आज करें मंगल स्तोत्र का पाठ, मिलेगी इस दोष से मुक्ति

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Mangal Stotra जिनकी कुण्डली में मंगल ग्रह निम्न भाव का होता है उनमें आत्मविश्वास की कमी होती है। जिस कारण वो सही दिशा और शक्ति से प्रयास नहीं कर पाते हैं और सफलता प्राप्त करना मुश्किल होता है। आइए जानते हैं मंगल दोष से मुक्ति के उपाय.

Mangal Stotra: आज करें मंगल स्तोत्र का पाठ, मिलेगी इस दोष से मुक्ति

Mangal Stotra: भारतीय ज्योतिषशास्त्र में मंगल ग्रह को नव ग्रहों का सेनापति माना जाता है। मान जाता है कि मंगल ग्रह युद्ध, वीरता, शौर्य और उत्साह का ग्रह है। जिनकी कुण्डली में मंगल ग्रह ऊच्च भाव में होता है वो हर क्षेत्र में जोश और उत्साह से कार्य करते हैं और सफलात प्राप्त करते हैं। इसके अलाव जिनकी कुण्डली में मंगल ग्रह निम्न भाव का होता है उनमें आत्मविश्वास की कमी होती है। जिस कारण वो सही दिशा और शक्ति से प्रयास नहीं कर पाते हैं और सफलता प्राप्त करना मुश्किल होता है। आइए जानते हैं मंगल दोष से मुक्ति के

मंगल दोष से मुक्ति के उपाय

ज्योतिषशास्त्र में मंगलवार के दिन को मंगल ग्रह से संबंधित माना जाता है। इस दिन विधि पूर्वक मंगल ग्रह का व्रत और पूजन करने से मंगल दोष से मुक्ति मिलती है। जिन लोगों की कुण्डली में मंगल दोष व्याप्त हो, उन्हें मंगलवार के दिन हनुमान जी और मंगल ग्रह का पूजन करना चाहिए। इस दिन लाल रंग के वस्त्र पहन कर, लाल रंग की वस्तुओं या मिठाई का दान करें। इसके साथ पूजन में मंगल स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से कुण्डली में व्याप्त मंगल दोष से मुक्ति मिलती 

मंगल स्तोत्र

रक्ताम्बरो रक्तवपु: किरीटी चतुर्मुखो मेघगदी गदाधृक्। धरासुत: शक्तिधरश्र्वशूली सदा मम स्याद्वरद: प्रशान्त: ।।1।।

ॐमंगलो भूमिपुत्रश्र्व ऋणहर्ता धनप्रद:। स्थिरात्मज: महाकाय: सर्वकामार्थसाधक: ।।2।।

लोहितो लोहिताऽगश्र्व सामगानां कृपाकर:। धरात्मज: कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दन: ।।3।।

अऽगारकोतिबलवानपि यो ग्रहाणंस्वेदोदृवस्त्रिनयनस्य पिनाकपाणे: । आरक्तचन्दनसुशीतलवारिणायोप्यभ्यचितोऽथ विपलां प्रददातिसिद्

भौमो धरात्मज इति प्रथितः प्रथिव्यांदुःखापहो दुरितशोकसमस्तहर्ता। न्रणाम्रणं हरित तान्धनिन: प्रकुर्याध: पूजित: सकलमंगलवासरेषु ।।5।।

एकेन हस्तेन गदां विभर्ति त्रिशूलमन्येन ऋजुकमेण। शक्तिं सदान्येन वरंददाति चतुर्भुजो मंगलमादधातु ।।6।।

यो मंगलमादधाति मध्यग्रहो यच्छति वांछितार्थम्। धर्मार्थकामादिसुखं प्रभुत्वं कलत्र पुत्रैर्न कदा वियोग: ।।7।।

कनकमयशरीरतेजसा दुर्निरीक्ष्यो हुतवह समकान्तिर्मालवे लब्धजन्मा। अवनिजतनमेषु श्रूयते य: पुराणो दिशतु मम विभूतिं भूमिज: सप्रभाव: ।।8।।

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