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वो भी एक दौर था जब पूरे ब्रज मंडल में राम जन्म भूमि आंदोलन की लहर थी। उस आंदोलन में जिन लोगों ने भागीदारी की वे राजनीतिक पटल पर बाद में छाए भी। हरद्वार दुबे योगेंद्र उपाध्याय सहित कई ऐसे
राम जन्म भूमि आंदोलन के बाद हुए चुनाव में ब्रज मंडल में भारतीय जनता पार्टी की लहर चली थी।
। 'जो राम को लाए हैं, हम उनको लाएंगे। दुनिया में फिर से हम भगवा लहराएंगे। यूपी में फिर से हम भगवा लहराएंगे...' चुनावी समर में कन्हैया मित्तल का यह गीत लोगों की जुबान पर चढ़ा हुआ है। भाजपा की चुनावी रणनीति भी जातिगत समीकरणों के साथ-साथ लगभग इसी गीत के इर्द-गिर्द है। चुनावी बिसात पर ये लहर नई नहीं है। 90 के दशक में राम लहर पर सवार होकर भाजपा ने पहली बार प्रदेश की सत्ता की कमान संभाली। 1989 में जिस भाजपा के प्रदेश में सिर्फ 57 विधायक थे, 1991 में 221 हो गए और कल्याण सिंह देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री का पहला चेहरा बने। जिस रामजन्म भूमि आंदोलन के सहारे कल्याण सिंह मुख्यमंत्री पद तक पहुंचे, उस आंदोलन को खड़ा करने में भाजपा से जुड़े तमाम लोगों का योगदान रहा। बाद में इनमें से कई चेहरे सियासत में उभरे।
पहली बार 1952 में हुए चुनाव के बाद 2017 के विधानसभा चुनाव में ऐसा हुआ, जब आगरा की सभी सीटों पर एक ही दल के प्रत्याशियों ने जीत का परचम लहराया। तब कांग्रेस ने झंडा बुलंद किया था और 2017 में भाजपा ने। इस बीच में सुलहकुल की नगरी में राम लहर के दौरान सबसे अधिक विधायक जीते। 1989 से 1992 के बीच चले रामजन्म भूमि आंदोलन में स्थानीय स्तर पर कई चेहरे उभकर सामने आए। बाद में यह राजनीति के फलक भी छाये। इन्हीं में एक हैं राज्यसभा सदस्य हरद्वार दुबे। वर्ष 1989 से 1991 के बीच भाजपा के महानगर अध्यक्ष रहते हुए हरद्वार दुबे ने लोगों को इस आंदोलन से जोड़ने के लिए न सिर्फ गुप्त बैठकें कीं बल्कि कार सेवकों को भी सुविधा प्रदान करने में भी भूमिका निभाई। वह 1989 में विधायक थे। मगर, 1991 में जब वह फिर से चुनाव जीते थे तो कल्याण सिंह की सरकार में उन्हें मंत्री बनाया गया। वह 1993 में भी छावनी सीट से विधायक चुने गए। तीसरी बार उत्तर विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में उतर रहे योगेंद्र उपाध्याय भी रामजन्म भूमि आंदोलन में अहम भूमिका निभा चुके हैं। 1989 में वह वार्ड 25 से पार्षद थे और छावनी विधानसभा क्षेत्र में रामजन्म भूमि आंदोलन के संयोजक थे। आंदोलन से जुड़े विभिन्न कार्यक्रमों में भागीदारी की। कार सेवकों को ठहराने, भोजन कराने आदि की जिम्मेदारी निभाई। वह 2012 में भाजपा के टिकट पर दक्षिण सीट से पहली बार विधायक बने। 2017 में भी उन्होंने जीत का परचम लहराया। 2017 के चुनाव में एत्मादपुर सीट पर पहली बार कमल खिलाने वाले रामप्रताप सिंह चौहान राम मंदिर आंदोलन के दौरान युवा मोर्चा के मंडल अध्यक्ष थे। अांदोलन से जुड़ी विभिन्न गतिविधियों को अंजाम देने के आरोप में वह जेल भी गए। उत्तर विधानसभा सीट से 2019 के उपचुनाव में विजय हासिल करने वाले पुरुषोत्तम खंडेलवाल ने पुराने शहर में आंदोलन को हवा देने में अहम भूमिका निभाई।
अनुसूचित जाति आयोग के प्रदेश अध्यक्ष डा. राम बाबू हरित जिस समय विवादित ढांचा ढहा, उस दौरान अयोध्या में ही थे। वह कैंप में रहकर स्वयंसेवकों को चिकित्सीय सुविधा मुहैया करा रहे थे। इसके बाद 1993 में वह भाजपा की टिकट से पूर्वी सीट से चुनावी मैदान में उतरे और विधायक बने। 1999 के चुनाव में न सिर्फ विधायक बने बल्कि प्रदेश सरकार में उन्हें मंत्री बनने का भी मौका मिला।
ये भी थे चे
- भगवान शंकर रावत रामजन्म भूमि आंदोलन का बड़ा चेहरा थे। वह 1991 से 1996 के बीच आगरा लोकसभा क्षेत्र से तीन बार सांसद रह चुके हैं।
- रमेशकांत लवानिया ने स्थानीय स्तर पर आंदोलन की रणनीति तैयार करने में अहम भूमिका निभाई। वह 2002 में खेरागढ़ सीट से विधायक चुने गए।
एटा: राम मंदिर आंदोलन के दौरान पूर्व विधायक सुधाकर वर्मा व पूर्व मंत्री सूरज सिंह शाक्य का उदय हुआ। 1991 के चुनाव में भाजपा ने इन्हें टिकट दी और दोनों नेता चुनाव जीते।ppll