इगलास विधानसभा चुनाव: अब किसको तारेंगे खेरेश्वरधाम, श्रीकृष्‍ण व बलराम ने पाया था आश्रय

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RGAन्यूज़

अलीगढ़ रण का गढ़ है। यहां के शासक कोल से रण करने आए श्रीकृष्ण और बलराम ने खेरेश्वरधाम में आश्रय पाया था। वो द्वापर युग का रण था। अब चुनावी रण है। राजनीतिक दलों के योद्धा अब खेेरेश्वरधाम से आस लगाए हैं।

चुनावी विगुल बनने के बाद माहौल गर्माने लगा है।

अलीगढ़,  अलीगढ़ रण का गढ़ है। यहां के शासक 'कोल' से रण करने आए श्रीकृष्ण और बलराम ने खेरेश्वरधाम में आश्रय पाया था। वो द्वापर युग का रण था। अब चुनावी रण है। राजनीतिक दलों के योद्धा अब खेेरेश्वरधाम से आस लगाए हैं। उनकी जिस पर कृपा बरसेगी, वही ब्रज के इस पश्चिमी द्वार से पूरब की राह पर चलकर भविष्य के सूरज का दर्शन कर पाएगा। यही मनोकामना लिए इगलास विधानसभा क्षेत्र में स्थापित खैर विधानसभा से लगते इस सिद्धपीठ में सभी नतमस्तक हो रहे हैं। इन दोनों विधासभा क्षेत्रों के लोगों में इस सिद्धपीठ के प्रति अपार आस्था है। इनकी कामना क्षेत्र के विकास के लिए अच्छे प्रत्याशी की है। मौजूदा दौर में दोनों विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा के विधायक हैं। चुनावी विगुल बनने के बाद माहौल गर्माने लगा है। सभी दल जोर आजमाइश कर रहे हैं। जातिगत आंकड़े लेकर सियासी दल गुणा-भाग में जुटे हुए हैं। मतदाता भी अपने पैमाने से दलों की ताकत नाप रहा है। चाय के साथ हो रहीं चर्चाओं में वे मुद्दे भी गरमा रहे हैं, जो कुर्सी बैठे राजनेताओं के बस्ते में ठंडे ही पड़े रहे। यही मुद्दे इस चुनावी रण में मतदाताओं का हथियार 

बाईपास बनाने का भरोसा

जिले में दो ही सीट अनुसूचित जाति के लिए आरिक्षत हैं। खैर और इगलास। इन पर जाट नेताओं का वर्चस्व रहा। इगलास तो मिनी छिपरौली कहा जाता है, खैर भी जाटलैंड के नाम से चर्चित है। इन विधानसभा क्षेत्रों में अन्य मुद्दों के अलावा खासकर किसानों से जुड़े मुद्दे हमेशा गरमाते रहे। इससे पहले की सरकारों ने भी तमाम दावे-वादे किए थे, लेकिन इन क्षेत्रों के समग्र विकास में सरकारें चूक गईं। अब मतदाता फिर आस लगाए हुए हैं। खैर व जट्टारी में सड़कें विकसित न होने से जाम की समस्या अभी भी बनी हुई है। जट्टारी के रामकिशाेर बताते हैं कि जाम के चलते किसानों का काफी नुकसान होता है। मंडियों तक खाद्यान्न, सब्जियां पहुंचाने में घंटों लग जाते हैं। इससे समस्या से निजात नहीं मिल सकी। टप्पल के राजवीर का कहना है कि अलीगढ़-टप्पल मार्ग पर बाईपास की मांग वर्षों पुरानी है। विधानसभा चुनाव हो या लोकसभा, सियासी दलों के नेता चुनाव जीतने पर बाईपास बनाने का भरोसा दिलाते हैं, लेकिन इस भरोसे पर कभी खरे न उतरे। इस बार भी मांग हो रही है। मालव के उदयवीर कहते हैं कि क्षे

मलखान ने खिलाया कमल

इगलास ने अब तक 20 विधायक दिए हैं। सभी दलों ने इस सीट पर जोर आजमाइश की, सफलता भी मिली। 1974 में चौ. चरण सिंह के करीबी राजेंद्र सिंह चुनावी मैदान में उतरे थे और चार बार विधायक बने। 1991 में चौ. चरण सिंह की बेटी ज्ञानवती सिंह विधायक बनी थीं। 1996 में पहली बार मलखान सिंह ने इस सीट पर भाजपा का कमल खिलाया। वहीं, 2005 के उप चनुाव में बसपा ने अपना खाता खोला था। तब पूर्व ऊर्जामंत्री रामवीर उपाध्याय के अनुज मुकुल उपाध्याय ने जीत दर्ज की थी। इसके बाद 2007 और 2012 के चुनाव में ये सीट रालोद के खाते में गई। 2017 में भाजपा से राजवीर दिलेर विधायक बने। 2019 के उपचुनाव में भाजपा ने अपना वर्चस्व कायम रखा। इस सीट पर भाजपा तीन बार, रालोद व बीकेडी दो-दो बार, कांग्रेस पांच, जनता दल, एलकेडी, जनता पार्टी (एससी), कांग्रेस (आइ), कांग्रेस (यू), जनता पार्टी ने एक-एक, दो बार निर्दलीय विधायक भी बने। सपा खाता न खोल सकी। इस चुनाव में सपा-रालोद गठबंधन मैदान में है

सहर दल ने की जोर आजमाइश

आजादी के बाद 1957 में खैर को टप्पल सीट का दर्जा मिला था। तब कांग्रेस नेता चौ. देवदत्त सिंह विधायक बने थे। 1962 में निर्दलीय प्रत्याशी चौ. महेंद्र सिंह चुनाव जीते। इनके बाद इस सीट से कोई निर्दलीय प्रत्याशी नहीं जीता। 1967 में कांग्रेस से चौ. प्यारेलाल विधायक बने। इसके बाद बीकेडी, कांग्रेस, एलकेडी ने जीत दर्ज की। 1991 में पहली बार चौ. महेंद्र सिंह ने इस सीट पर जीत दर्ज कर भाजपा का खाता खोला था। 2012 में सुरक्षित सीट होने के बाद रालाेद नेता भगवती प्रसाद सूर्यवंशी चुनाव जीतकर विधायक बने। 2017 में भाजपा ने जीत दर्ज की। 19 विधानसभा चुनावों में कांग्रेस सात, भाजपा तीन, बसपा दो, जनता दल दो, रालोद, एलकेडी, जनता पार्टी, बीकेडी और स्वतंत्र पार्टी ने एक-एक बार जीत दर्ज की।

 

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