गूगल ने 25 साल बाद परिवार से मिलाया, जानिए कहां और किस हाल में मिलीं पुणे से लापता कौशांबी की कुसुम

Praveen Upadhayay's picture

RGAन्यूज़

25 साल पहले कौशांबी की कुसुम पुणे में लापता हो गईं थी औऱ अब वह मिली हैं चेन्नई में एक एनजीओ की आश्रम में। एनजीओ ने काफी प्रयास के बाद कुसुम के परिवार के बारे में पता लगाकर संपर्क किया तो भाई रोशन कौशांबी से चेन्नई जा पहुंचे

गूगल के जरिए हुआ 25 साल पहले गुमशुदा कुसुम का अपने परिवार से दोबारा मिलन

प्रयागराज,  ऐसा आपने किस्से-कहानियों में सुना होगा या फिर फिल्मों ही देखा होगा। बरसों पहले बिछड़े भाई-बहन का कुंभ और माघ मेले में मिलन की तो कहानियां बहुत प्रचलित भी रही हैं, अब यह ताजा मामला देखिए जो और भी अचरज वाला है। 25 साल पहले कौशांबी की कुसुम पुणे में लापता हो गईं थी, औऱ अब वह मिली हैं चेन्नई में एक एनजीओ की आश्रम में। एनजीओ ने काफी प्रयास के बाद कुसुम के परिवार के बारे में पता लगाकर संपर्क किया तो भाई रोशन कौशांबी से चेन्नई जा पहुंचे। जिस बहन के जीवित होने की आस वह छोड़ बैठे थे, उसे बदले शक्ल सूरत में सामने देख उनकी आंखों से आंसू छलक आए, एनजीओ की मदद से भाई-बहन कौशांबी के लिए रवाना हो चुके हैं जहां परिवार के लोग ही नहीं, पूरा गांव उनका बेसब्री से इंतजार कर

यूं बिछड़ गई थीं वह अपने परिवार से

कौशांबी में बसेढ़ी गांव की कुसुम अब 55 साल की हो चुकी हैं। उनका किस्सा यूं है। पिता अगनू यादव का निधन हो चुका है। मां श्यामकली घर पर हैं। छह भाइयों के बीच इकलौती बहन कुसुम चौथे नंबर पर हैं। उनका विवाह तीस साल पहले मंझनपुर के फूलचंद्र के साथ किया गया था जिसकी बाद में मृत्यु हो गई थी। फिर कुसुम की शादी हथिगवां नवाबगंज के राजेश के साथ की गई थी। राजेश पुणे में नौकरी करता था। कुसुम को भी साथ ले गया। वहीं से करीब 25 साल पहले कुसुम गायब हो गईं। काफी खोजा गया। पुणे से मुंबई तक तलाश की गई लेकिन कुसुम के बारे में कुछ पता नहीं चला। दिन महीने और साल गुजरते गए, मगर कुसुम की कोई खबर नहीं मिली। फिर परिवार के लोग भी हताश निराश हो गए। उनके जीवित होने की उम्मीद नहीं रह गई थी क्योंकि जिंदा होतीं तो महीनों या दो-चार साल बाद तो मिलतीं लेकिन ऐसा हुआ नहीं....

और एक रोज अचानक....

...फिर अचानक कुछ रोज पहले चेन्नई के एक एनओजी ने काफी मशक्कत के बाद कौशांबी में पूरामुफ्ती-कोखराज के बीच स्थित बसेढ़ी गांव में कुसुम के परिवार से संपर्क किया। एनजीओ के लोगों ने परिवार को बताया कि कुसुम जिंदा हैं और सही सलामत चेन्नई में उनके आश्रम में हैं। यह सुनकर परिवार और गांव के लोगों को यकीन नहीं हुआ कि जिस कुसुम को वे भुला चुके हैं, वह चेन्नई में मौजूद हैं। एनजीओ के लोगों ने भरोसा दिलाया तो कुसुम के भाई रोशन बुधवार को चेन्नई पहुंच गए। वहां कुसुम से मिले तो पहले पहचान ही नहीं पाए क्योंकि 25 साल का लंबा अऱसा हो चुका है। शक्ल सूरत और वेश भूषा भी बदली थी। मगर फिर उन्हें यकीन हो गया कि कौशांबी की देशज हिंदी की बजाय तमिल बोल रही कुसुम उनकी बहन हैं।

इस तरह से एनजीओ ने पता लगाया परिवार का

एनजीओ के लोगों ने बताया कि लंबे समय तक कुसुम का उनके मनोचिकित्सक काउंसिलिंग करते रहे....इसी दौरान एक दिन कुसुम ने अपने गांव का नाम बसेढ़ी बताया। गूगल के जरिए इस नाम के गांवों के बारे में खोजकर  एनजीओ ने आखिरकार कौशांबी के बसेढ़ी में कुसुम के परिवार का पता लगा लिया। रोशन बहन कुसुम के साथ शुक्रवार को बेंगलुरू पहुंच चुके हैं। वहां से सोमवार को गांव के लिए रवाना होंगे जहां उनकी 90 साल की बूढ़ी मां और भाइयों समेत पूरा गांव प्रतीक्षा कर रहा है।

Scholarly Lite is a free theme, contributed to the Drupal Community by More than Themes.