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RGAन्यूज़
विधानसभा चुनावों में बसपा को भले ही जीत कम सीटों पर मिली लेकिन दिग्गजों के समीकरण बिगाडऩे में पीछे नहीं रही। जिले की सभी सीटों पर वोट मिलते रहे हैं। जो कि विरोधी दलों की चिंता का कारण भी रहे
विधानसभा चुनावों में बसपा को भले ही जीत कम सीटों पर मिली, लेकिन समीकरण बिगाडऩे में पीछे नहीं र
, अलीगढ़। विधानसभा चुनावों में बसपा को भले ही जीत कम सीटों पर मिली, लेकिन दिग्गजों के समीकरण बिगाडऩे में पीछे नहीं रही। जिले की सभी सीटों पर वोट मिलते रहे हैं। जो कि विरोधी दलों की चिंता का कारण भी रहे। कहीं बसपा प्रत्याशी मुकाबले में नजर आए तो कहीं वोट काटते दिखे। वर्ष 1991 से बसपा प्रत्याशी मैदान में आए। तब से अब तक छह विधायक ही पार्टी को मिले। 2017 के चुनाव बसपा खाली हाथ थी, लेकिन कार्यकर्ताओं का जोश कम नहीं है। इस बार होने वाले चुनाव के लिए हर सीट से दावेदारों की लंबी लिस्ट है। छर्रा विधानसभा क्षेत्र से तिलकराज यादव और बरौली से पंडित नरेंद्र शर्मा को प्रत्याशी घोषित किया जा चुका है। हालांकि, अभी अधिकृत सूची जारी नहीं हुई है।
बसपा के लिए 1991 में पहला विधानसभा चुनाव था
बसपा के लिए 1991 का पहला विधानसभा चुनाव था। तब सातों सीटों पर प्रत्याशियों को वोट मिले। किसी सीट पर चौथा तो किसी पर पांचवा स्थान मिला। लेकिन 1993 के चुनाव में विरोधियों को चौंका दिया। अलीगढ़ सीट पर भाजपा के किशनलाल दिलेर मात्र दो हजार वोट से जीते। दूसरे नंबर पर बसपा के अब्दुल खालिक थे। कोल और खैर विधानसभा क्षेत्र में भी बसपा प्रत्याशी दूसरे स्थान पर थे। बरौली में तीसरे स्थान पर। 2002 का चुनाव में बसपा का स्वर्णिम इतिहास रहा है। सात में से तीन सीट पर बसपा ने अपना परचम लहराया था। कोल से चौ. महेंद्र सिंह, बरौली से ठा. जयवीर सिंह और खैर से प्रमोद गौड़ विधायक बने। मायावती सूबे की सीएम बनीं तो कैबिनेट मंत्री के रूप में ठा. जयवीर ङ्क्षसह व राज्यमंत्री के रूप में चौ. महेंद्र ङ्क्षसह थे। जाट लैंड में खैर से प्रमोद गौड विधायक चुने गए थे। 2005 में हुए उपचुनाव में पूर्व प्रधान मंत्री चौधरी चरण ङ्क्षसह की कर्मस्थली इगलास में बसपा के मुकुल उपाध्याय ने जीत हासिल की
कोल में दो बार जीत
नए परसीमन से पहले कोल विधानसभा क्षेत्र भाजपा का गढ़ कहा जाता था। इस सीट पर भाजपा के किशन लाल दिलेर तीन बार विधायक चुने गए। इनके सांसद बनने के बाद 1996 में रामसखी कठेरिया ने इस सीट कमल खिलाया था। 2002 में विधानसभा चुनाव हुआ, तब रामसखी कठेरिया जनक्रांति पार्टी में शामिल हो गईं। भाजपा ने राजेंद्र ङ्क्षसह पर दांव लगाया। जिले की सियासत में नए चेहरे के रूप में चमके बसपा के चौ. महेंद्र ङ्क्षसह ने भाजपा का लगातार चौथी बार कमल खिलने से रोक दिया। चौ. महेंद्र ङ्क्षसह ने 2007 में भी चुनाव में जीत दर्ज की थी।
बरौली में मिली सफलता
बसपा से ठा. जयवीर ङ्क्षसह ने वर्ष 2002 में बरौली विधानसभा सीट पर कांग्रेस के ठा. दलवीर ङ्क्षसह को शिकस्त दी थी। उस समय ठा. दलवीर ङ्क्षसह राज्यमंत्री थे। ठा. जयवीर ङ्क्षसह ने वर्ष 2007 में भी ठा. दलवीर ङ्क्षसह को शिकस्त दी थी। जयवीर सिंह कैबिनेट मंत्री बने थे। इन्हें 2012 के चुनाव में ठा. दलवीर ङ्क्षसह ने मात दी। तब बसपा सुप्रीमों ने ठा. जयवीर ङ्क्षसह को एमएलसी बनवा
लोकसभा सीट पर किया कब्जा
अलीगढ़ लोकसभा सीट पर भी बसपा ने कब्जा किया है। नए 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में हाथरस लोकसभा क्षेत्र से कटकर अतरौली विधानसभा क्षेत्र अलीगढ़ लोकसभा क्षेत्र में शामिल किया गया था। इसमें बसपा प्रत्याशी राजकुमारी चौहान की जीत हुई थी।
योगी-मोदी लहर में बने महापौ
2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रचंड बहुमत जीती। यह योगी-मोदी की लहर का समय था। इस दौरान 2018 में निकाय चुनाव हुआ। इसमें बपसा ने पूरी ताकत झोंकी। मोहम्मद फुरकान को प्रत्याशी बनाया। मुकाबला भाजपा के डा. राजीव अग्रवाल से हुआ। इस पद पर भाजपा पांचवी बार कब्जा करने के लिए मैदान में थी। मगर बसपा ने महापौर की कुर्सी पर कब्जा कर लिया