तिर्वा विधानसभा : यहां जीत का मतलब...राजयोग, पढ़िए- इत्रनगरी की इस सीट पर 33 वर्षों से अद्भुत संयोग

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RGAन्यूज़

इत्रनगरी कन्नौज की तिर्वा विधानसभा सीट की अपनी अलग पहचान है यहां की राजनीति समीकरणों और दांव-पेंच के बीच फंसी है। इस सीट पर 33 वर्षों से अद्भुत संयोग ही देखने में आया है और जीत ने राजयोग का रास्ता खोला है

 तिर्वा विधानसभा : यहां जीत का मतलब...राजयोग, पढ़िए- इत्रनगरी की इस सीट पर 33 वर्षों से अद्भुत संयोगकन्नौज जनपद की तिर्वा विधानसभा सीट खास है।

कानपुर, चुनाव डेस्क। इत्रनगरी कन्नौज की तिर्वा विधानसभा सीट ऐसी है, जिस पर विजय का मतलब राजयोग का आशीर्वाद बन गया है। पिछले कई चुनावों में यह संयोग एक मिथक के रूप में स्थापित हो गया है। तिर्वा विधानसभा के करिश्माई राजनीतिक इतिहास पर प्रशांत कुमार की रिपोर्ट..।

राज करने की नीति के लिए राजनीति में दांव-पेच और समीकरणों की भूमिका बड़ी है तो संयोग और दुर्योग भी यहां हैरान करते हैं। राजनीतिक गलियारों में दुर्योग के उदाहरण के लिए नोएडा चर्चित है। राजनीतिक मान्यता सी स्थापित हो गई है कि जो मुख्यमंत्री नोएडा जाता है, उसकी सत्ता चली जाती है। दूसरी ओर, तीन विधानसभाओं वाली इत्रनगरी कन्नौज की तिर्वा सीट पर अद्भुत संयोग पिछले 33 वर्षों से देखने को मिल रहा है।

 

है, सरकार उसी की बनती है। मां अन्नपूर्णा की नगरी की जनता ने जिसे अपना विधायक चुना, उसे सत्ता सुख का आशीर्वाद मिला। अब 2022 के विधानसभा चुनाव में यहां 20 फरवरी को वोट डाले जाएंगे। ऐसे में तिर्वा किस दल के साथ सत्ता की अंगुली पकड़ेगा अथवा यहां जीत और सत्ता के रिश्ते का मिथक टूटेगा, यह समय ही बताएगा।

तिर्वा सीट पर कभी किसी एक राजनीतिक दल का कब्जा नहीं रहा। दिलचस्प यह, इस सीट के बदलते राजनीतिक रंग के साथ सत्ता भी बदलती रही है। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा से कैलाश राजपूत जीते तो प्रदेश में भाजपा की बहुमत वाली सरकार बनी। इससे पहले 2007 के चुनाव में कैलाश राजपूत ने बसपा के टिकट पर यहां चुनाव जीता था। उस समय बसपा सुप्रीमो मायावती मुख्यमंत्री बनीं थीं। साल 2012 के चुनाव में विजय बहादुर पाल सपा से चुनाव लड़े और जीत दर्ज की।

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इस साल अखिलेश यादव की बहुमत वाली सरकार बन गई। 2002 में भी विजय बहादुर पाल सपा से चुनाव लड़कर जीते थे और तब मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने और सत्ता की बागडोर संभाली। 1996 में कैलाश सिंह राजपूत ने भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की थी। उस समय भाजपा और बसपा गठबंधन की छह-छह माह की सरकार बनी थी। 1993 में सपा के अरविंद प्रताप सिंह चुनाव जीते। इस साल मुलायम सिंह यादव ने मुख्यमंत्री पद की कमान 

जनता दल की एंट्री से राजनीतिक बदलाव : जनता दल की एंट्री के बाद यहां भी राजनीतिक बदलाव को खूब बल मिला। 1985, उसके बाद 1989 के चुनाव में भी जनता दल ने यहां जीत दर्ज की। 1989 के चुनाव में भी यहां का संयोग दिखा। जनता दल ने यहां जीत दर्ज की और मुलायम सिंह मुख्यमंत्री बने।

1993 में सपा, 96 में भाजपा का खुला खाता : साल 1991 में अरविंद प्रताप सिंह जनता पार्टी से विधायक बने। दूसरे नंबर पर जनता दल से चुनाव लडऩे वाले देवेश्वर नारायण सिंह रहे। 1993 में सपा से अरविंद प्रताप सिंह ने जीत दर्ज की। दूसरे नंबर पर भाजपा के राम बक्स वर्मा थे। 1996 में इस सीट पर भाजपा के कैलाश राजपूत ने जीत हासिल की थी। 2002 में सपा से विजय बहादुर ने चुनाव जीता। 2007 में कैलाश राजपूत ने बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। 2012 में सपा के विजय बहादुर ने बसपा प्रत्याशी कैलाश राजपूत को हराकर दोबारा जीत दर्ज की।

1962 में पहला चुनाव : तिर्वा विधानसभा सीट पर पहला विधानसभा चुनाव 1962 में हुआ था। होरी लाल यादव प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से जीते थे। उन्होंने कांग्रेस के नंदराम को हराया था।

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