यूपी विधानसभा चुनाव: दौना कांड से प्रयागराज में उभरी बसपा स्मारक निर्माण के बाद डूबी

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RGAन्यूज़

घूरपुर के दौना में अनुसूचित जाति की एक महिला को निर्वस्त्र कर गांव में घुमाने और 25 जनवरी 2005 को शहर पश्चिमी के बसपा विधायक राजू पाल की हत्या ने जनता को इतना आक्रोशित किया कि तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को 2007 के विधानसभा चुनाव में सत्ता गंवानी प

प्रयागराज में दो सीटें हैं अभी बसपा के खाते में, 2022 में सभी 12 पर कब्जे का दावा

 प्रयागराज। दलित शोषित वर्ग के सामाजिक उत्थान के सिद्धांतों पर चलकर प्रदेश की सत्ता तक  पहुंच चुकी बहुजन समाज पार्टी के 30 साल के कालखंड में कई उतार चढ़ाव आए। 20 साल पहले घूरपुर के दौना कांड ने पार्टी में ऐसी जान फूंकी कि अनुसूचित जाति इसकी ग्रास वोटर बन गई। और फिर जब-जब पार्टी से टूटकर नेताओं ने दूसरे राजनीतिक दल का दामन थामा तब-तब उन्हीं अनुसूचित जाति के मतदाताओं ने अपनी आला नेता के पक्ष में खड़े होकर जीत भी दिलाई। इसी का परिणाम था कि 2007 में दलित-ब्राह्मण गठजोड़ करते हुए मायावती ने पूर्ण बहुमत से भी सरकार बनाई थी लेकिन राजधानी लखनऊ में स्मारक व पत्थर के हाथियों ने अगले ही चुनाव में भारी नुकसान पहुंचाया

अत्याचार नहीं हुआ बर्दाश्त

1993 के विधानसभा चुनाव में मेजा, करछना, बारा, प्रतापपुर, हंडिया, सोरांव, नवाबगंज सीट पर बसपा का जबर्दस्त प्रदर्शन हुआ। उस वर्ष बसपा का साथ पाकर मुलायम सिंह ने सरकार बनाई थी तो बसपा संस्थापक कांशीराम से तय हुआ था कि अनुसूचित जाति के लोगों की सामाजिक सुरक्षा होगी। लेकिन परिणाम इस सहमति से उलट आने लगे। इस पर अनुसूचित जाति के लोग बसपा के पक्ष में खुलकर आने लगे। परिणाम रहा कि 1996 में इसी ताकत के बलबूते मायावती ने भाजपा के समर्थन से प्रदेश में सरकार बना ली और उनके कार्यकाल में कानून व्यवस्था में सुधार आया

दौना कांड और राजूपाल हत्याकांड ने दिलाई बढ़त

घूरपुर के दौना गांव में अनुसूचित जाति की एक महिला को निर्वस्त्र कर गांव में घुमाए जाने और 25 जून 2005 को शहर पश्चिमी के बसपा विधायक राजू पाल की सरेआम हत्या ने जनता को इतना आक्रोशित किया कि तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को 2007 के विधानसभा चुनाव में सत्ता गंवानी पड़ी और अनुसूचित जाति ही नहीं, ब्राह्मणों ने भी ताकत लगाकर प्रदेश में मायावती को पूर्ण बहुमत से सत्ता 

स्मारक से दांव पड़ा उल्टा

बहुजन समाज पार्टी का 2012 के विधानसभा चुनाव से अब तक का हश्र राजधानी लखनऊ में स्मारकों के निर्माण और पत्थरों के हाथियों के चलते हुआ। इसका विपरीत असर हुआ कि पार्टी के प्रत्याशी अधिकांश सीटों पर दूसरे नंबर पर पहुंच गए। फाफामऊ सीट पर गुरु प्रसाद मौर्य 46654 वोट पाकर दूसरे नंबर पर, सोरांव सीट पर बाबूलाल भंवरा 47852 वोट पाकर दूसरे स्थान पर, फूलपुर सीट पर प्रवीण पटेल 64998 वोट पाकर दूसरे स्थान पर, प्रतापपुर सीट पर मोहम्मद मुज्तबा सिद्दीकी 49774 वोट पाकर दूसरे स्थान पर, हंडिया सीट पर राम मिलन यादव 31930 वोट पाकर तीसरे स्थान पर, मेजा सीट पर आनंद कुमार उर्फ कलेक्टर पांडेय 44083 वोट पाकर दूसरे स्थान पर, इलाहाबाद उत्तरी में हर्षवर्धन बाजपेई 38695 वोट पाकर दूसरे स्थान पर, इलाहाबाद दक्षिण सीट पर नंद गोपाल गुप्ता नंदी 42626 वोट पाकर दूसरे स्थान पर, बारा में भोलानाथ चौधरी 42426 वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहे। हालांकि कोरांव, करछना और शहर पश्चिमी की सीटें ही बसपा के पास रह गई थीं।

मालिक है जनता

जनता लोकतंत्र की मालिक है। वह भाजपा के कुशासन को जान चुकी है। 2022 के चुनाव में जनता भाजपा को करारा सबक सिखाकर मायावती को पांचवीं बार मुख्यमंत्री बनाने की पूरी तैयारी में है। हमारे मतदाता अधिकतर ग्रामीण क्षेत्रों में होते हैं। जनता और इनमें अनुसूचित जाति के मतदाताओं ने चार बार मायावती का सुशासन देखा है, इसलिए पूरी तरह आश्वस्त हैं कि 2022 में भी पूर्ण बहुमत की सरकार बनेगी और मायावती मुख्यमंत्री बनेंगी।

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