जब स्वतंत्रता सेनानी ने दिया नवाबी राजनीति को झटका

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RGAन्यूज़

UP Vidhan Sabha Election 2022 सन 1967 में बागपत जिले की बड़ौत सीट से पूर्व कैबिनेट मंत्री नवाब कोकब हमीद के पिता शौकत हमीद खां कांग्रेस तथा आचार्य दीपांकर कम्युनिस्ट पार्टी से मैदान में थे। कम्युनिस्ट पार्टी की बागपत में सियासी जमीन नहीं थी।

जब स्वतंत्रता सेनानी ने दिया नवाबी राजनीति को झटका

बागपत, । चुनाव में कब क्या हो जाए, कह पाना मुश्किल है। बात 1967 के विधानसभा चुनाव की है जब कांग्रेस का जलवा था और नवाब परिवार का रुतबा अलग था। कांग्रेस से नवाब शौकत हमीद खां की जीत पक्की मानी जा रही थी, लेकिन विजय हुई स्वतंत्रता सेनानी दिव्यांग आचार्य दीपांकर की। तब नवाबी राजनीति को ही झटका नहीं लगा बल्कि, बागपत-बडौत में कम्युनिस्ट पार्टी की सफलता से इंदिरा गांधी तक सकते में आ गईं थीं।

चौथी विधानसभा यानी साल 1967 में बड़ौत सीट से पूर्व कैबिनेट मंत्री नवाब कोकब हमीद के पिता शौकत हमीद खां कांग्रेस तथा गांव बोढा निवासी आचार्य दीपांकर कम्युनिस्ट पार्टी से मैदान में थे। कम्युनिस्ट पार्टी की बागपत में सियासी जमीन नहीं थी। आचार्य जी स्वतंत्रता सेनानी थे और उनके पास धन दौलत नहीं थी। इसके बावजूद मतदाताओं ने स्वतंत्रता सेनानी आचार्य जी का साथ दिया। आचार्य जी ने 7539 वोट से शानदार जीत दर्ज की। उन्हें 50.88 प्रतिशत यानी 34489 वोट और नवाब शौकत हमीद को 39.74 प्रतिशत यानी 26940 वोट मिले

ऐसा था आचार्य जी का चुनाव

एक पैर नहीं होने के बावजूद आचार्य दीपांकर में गजब की फुर्ती और उत्साह था। आचार्य प्रचार करते वक्त कहते कि हर घर से एक नोट व एक वोट दीजिए। हर ओर बच्चों से लेकर युवाओं की टोली उनके नारे लगाती फिरती थी।

...और उदारता की ऐसी मिसाल

अपनी दुकान पर बैठे 95 वर्षीय ठाकुरदास आंखों देखा हाल बताते हैं कि आचार्य जी का जीत का जुलूस निकल रहा था। जुलूस नवाब साहब की हवेली के सामने पहुंचा। नवाब शौकत हमीद हवेली से निकले और आचार्य जी को फूलों की माला पहनाने लगे। आचार्य जी ने उलटे नवाब साहब को माला पहनाकर गले से लगा लिया। नवाब शौकत अली और कोकब हमीद का निधन हो चुका

आजादी की लड़ाई में आचार्य जी का योगदान

-आचार्य दीपांकर बोढा गांव में 1913 में जन्मे। पिता पंडित ऋशिकेश शर्मा थे। गरीबी में बचपन में गाय चराते थे। गोवंशी की चपेट में आने से एक पैर खत्म हो गया। 12 वर्ष की आयु में घर छोड़कर बनारस में संस्कृत की पढ़ाई की। 1942 के स्वाधीनता आंदोलन में भाग लेकर अमृतसर से पेशावर तक आंदोलन का नेतृत्व किया। उनकी गिरफ्तारी को 10 हजार का इनाम घोषित हुआ। 23 मार्च 1943 में लाहौर से गिरफ्तार हुए। 18 पुस्तकें लिखीं और अविवाहित रहे। 19 जनवरी 1999 को उनका निधन हो गया।

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