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रामघाट-कल्याण मार्ग से करीब सौ मीटर की दूरी पर स्थित मढ़ौली गांव में अब सियासी रंग भले किसी का जमे पर आस्था और भावनाओं के रंग में कल्याण ही हैं। कई घरों में लगीं उनकी तस्वीर इसकी गवाह हैं।
कल्याण सिंह अटल बिहारी वाजपेयी की अपेक्षाओं पर खरा उतरे।
अलीगढ़, रामघाट-कल्याण मार्ग (पहले रामघाट रोड) से करीब सौ मीटर की दूरी पर स्थित मढ़ौली गांव में अब सियासी रंग भले किसी का जमे, पर आस्था और भावनाओं के रंग में कल्याण ही हैं। कई घरों में लगीं उनकी तस्वीर इसकी गवाह हैं।
कल्याण के सुनाए किस्से
रामघाट-कल्याण मार्ग (पहले रामघाट रोड) से करीब सौ मीटर की दूरी पर स्थित मढ़ौली गांव में अब सियासी रंग भले किसी का जमे, पर आस्था और भावनाओं के रंग में कल्याण ही हैं। कई घरों में लगीं उनकी तस्वीर इसकी गवाह हैं। एक मकान के दरवाजे से ही अंदर लगी तस्वीर दिखाते युवक ने बाबूजी से रिश्ते का अहसास करा डाला। कल्याण से लगाव की बानगी तो गांव में घुसते ही मिली। बाबूजी के घर का रास्ता साइकिल सवार 65 वर्षीय लक्ष्मण सिंह ने समझा दिया। पर, वे यहीं तक न रुके। बोले, बाबूजी के समय गांव की रंगत कुछ और ही हुआ करती थी। बात आगे बढ़ी तो बाबूजी के जीवन से जुड़े किस्सों पर आ गए। बोले, भले ही वो अब नहीं हैं। लेकिन हमारे दिलों में तो जिंदा हैं। बाबूजी ने अतरौली से ही राजनीतिक सफर शुरू किया था। 10 बार अतरौली विधायक रहे। 1969, 1974, 1977 में तो उन्होंने भारतीय जनसंघ की टिकट पर जीत की हैट्रिक बनाई। कोई पार्टी कभी यहां की सियासत को लेकर पूर्वानुमान नहीं कर सकी। सिर्फ पूर्व सीएम कल्याण सिंह ही थे, जिनकी अपनी लहर चली। जितनी बार लड़े, चुनाव जीते। उनके समर्थन से कई औरों की नैया भी किनारे लग गई। थोड़ी आगे एक गली में कुछ युवक तो चुनाव पर ही चर्चा करते मिले। इनमें शामिल महेंद्र ने जोश में कहा, बाबूजी को भुलाया नहीं जा सकता। यहां से कुछ और आगे बढ़ने पर कल्याण सिंह का पैतृक घर दिखाई दिया। अंदर से दरवाजा बंद था। आसपास की गलियों में खास चहल पहल नहीं थी। पास में ही खड़े रिंकू ने कहा, साहब, बाबूजी ने क्या नहीं किया? गांव में पानी की टंकी लगवा दी। पक्के रोड बनवाए। राममंदिर आंदोलन के लिए तो उन्हें हमेशा याद किया जाएगा। अशोक कुमार तो कल्याण सिंह का नाम लेते ही भावुक हो गए। बोले, बाबूजी सबको अपना मानते थे। जब वह पहली बार मुख्यमंत्री बनकर अतरौली आए थे, तब उन्होंने कहा था, पहले मैं गांव का था अब पूरे प्रदेश का हूं।
कल्याण को भाजपा ने प्रदेश अध्यक्ष बनाया
1982 में कल्याण सिंह को भाजपा ने प्रदेश अध्यक्ष बनाया। इस निर्णय के पीछे अटल जी का मकसद कल्याण सिंह को पिछड़ों के नेता के रूप में स्थापित करना था। कल्याण भी अटल की अपेक्षाओं पर खरा उतरे। उन्होंने प्रदेश में लोधी राजपूत और अन्य पिछड़ी जातियों को जोडऩे का काम किया। कल्याण 1991 पहली बार मुख्यमंत्री बने। छह दिसंबर 1992 में विवादित ढांचा गिराए जाने के बाद उन्होंने सीएम पद त्याग दिया था। इससे उनकी हिंदुत्ववादी छवि मजबूत हुई और राममंदिर समर्थक के रूप में अलग पहचान बनी। 1997 में वे दूसरी बार मुख्यमंत्री बने। अपने राजनीतिक काल में वह एटा, बुलंदशहर से भी जीते।