जानिए कौन है अतुल सिंह जिन्हें कहा जाता है पीलीभीत का बाघ पुरुष

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RGAन्यूज़

Pilibhit Tiger Man Atul Singh अतुल सिंह को जब भी पीलीभीत बाघ अभयारण्य के निकट किसी गांव के पास किसी बाघ के भटक जाने का समाचार मिलता है तो उनकी आंखों में हमेशा एक रोमांच जाग उठता है।एक बार उन्होंने तीन दिनों तक एक बाघ का पीछा किया था

जानिए कौन है अतुल सिंह जिन्हें कहा जाता है पीलीभीत का बाघ पुरुष

बरेली, ।  : अतुल सिंह को जब भी पीलीभीत बाघ अभयारण्य के निकट किसी गांव के पास किसी बाघ के भटक जाने का समाचार मिलता है, तो उनकी आंखों में हमेशा एक रोमांच जाग उठता है, एक बार वर्ष 2015 में उन्होंने तीन दिनों तक एक बाघ का पीछा किया था और उस प्राणी के बचाव और मुक्ति में वन विभाग की सहायता की थी। अतुल कहते हैं, ''बाघ एक सुंदर जीव है, कभी-कभी उसे लगता है कि उसके आसपास जो कुछ हो रहा होता है, उसकी उसे कोई परवाह नहीं होती, जबकि अगले ही पल आप उसे आपको डराने की कोशिश करता देख सकते हैं।'' बाघ अभयारण्य के समीप माधोटांडा गांव के सिंह बीते 15 वर्षों से एक बाघ मित्र हैं, जिन्हें बाघों से कम से कम एक दर्जन सामना आज भी याद हैं। वर्ष 2019 में जब डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया ने पीलीभीत में बाघ-मित्र (बाघों का मित्र) कार्यक्रम शुरू किया, तब सिंह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने स्वयं इसमें अपना नाम दर्ज कराया।

घनी मूंछों वाले और बाघ के चित्र वाली टोपी पहने 48 वर्षीय अतुल आसपास के गांवों के युवाओं के एक प्रेरणास्रोत रहे हैं। उनके अनुसार बचाव कार्य में उन्हें भाग लेते देखने के बाद कम से कम दो युवा अपनी इच्छा से डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया के बाघ मित्र कार्यक्रम में शामिल हो चुके हैं। श्री सिंह ने कहा, ''किसी बाघ को बचाने का मुझे जब भी अवसर मिलता है, तो मुझे संतोष होता है।'' उनकी मूंछों के पीछे उनकी मुसकराहट झलक 

उनके दादा कुंवर भरत सिंह एक जानेमाने शिकारी थे, जो गांवों में घुसकर लोगों पर हमला करने वाले बाघों का पता लगाने में इस क्षेत्र में काम करने वाले अंग्रेज पदाधिकारियों की सहायता किया करते थे। उन्होंने कहा, ''मैंने अपने दादा को देखा था और बाघों का पीछा करने की कहानियां सुनी थीं, इसलिए इस प्राणी के प्रति मुझमें आकर्षण जागा और मैंने उसके व्यवहारों को पढ़ना और देखना शुरू किया। अंततः मैंने वर्ष 2005 से डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया के बचाव कार्यक्रमों में भाग लेना शुरू किया।'

अतुल वर्ष 2005 में बाघ से अपनी पहली मुलाकात याद करते हैं, जब उन्हें निकट के एक गांव में एक बाघिन के घुस आने की सूचना मिली। वह सीधा बैठते हुए कहते हैं, ''उन दिनों हमारे पास मोबाइल फोन नहीं थे, बाघ के पैरों के निशानों का पीछा करता और लोगों से उसका पता पूछता मैंने लगभग 20 किलोमीटर का सफर पैदल तय किया। सिंह जब भी उस बाघ की बात करते हैं, उनकी आंखें चमक उठती हैं।

उस बाघिन ने हल जोतते एक बुजुर्ग व्यक्ति समेत कुछ लोगों पर हमला किया था। सिंह के अनुसार, जब उस व्यक्ति ने उस बाघिन को दूर भगाने की कोशिश की, तो उसने उसकी हथेली पर काटा था। आंखों में चमक के साथ सिंह उस घटना को याद करते हुए कहते हैं, ''मैं इन कहानियों को संजोता और बाघिन के अनुमानित रास्ते पर अपने लिए एक रास्ता बनाता जाता। मैंने उसे एक नाम भी दिया था और स्वयं से कहता कि मैं एक बार तुम्हें देखना चाहता हूं। सफर रास्ते के अनुरूप आम तौर पर पैदल अथवा किसी मोटरसाइकिल पर होता।'' आखिरकार उन्होंने एक वन के किनारे एक पेड़ के नीच आराम करती उस बाघिन को 

सिंह कहते हैं, ''वह सुंदर थी और उसकी आंखें चमकदार थीं। बाघिन का आगे का पंजा चोटग्रस्त था और वह शिकार नहीं कर सकती थी, इसीलिए वह इस मानव बस्ती में भटक आई थी। हमने उसे पकड़ने की सूचना वन विभाग को दी थी, पर उनके आने के पहले वह गायब हो गई। उसके बाद न तो मैंने उसे कभी देखा न ही उसके बारे में कभी कुछ सुना।'

सिंह के अनुसार, वर्ष 2017 की एक हाल की मुलाकात उनकी याददाश्त में बनी रहेगी, जब एक बाघ को बचाने पर लोगों की भीड़ ने उन्हें लगभग मार ही डाला था। वह बाघ, एक विशाल नर, इस बाघ अभयारण्य के किनारे बेरी मनरिया नामक एक गांव में भटक गया था और उसने कई लोगों पर हमला किया था, जिनमें से कुछ गंभीर रूप से घायल हो गए थे।

अतुल, जिनके अब कई साथी हैं, ने क्षेत्र के गन्ने के खेतों से बाघ का पता लगाना शुरू किया। सिंह ने कहा, ''कुछ दिनों से वर्षा हो रही थी, पर हमने बाघ का पता लगाना जारी रखा क्योंकि वह पहले ही कई लोगों पर हमला कर चुका था, कुछ मवेशियों को मार चुका था और उपद्रव मचा रहा था।''

आखिकार बाघ लगभग 20 किलोमीटर दूर एक खेत में मिल ही गया। सिंह को याद है कि जब बचाव कार्य चल रहा था, तब जिस क्षेत्र में वह बाघ छिपा था, उसमें नशे में दिखाई देता गांव का एक युवक जैसे-तैसे पहुंच गया और उसे लुभाने लगा। उस पर बाघ ने हमला कर दिया और बाद में चोटों के कारण उस युवक की मृत्यु हो गई।

सिंह ने कहा, ''ग्रामीणों में बहुत गुस्सा था। वे बाघ को मार डालने के लिए वन पदाधिकारियों को पहले ही घेर चुके थे। जब बचाव कार्य चल रहा था, तब मैंने ग्रामीणों को मनाने की कोशिश की, पर वे मुझे भी भला-बुरा कहने लगे। आखिरकार काफी संघर्ष के बाद वन कर्मचारियों ने बाघ को घेरा और बचा लिया।

सिंह के अनुसार, उनके परिवार के लोगों ने शुरू में उनके कार्य का विरोध किया, पर अब उन्हें सब सम्मान देते हैं। लखनऊ के एक विश्वविद्यालय से कला में स्नातक की पढ़ाई कर चुके सिंह अपनी पुश्तैनी जमीन से जीवन-यापन करते हैं। उन्होंने कहा, ''जब मेरे परिवार के सदस्यों को धीरे-धीरे पता चला कि यह मेरे जीवन का एक मकसद है, तो अब उनमें से कुछ वन सुरक्षा की बात भी करने लगे हैं।''

अब तक, छह बाघों, एक जंगल बिल्ली, तीन घड़ियालों, छह अजगरों और कई शाकाहारी जीव-जंतुओं को बचाने में डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया और पीलीभीत बाघ अभयारण्य की सहायता करने का श्रेय सिंह को जाता है। उनमें से कुछ 2017 के रामपुरा बाघ, भेरिया और 2018 के चंदू बाघ तथा 2021 के ककरुआ और चुहिया बाघ थे। अतुल सिंह रात-दिन सहयोग कर रहे थे। इसके अतिरिक्त, जागरूकता कार्यक्रमों के जरिये समुदायों में और ग्राम स्तर पर परस्पर व्यवहार से जन जागरूकता तथा वन संरक्षण शिक्षा का प्रसार करने में अतुल सिंह डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया और वन विभाग की सक्रियता से सहायता कर रहे हैं। अतुल सिंह को उनके क्षेत्र के अन्य गांवों के लोगों में बहुत अधिक सम्मान प्राप्त है और वह पीलीभीत के बाघ मित्रों को प्रेरणा और प्रोत्साहन भी देते हैं।

 

दल खेत के आसपास दलदलों से होकर बढ़ता चला जा रहा था, उन्होंने कहा, ''सफर जोखिम भरा था, दलदलों में एक दिन तक चलने के बाद, मुझे अहसास हुआ कि मेरे तलवों की चमड़ी छिलने लगी थी। खेतों, चरागाहों और दलदलों के रास्ते उस बाघ का पीछा करते लगा जैसे एक युग बीत गया हो।'' अपने सफर के दौरान सिंह ने उस बाघ का एक नाम भी रख दिया था।

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