रंग बदल रहा श्रीकृष्ण की गंगा का जल, जानिए कैसे पड़ा मानसी गंगा नाम

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आचमन न बिगाड़ दे श्रद्धालुओं की तबियत। श्रीकृष्ण ने मन से उत्पन्न किया तो नाम पड़ा मानसी गंगा। प्रदूषण की आवाज राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) में भी गूंज चुकी है लेकिन नतीजा शून्य ही रहा। मानसी गंगा को समस्त पापों का नाश कर मोक्ष दायिनी बताया जात

गोवर्धन स्थित मानसी गंगा जिसे श्रीकृष्ण की गंगा भी कहा जाता है।

आगरा,। कभी काला तो कभी हरा, फिलहाल दूध सा मिश्रित मानसी गंगा का जल रोजाना रंग बदल रहा है। प्रशासनिक देखरेख के अभाव में मानसी गंगा का यह स्वरूप प्रदूषित झील में परिवर्तित हो चुका है। जल में आक्सीजन की मात्रा बनी रहे। इसके लिए प्रशासन ने फव्वारे लगाए थे, लेकिन वर्तमान में जल पूर्णतः प्रदूषण की गिरफ्त में है।

प्रदूषण की आवाज राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) में भी गूंज चुकी है लेकिन नतीजा शून्य ही रहा। मोक्षदायिनी भागीरथी गंगा को भगवान श्रीकृष्ण ने यहां मन से उत्पन्न किया, जिससे गंगा को यहां मानसी गंगा के नाम से जाना जाने लगा। गोवर्धन में गिरिराज जी की परिक्रमा लगाकर श्रद्धालु मानसी गंगा में आचमन और स्नान करते हैं। प्रदूषण मुक्त करने के लिए जागरूकता अभियान भी योजना में शामिल किया गया था, लेकिन जल निगम ने काम पूरे नहीं कराए। घाट और बुर्ज अब टूटने लगे हैं। बारिश के जल को स्वच्छ करने के लिए लगा फिल्टर का अस्तित्व भी अब मिट गया है। वर्तमान में मानसी गंगा का हाल यह हो गया है कि इसका पानी रोजाना रंग बदल रहा है।

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भगवान श्रीकृष्ण के मन से उत्पन्न मानसी गंगा को समस्त पापों का नाश कर मोक्ष दायिनी बताया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार श्रीकृष्ण ने गोपियों के कहने पर वृष हत्या के पाप से मुक्त होने के लिए अपने मन से इसे प्रकट किया। इसलिए इसका नाम मानसी गंगा पड़ा तथा इसमें स्नान कर पाप मुक्त हुए। वहीं एक बार श्री नंदबाबा, यशोदा मैया सभी ब्रजवासियों सहित चार धाम की तीर्थ यात्रा पर जा रहे थे। रात्रि को इन्होंने गोवर्धन में विश्राम किया। कृष्ण ने सोचा सारे तीर्थ ब्रज में विद्यमान होने चाहिए। उन्होंने गंगा सहित चारों तीर्थ ब्रज मंडल में प्रकट किए।

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