यूपी विधानसभा चुनाव 2022 : साझेदारी के मंच पर अपमान का घूंट पीकर रहे गए जमीर, अधूरे रह गए अरमान

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RGA न्यूज़

ऐसा भूलवश हुआ या किसी रणनीति का हिस्सा था स्पष्ट न हो सका। मगर इतना जरूर समझ में आया कि साझेदारी के मंच पर जमीर के अरमान पूरे न हो सके। राजनीति की जमीन से जुड़े जमीर इगलास रैली में अपमान का घूंट पीकर रह गए।

राजनीति की जमीन से जुड़े 'जमीर' इगलास रैली में अपमान का घूंट पीकर रह गए।

अलीगढ़ ऐसा भूलवश हुआ, या किसी रणनीति का हिस्सा था, स्पष्ट न हो सका। मगर, इतना जरूर समझ में आया कि साझेदारी के मंच पर 'जमीर' के अरमान पूरे न हो सके। राजनीति की जमीन से जुड़े 'जमीर' इगलास रैली में अपमान का घूंट पीकर रह गए। सोचा नहीं होगा कि 'जाट प्रमुख' गले लगाने की जगह इस तरह पीछे धकेल देंगे। बात चुभ गई और दर्द बाहर गया। मीडिया के सामने मंच पर हुए अपमान की पीड़ा जाहिर कर दी। यह दूसरी बार था, जब उन्होंने अपमान महसूस किया। पूर्व में तब महसूस हुआ, जब उनका टिकट काटकर किसी और को थमा दिया गया। तब इससे ज्यादा पीड़ा हुई थी, इतनी कि साइकिल छोड़कर हाथी पर सवार हो गए। नाराज होना स्वाभाविक था, आखिर वो दर्द अपनों ने दिया था। मंच पर जो हुआ, उसे हर कोई अपने-अपने नजरिये से देख रहा है। 'हैदराबादी' ने तो खूब चुटकी ली है।

परंपरा थी, निभाकर चल दिए

नगर निगम कार्यकारिणी की बैठक हो या कोई अधिवेशन, हंगामा खड़ा करना परंपरा सी बन गई है। जवाहर भवन में पिछले दिनों हुए सामान्य अधिवेशन में यही परंपरा निभाई गई। फिर सबकुछ सामान्य हो गया। सदन से बाहर आकर सदस्यों ने साथ खाना खाया। हंसे, बोले, लगा नहीं कि अंदर ये झगड़ भी रहे थे। झगड़े की कोई खास वजह भी नहीं थी। बस, अफसर अपनी सोच न बदल सके और कर्मचारी रवैया। इस सोच और रवैये के साथ पार्षद सामंजस्य न बैठा सके। हंगामा तो होना ही था। जनसमस्याएं उठाना पार्षदों की जिम्मेदारी है अौर इनका निस्तारण कराना अफसरों की। अफसर ईमानदारी से अपनी जिम्मेदारी निभाएं तो किसी को कहने का मौका ही न मिले। लेकिन, ऐसा हो नहीं पा रहा। शहर को स्मार्ट बनाने के दावे कर रहे अफसर कई क्षेत्रों में मूलभूत सुविधाएं तक उपलब्ध नहीं करा पा रहे हैं। जबकि, निगम का बजट हर साल बढ़ रहा है।

अपने घर मेें भी झांकिए हुजूर

कब्जाई गईं सरकारी संपत्तियों पर सरकार के इरादे स्पष्ट हैं। तभी सरकारी जमीनों पर खड़ी अवैध इमारतें ढहाई जा रही हैं, तमाम भूमाफिया जेल में हैं। लेकिन, उनका क्या, जो महकमों में पल रहे हैं। शहर की सरकारी संपत्तियों पर हो रहे कब्जों को लेकर एक पार्षद ने तो सीधे ही आरोप लगा दिए। अधिवेशन में अफसरों से कह दिया कि अपने घर में भी झांक लीजिए। कुछ उदाहरण भी दिए, जहां सरकारी संपत्तियां अंदर वालों की मदद से कब्जाई गईं। कार्रवाई के नाम पर सिर्फ खानापूरी हुई। अन्य पार्षदों ने भी सुर में सुर मिला दिया, फिर कई और मामले सामने आ गए। इससे अधिवेशन में हलचल मच गई। जिन पर आरोप लगाए गए, वे अपनी वीरता का गुणगान करते नजर आए। कहा, कनपटी पर पिस्टल सटी होने पर भी जमीन नहीं जाने दी। हर जांच से गुजरने की बात भी कही। कुछ ने भरोसा कर लिया, कुछ ने नहीं।

मेडाक्टर साहब ने संभाल ली कुर्सी

सफाई वाले महकमे में डाक्टर साहब ने कुर्सी आखिर संभाल ही ली। इस कुर्सी के चक्कर में उन्होंने महकमे के न जाने कितने चक्कर लगा लिए। कुर्सी संभालने का आदेश ऊपर से मिला था, इसलिए मजबूरी भी थी। अब उनके कुर्सी संभालने से कई लोगों के पेट में दर्द शुरू हो गया है। जो व्यवस्था बना रखी थी, वह भंग होती नजर आ रही है। डाक्टर साहब की जिम्मेदारी अब बढ़ गई है, काम भी महत्वपूर्ण हैं। शहर की सफाई व्यवस्था उन्हीं के हाथों में है। कर्मचारियों को साधने के अलावा अन्य जरूरतों काे भी पूरा करना है। साधन और संसाधनों को जुटाने में उनका अहम रोल है। अफसरों से तालमेल बनाकर अब तक ये व्यवस्थाएं चल रही थीं। आगे भी ऐसे ही चलती रहें, इसी के प्रयास किए जा रहे हैं। ये डाक्टर साहब पर है कि वे इस सिस्टम में कब तक खुद को ढाल पाते हैं।

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