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प्रयागराज का पौराणिक व ऐतिहासिक महत्व है। त्रेता युग में श्रीराम से जुड़े पौराणिक स्थल हैं तो महाभारत कालीन भी स्थल हैं। इसके बाद भी पर्यटन के मानचित्र में इस शहर का स्थान अभी काफी पीछे ही है। यहां कई स्थलों पर ध्यान देकर पर्यटक स्थल बनाया जा सकता है।
पर्यटन की दृष्टि से प्रयागराज में ऐसे कई ऐतिहासिक व पौराणिक स्थल हैं।
प्रयागराज, सनातन धर्म के तीर्थों का सिरमौर प्रयागराज को कहा गया है। तीर्थराज की ख्याति प्राप्त इस शहर की महिमा अनेक धर्मग्रंथों में बखानी गई है। संगम के तट पर माघ मास में अनंतकाल से माघ मेला व 12 वर्ष में कुंभ मेला लग रहा है। विश्व का एकमात्र स्थल है जहां प्रतिवर्ष एक माह के लिए तंबुओं का शहर बसता है। इसके बावजूद पर्यटन के क्षेत्र में प्रयागराज वो स्थान नहीं बना पाया, जिसका हकदार है। गंगा-यमुना का संगम, आनंद भवन, आजाद पार्क को छोड़ दें, तो सिर्फ कागजी घोड़े ही दौड़ाए जाते हैं। यही कारण है कि कोई स्थल नहीं है, जो पर्यटकों को आकर्षित कर सके।
पौराणिक श्रृंगवेरपुर के कायाकल्प का काम धीमा
त्रेता युग में वनवास जाते समय प्रभु श्रीराम श्रृंगवेरपुर में रुके थे। इसकी पौराणिकता को देखते हुए यहां का कायाकल्प करने के लिए कई योजनाओं पर काम चल रहा है, लेकिन उसकी गति धीमी है। श्रीराम व निषादराज की गले लगने वाली मूर्ति 2019 के पहले लगनी थी पर अभी तक नहीं लग पाई है। इसके अलावा निषादराज पार्क, संपर्क मार्ग, घाटों का स्वरूप भव्य बनाने का काम धीमा है।
महाभारत कालीन लाक्षागृह का काम अधूरा
हंडिया स्थित लाक्षागृह के विकास का काम कई वर्ष से चल रहा है, जो अभी तक पूरा नहीं हुआ। महाभारत कालीन उक्त स्थल पर मुख्यमंत्री पर्यटन संवर्धन योजना के तहत सत्संग भवन, ओपन एयर थियेटर बनाने का प्रस्ताव है। महाभारत कथा का सचित्र वर्णन होना है, सबकी प्रगति सुस्त है
भगवान विष्णु के 12 स्वरूपों 'बारह माधव' उपेक्षित ह
प्रयागराज दुनिया में एकमात्र ऐसा स्थल है, जहां भगवान विष्णु 12 स्वरूप में अलग-अलग स्थलों पर विराजमान हैं। उसे बाहर माधव के नाम से जाना जाता है। समस्त मंदिर प्राचीन हैं, लेकिन सभी उपेक्षित हैं। मंदिर तक पहुंचने, वहां बैठने, पेयजल, प्रकाश व सुरक्षा को कोई प्रबंध नहीं है। कुंभ 2019 के समय कुछ काम हुए, लेकिन बाद में उसे आधा-अधूरा छोड़ दिया गया। इसके अलावा बनखंडी महादेव, दुर्वासा ऋषि आश्रम, तक्षकतीर्थ, पडि़ला महादेव जैसे तीर्थ स्थलों को लेकर उचित काम नहीं हुआ।
भरद्वाज आश्रम पर नहीं दिया ध्यान
प्रयागराज को बसाने का श्रेय महर्षि भरद्वाज मुनि को है। महर्षि भरद्वाज का आश्रम जहां है, उस स्थल का उचित विकास नहीं हुआ। चौराहा पर महर्षि भरद्वाज की विशाल प्रतिमा लगाई गई है, लेकिन मंदिर की स्थित दयनीय है, जबकि उसे भव्य बनाकर पर्यटन का नया केंद्र बनाया जा सकता है।
पर्यटकों की संख्या
- 12 लाख से अधिक पर्यटक आए हैं 2021 में देशभर
- 189 विदेशी पर्यटक भी घूमने आए प्रयागराज।
न म्यूजियम बना न रोपवे
कुंभ 2019 से पहले प्रयागराज को पर्यटन के मानचित्र में उभारने का प्रयास हुआ था। पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए त्रिवेणी पुष्प, संगम व यमुना बैंक रोड के बीच रोप-वे बनाने प्रस्ताव बना था, लेकिन रोपवे नहीं बना। गढ़वा किले को पर्यटन की दृष्टि से उभारने के लिए म्यूजियम बनाने का प्रस्ताव भी पूरा नहीं हुआ।
वीरान हैं भीटा की पहाडिय़ा
यमुना पार में भीटा की पहाडिय़ां प्राकृतिक रूप से समृद्ध हैं। ये पहाड़ी मायानगरी को भी आकर्षित करती है इसी कारण ओंकारा जैसी फिल्म की शूटिंग यहां हुई है। लेकिन उसे संरक्षित करने के लिए शासन स्तर पर कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है।
कनिहार झील का काम अटका
झूंसी में कनिहार झील है। प्राकृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण स्थल है, उसमें पानी का संरक्षण करके पर्यटन के रूप में विकसित करने का प्रस्ताव शासन को भेजा गया है, लेकिन उस पर कोई निर्णय नहीं हुआ। इससे कुंभ 2019 से पहले जो काम पूरा होना था वो अभी तक शुरू नहीं हो पाया है।