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सियासत रंग बदलती है। संयोग भी बनते हैं। कुछ ऐसा ही संयोग अलीगढ़ और हाथरस में बना है। कभी बसपा सुप्रीमो मायावती के दाएं व बाएं रहने वाले ठा. जयवीर सिंह और रामवीर उपाध्याय पहली बार भाजपा से चुनाव लड़ेंगे।
ठा.जयवीर सिंह और रामवीर उपाध्याय पहली बार भाजपा से चुनाव लड़ेंगे।
अलीगढ़, सियासत रंग बदलती है। संयोग भी बनते हैं। कुछ ऐसा ही संयोग अलीगढ़ और हाथरस में बना है। कभी बसपा सुप्रीमो मायावती के दाएं व बाएं रहने वाले ठा. जयवीर सिंह और रामवीर उपाध्याय पहली बार भाजपा से चुनाव लड़ेंगे। दोनों ही पश्चिम उत्तर प्रदेश की सियासत में रसूक भी रखते हैं। नीला झंडे -बैनर तले राजनीति का भाग्य उदय करने वाले दोनों नेता अब राम के सहारे चलेंगे। अब देखना यह है कि इस चुनाव में दोनों क्या गुल खिलाते हैं?
भाजपा के दोनों नेता हैं दमदार
जयवीर सिंह और रामवीर उपाध्याय का राजनीतिक सफर बहुत कुछ मिलता-जुलता है। जयवीर ने सियासी शुरुआत 1989 से की थी। तब वह बसपा के जिलाध्यक्ष बनाए बनाए गए थे। 2002 में उन्होंने बसपा के टिकट पर बरौली से पहला चुनाव लड़ा था, जिसमें उन्होंने रालोद प्रत्याशी ठा. दलवीर सिंह को हराया था। 2007 के चुनाव में भी उन्होंने जीत दर्ज की। 2012 में राष्ट्रीय लोकदल से चुनाव लड़े दलवीर सिंह ने जयवीर को हराया। 2017 के चुनाव में भी भाजपा से चुनाव लड़े दलवीर सिंह ने बसपा प्रत्याशी जयवीर सिंह को मात दी। रामवीर ने1993 में निर्दलीय चुनाव लड़ा था। इसमें उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद रामवीर बसपा में शामिल हो गए और 1996, 2002 और 2007 के विधानसभा चुनाव में बसपा की टिकट पर जीते। बसपा सरकार में रामवीर और जयवीर सिंह दोनों एक साथ कैबिनेट मंत्री बने। 2009 के चुनाव में जयवीर की पत्नी राजकुमारी चौहान अलीगढ़ की सांसद बनीं, जबकि रामवीर की पत्नी सीमा उपाध्याय फतेहपुरी सीकरी से सांसद चुनी गईं। 2002 व 2007 में रामवीर ने अपनी पत्नी सीमा को जिला पंचायत अध्यक्ष बनवाया तो 2016 में जयवीर सिंह ने अपने भतीजे उपेंद्र सिंह नीटू को जिला पंचायत अध्यक्ष का ताज बहनवाया। रामवीर सियासत के कितने मझे हुए खिलाड़ी हैं। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता कि 2017 के चुनाव में भाजपा की लहर में भी उन्होंने बसपा की टिकट पर सादाबाद से चुनाव जीता था। अलीगढ़ मंडल की 16 सीटों में से जीत हासिल करने वाले वह इकलौते नेता थे। 2017 में जयवीर सिंह बरौली से दलवीर सिंह से हार गए थे, लेकिन उन्होंने उसी वर्ष बसपा से एमएलसी बनाकर अपनी सियासत का दमखम भी दिखाया। जयवीर सिंह अब भाजपा से एमएलसी हैं।
रामवीर ने भाई को आगे बढ़ाया
रामवीर ने सियासत में भाई मुकुल उपाध्याय(पूर्व विधायक इगलास), विनोद उपाध्याय (पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष), रामेश्वर उपाध्याय(मुरसान ब्लाक प्रमुख) को राजनीति में आगे बढ़ाया तो जयवीर सिंह ने नीटू को। 2017 में जयवीर सिंह ने भाजपा का दामन थाम लिया। 2019 के लोकसभा चुनाव में उनके बेटा अरविंद सिंह ने कांग्रेस की टिकट पर गौतमबुद्ध नगर से चुनाव लड़कर सियासी हलचल पैदा कर दी थी। हालांकि अरविंद चुनाव हार गए थे। 2022 के विधानसभा चुनाव में जयवीर सिंह बरौली से भाजपा प्रत्याशी हैं। सादाबाद से रामवीर उपाध्याय को भाजपा प्रत्याशी बना सकती है। अंतर सिर्फ इतना है कि पहले नीला झंडा लेकर दोनों जनता के बीच जाते थे, इस बार भगवा झंडा लेकर जाएंगे। अब दोनों ही वीरों की सियासी तकदीर राम के सहारे है।