बाद हवन सामग्री से हवन शुरू कर सकते हैं।
इन मंत्रों से हवन शुरू करें-
ऊँ सूर्याय नमः स्वाहा
ऊँ चंद्रयसे स्वाहा
ऊं भौमाय नमः स्वाहा
ऊँ बुधाय नमः स्वाहा
ऊँ गुरवे नमः स्वाहा
ऊँ शुक्राय नमः स्वाहा
ऊँ शनये नमः स्वाहा
ऊँ राहवे नमः स्वाहा
ऊँ केतवे नमः स्वाहा
इसके बाद गायत्री मंत्र से आहुति देनी चाहिए। गायत्री मंत्र इस प्रकार से है
ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
फिर आप इन मंत्रों से हवन कर सकते हैं
ऊं गणेशाय नम: स्वाहा,
ऊं गौरये नम: स्वाहा,
ऊं वरुणाय नम: स्वाहा,
ऊं दुर्गाय नम: स्वाहा,
ऊं महाकालिकाय नम: स्वाहा,
ऊं हनुमते नम: स्वाहा,
ऊं भैरवाय नम: स्वाहा,
ऊं कुल देवताय नम: स्वाहा,
ऊं स्थान देवताय नम: स्वाहा,
ऊं ब्रह्माय नम: स्वाहा,
ऊं विष्णुवे नम: स्वाहा,
ऊं शिवाय नम: स्वाहा
ऊं जयंती मंगलाकाली भद्रकाली कपालिनी
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा, स्वधा नमस्तुते स्वाहा,
निर्वाण बीज मंत्रः
ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै
दुर्गा सप्तशती के पांचवें अध्याय में इंद्रादि देवताओं द्वारा देवी स्तुति में 25 सुंदर मंत्र कहे गए हैं। उनसे हवन करना चाहिए। ये मंत्र आपको पुस्तक में मिल जाएंगे। इऩ मंत्रों में देवी की प्रशंसा है। इसलिए ये मंत्र उत्तम कहे गए हैं। हर मंत्र के अंत में स्वाहा जोड़ लें।
या देवी सर्वभुतेषु विष्णुमायेति संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
इस मंत्र से आरंभ करके आप
या देवी सर्वभूतेषु भ्रांतिरूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
तक के मंत्रों से आहुति दें तो अच्छा रहेगा।
हवन के बाद नारियल के गोले में कलावा बांध लें। चाकू से उसके ऊपर के भाग को काट लें। उसके मुंह में घी, पान, सुपारी, लौंग, जायफल और जो भी प्रसाद उपलब्ध है, उसे रख दें। बची हुई हवन सामग्री फिर उसमें डाल दें। यह पूर्ण आहुति की तैयारी है। फिर पूर्ण आहुति मंत्र पढ़ते हुए उसे हवनकुंड की अग्नि में रख दें।
पूर्णाहुति मंत्र-
ऊँ पूर्णमद: पूर्णम् इदम् पूर्णात पूर्णादिमं उच्यते, पुणस्य पूर्णम् उदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णभादाय पूर्णमेवावाशिष्यते।। इस मंत्र को कहते हुए पूर्ण आहुति दे देनी चाहिए। उसके बाद यथाशक्ति दक्षिणा माता के पास रख दें, फिर आरती करें। क्षमा प्रार्थना करें।