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RGA News कानपुर संवाददाता
जिसे पाला, जिसे पोसा वह सपना ही रह गया, अकेला था मैं अकेला ही रह गया... यह कविता का अंश हो सकता है, लेकिन वर्तमान में कई बुजुर्ग माता-पिता की सच्चाई भी है। यही नहीं, माता-पिता ने जिसे पढ़ा-लिखा कर बड़ा किया, वही उनका उत्पीड़न भी कर रहे हैं। यह हकीकत बयां करते हैं एसडीएम कोर्ट में आने वाले मामले। दरअसल बड़ी संख्या में बच्चों से प्रताड़ित माता-पिता एसडीएम कोर्ट पहुंच रहे हैं। इसी साल जनवरी से 10 दिसंबर के बीच 55 ऐसे मामले आए, जिनमें बेटे उत्पीड़न के दोषी करार दिए गए। इनमें से 32 मामले ऐसे थे जिनमें प्रताड़ित करने वाले बेटा-बहू ज्यादा पढ़-लिखकर बिजनेस या अच्छी नौकरी कर रहे हैं। इन सभी मामलों में एसडीएम कोर्ट ने आरोपित बेटा-बहू को बेदखली के आदेश दिए हैं। 23 मुकदमों में माता-पिता को प्रताड़ित करने वाले लोग कम पढ़े लिखे थे और छोटी कमाई में थे।
हाथ उठाने में भी पीछे नहीं
कानपुर में एक नहीं सैकड़ों ऐसे माता पिता हैं, जिन्होंने अपने बच्चों को पढ़ा लिखाकर सफल इंसान बनाया। जब बच्चों की बारी आई तो जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ लिया। ऐसे माता-पिता अब आश्रमों में रहने को मजबूर हैं। पढ़े-लिखे लोग मां-बाप की सेवा के बजाय उनकी संपत्ति पर नजरें गड़ाए हैं। यह उनसे बदसलूकी करते हैं और कुछ केसों में तो यह भी तथ्य सामने आए हैं कि हाथ उठाने से भी पीछे नहीं हटते। यह हाल कर रहा है अपना खून
- यशोदा नगर में रहने वाले एक वृद्ध पिता को उनके बच्चों ने घर से निकाल दिया। जब जानकारी हुई कि उनके खाते में 70 लाख रुपए और 1000 गज के तीन मकान हैं तो कुछ ही महीने बाद उन्हें वापस लेने पहुंच गए। वृद्ध पिता घर वापस नहीं जाना चाहते थे। हालांकि, घर लौटने के डेढ़ माह बाद ही उनकी मौत हो गई।
- सर्वोदय नगर में दो बेटों ने वृद्धा आश्रम संचालिका से सम्पर्क कर पिता को ले जाने की बात कही। उनके पिता जाना नहीं चाहते थे। आश्रम संचालिका ने भी बेटों को समझाने की कोशिश की, लेकिन वे पिता को घर पर रखने को राजी नहीं हुए। यहां तक कहा कि वह आश्रम में ले जाएं और 10 से 15 हजार रुपए हर महीने खर्च भी दे देंगे। वर्तमान में इस वृद्ध पिता को आश्रम में रहते साल भर से ज्यादा वक्त गुजर गया है।
- एक वृद्ध मां ने बेटी की शादी की और वह फ्लोरिडा में सेटल हो गई। चार दिन पूर्व वृद्धा आश्रम संचालिका के पास उसका फोन आया कि उसकी मां को अपने यहां जगह दे दें। इसके लिए वह कुछ भी देने को तैयार है। संचालिका ने मामले की जानकारी की तो पता चला कि वृद्धा की बहन ने उसके सारे जेवर हड़प लिए हैं और उसके जेठ ने कोठी। वह वर्तमान में अपने भाई के यहां रह रही है।
- वृद्धा आश्रम में रहने वाली एक बुजुर्ग महिला की तबीयत खराब होने पर उसे निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया। इलाज में 40 हजार से ज्यादा का खर्च आया। आश्रम वालों ने बेटों से सम्पर्क किया तो उन्होंने एक भी पैसा देने से मना कर दिया। महिला बीते डेढ़ साल से वृद्धा आश्रम में रह रही है।
समाज में विघटन के जिम्मेदार हम
एसएन सेन डिग्री कॉलेज से रिटायर समाजशास्त्र की प्रोफेसर डॉ. मंजू जैन कहती हैं कि माता पिता और बच्चों के बीच दरार की कई वजहें हैं। यह सामाजिक और मनोवैज्ञानिक वातावरण में असंतुलन का नतीजा है। बच्चों पर अनावश्यक दबाव देने के कारण अब वह अपने माता-पिता की परेशानी तक देखने को तैयार नहीं है। कम उम्र से ही बेटों पर पढ़ने-लिखने के लिए बाहर जाने और अच्छा पैसा कमाने का बोझ डाला जाता है। जब वह बड़ा हो जाता है तो उसके दिमाग में अलगाव की भावना विकसित हो चुकी होती है, जिसके कारण वह घर लौटकर नहीं आना चाहता।
कैसे रोक सकते हैं इस द्वंद्व को
- अपने बच्चे पर अत्याधिक दबाव डालने से बचें
- बचपन से ही पारिवारिक मूल्यों की जानकारी दें
- प्रतिस्पर्धा का सामना सरलता से करना सिखाएं
- परिस्थितियों से लड़ना सिखाएं, मगर सभ्यता से
- आभास कराएं कि उसके बिना नहीं रह सकते
- बच्चे के सामने खुद लड़ने से हमेशा बचें