अलग-अलग संदेश सामहित किए हुए हैं भगवान शिव के शरीर पर मौजूद एक-एक चीज़

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RGAन्यूज़

Maha Shivratri 2022 भगवान शिव की महानता और उदारता का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि उनके गले में विष और सर्प विराजते हैं। बालों में मां गंगा तो माथे पर चंद्रमा सुशोभते हैं। ये सभी चीज़ें एक खास तरह का संदेश

देवों के देव महादेव की एक तस्वीर

भगवान शिव बहुत ही दयालु हैं और किसी का भी तिरस्कार नहीं करते, सबको स्वीकारते हैं। इसलिए तो वो देवों के देव महादेव कहे जाते हैं। भगवान शिव की वेशभूषा में शामिल चंद्रमा से लेकर गंगा, त्रिशूल से लेकर सांप, गले में विष से लेकर सवारी बैल तक हर एक चीज़ अपने में एक अलग संदेश समाहित किए हुए है। 

1. त्रिनेत्र

शिव त्रिनेत्र हैं। उनकी तीसरी दृष्टि प्रलयकारी है। सृष्टि का संहार करने के लिए तीसरा नेत्र उद्घाटित करते हैं। शंकरजी के ये तीन नेत्र हैं, सूर्य, चंद्र एवं अग्नि। सूर्य दक्षिण नेत्र हैं, चंद्रमा वाम तथा अग्नि मध्य का तीसरा नेत्र हैं। इसका अर्थ यह है कि संपूर्ण ब्रह्मांड ही भगवान शंकर का शरीर है और उसमें प्रकाश के तीन केंद्र ही उसके तीन नेत्र हैं। तीनों में एक ही प्रकाश है, किंतु वह तीनरूपों में भिन्न-भिन्न दिखायी देता है। सूर्य से ऊष्मा एवं प्रकाश, चंद्रमा से शीतलता और अग्नि से दाहकता प्राप्त होती

2. मस्तक पर बाल चंद्रमा

शिव जी के मस्तक पर विराज बाल चंद्रमा करुणा का प्रतीक है। पूर्ण को सभी प्रणाम करते हैं, किन्तु अपूर्ण को (चंद्र) वंदित बना देना शिव का ही कार्य है।

3. जटाओं में गंगा जी

जटाओं से गंगाजी बह रही हैं। गंगा जी भक्ति की धारा हैं। यह शंकर जी के निरभिमानता की पराकाष्ठा है, क्योंकि गंगा विष्णुचरण से निकली हैं। भगवान शिव और विष्णु तो समान ही हैं, पर विष्णु के चरणोदक को मस्तक पर धारण करके दूसरों को गौरव देना उनकी विशिष्ट महिमा का परिचायक है।

. कंठ में विष

कंठ में सुशोभित गरल उनकी परम कृपालुता का द्योतक है। समुद्र मंथन से उत्पन्न विष को धारण करने का साम‌र्थ्य किसी देवी-देवता में नहीं था। उन्होंने उसे लोक कल्याण के लिए अपने कंठ में धारण कर लिया।

5. गले में नरमुंडों की माला

नरमुंडों की माला से वे सृष्टि की नश्वरता का दर्शन कराते हैं। सिर पर चंद्रमा अमृत का प्रतीक है तो नरमुंड मृत्यु का। इन दोनों से वे जीवन में समत्व का उपदेश 

6. हाथों में त्रिशूल व डमरू

उनके हाथों में त्रिशूल एवं डमरू है, जो शस्त्र एवं शास्त्र के समन्वय का प्रतीक है। त्रिशूल तीन दोष काम, क्रोध एवं लोभ के विनाश का प्रतीक है अथवा त्रिविध दैहिक, दैविक एवं भौतिक तापों का विनाशक है। डमरू शास्त्र का प्रतीक है, इसी से संस्कृत व्याकरण के चतुर्दश सूत्र प्रकट हुए।

7. वाहन बैल

उनका वाहन बैल धर्म का प्रतीक है और भगवान शंकर विश्वास हैं। अत: विश्र्वास का वाहन तो धर्म ही हो सकता है। भगवान शिव उस धर्म का परित्याग कभी नहीं करते। वे बैल की सवारी से यही शिक्षा देते हैं कि ज्ञानियों को धर्म के विषय में सदैव सावधान रहना चाहिए। धर्म एक शाश्र्वत सत्य है। उस वृषरूप धर्म के चार चरण हैं- सत्य, तप, दया और दान।अलग-अलग संदेश सामहित किए हुए हैं भगवान शिव के शरीर पर मौजूद एक-एक चीज़

Maha Shivratri 2022 भगवान शिव की महानता और उदारता का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि उनके गले में विष और सर्प विराजते हैं। बालों में मां गंगा तो माथे पर चंद्रमा सुशोभते हैं। ये सभी चीज़ें एक खास तरह का संदेश देते हैं।

 Maha Shivratri 2022: अलग-अलग संदेश सामहित किए हुए हैं भगवान शिव के शरीर पर मौजूद एक-एक चीज़देवों के देव महादेव की एक तस्वीर

भगवान शिव बहुत ही दयालु हैं और किसी का भी तिरस्कार नहीं करते, सबको स्वीकारते हैं। इसलिए तो वो देवों के देव महादेव कहे जाते हैं। भगवान शिव की वेशभूषा में शामिल चंद्रमा से लेकर गंगा, त्रिशूल से लेकर सांप, गले में विष से लेकर सवारी बैल तक हर एक चीज़ अपने में एक अलग संदेश समाहित किए हुए है। 

1. त्रिनेत्र

शिव त्रिनेत्र हैं। उनकी तीसरी दृष्टि प्रलयकारी है। सृष्टि का संहार करने के लिए तीसरा नेत्र उद्घाटित करते हैं। शंकरजी के ये तीन नेत्र हैं, सूर्य, चंद्र एवं अग्नि। सूर्य दक्षिण नेत्र हैं, चंद्रमा वाम तथा अग्नि मध्य का तीसरा नेत्र हैं। इसका अर्थ यह है कि संपूर्ण ब्रह्मांड ही भगवान शंकर का शरीर है और उसमें प्रकाश के तीन केंद्र ही उसके तीन नेत्र हैं। तीनों में एक ही प्रकाश है, किंतु वह तीनरूपों में भिन्न-भिन्न दिखायी देता है। सूर्य से ऊष्मा एवं प्रकाश, चंद्रमा से शीतलता और अग्नि से दाहकता प्राप्त होती 

2. मस्तक पर बाल चंद्रमा

शिव जी के मस्तक पर विराज बाल चंद्रमा करुणा का प्रतीक है। पूर्ण को सभी प्रणाम करते हैं, किन्तु अपूर्ण को (चंद्र) वंदित बना देना शिव का ही कार्य है।

3. जटाओं में गंगा

जटाओं से गंगाजी बह रही हैं। गंगा जी भक्ति की धारा हैं। यह शंकर जी के निरभिमानता की पराकाष्ठा है, क्योंकि गंगा विष्णुचरण से निकली हैं। भगवान शिव और विष्णु तो समान ही हैं, पर विष्णु के चरणोदक को मस्तक पर धारण करके दूसरों को गौरव देना उनकी विशिष्ट महिमा का परिचायक है।

कंठ में सुशोभित गरल उनकी परम कृपालुता का द्योतक है। समुद्र मंथन से उत्पन्न विष को धारण करने का साम‌र्थ्य किसी देवी-देवता में नहीं था। उन्होंने उसे लोक कल्याण के लिए अपने कंठ में धारण कर लिया

5. गले में नरमुंडों की माला

नरमुंडों की माला से वे सृष्टि की नश्वरता का दर्शन कराते हैं। सिर पर चंद्रमा अमृत का प्रतीक है तो नरमुंड मृत्यु का। इन दोनों से वे जीवन में समत्व का उपदेश देते हैं

6. हाथों में त्रिशूल व डमरू

उनके हाथों में त्रिशूल एवं डमरू है, जो शस्त्र एवं शास्त्र के समन्वय का प्रतीक है। त्रिशूल तीन दोष काम, क्रोध एवं लोभ के विनाश का प्रतीक है अथवा त्रिविध दैहिक, दैविक एवं भौतिक तापों का विनाशक है। डमरू शास्त्र का प्रतीक है, इसी से संस्कृत व्याकरण के चतुर्दश सूत्र प्रकट हुए।

7. वाहन बैल

उनका वाहन बैल धर्म का प्रतीक है और भगवान शंकर विश्वास हैं। अत: विश्र्वास का वाहन तो धर्म ही हो सकता है। भगवान शिव उस धर्म का परित्याग कभी नहीं करते। वे बैल की सवारी से यही शिक्षा देते हैं कि ज्ञानियों को धर्म के विषय में सदैव सावधान रहना चाहिए। धर्म एक शाश्र्वत सत्य है। उस वृषरूप धर्म के चार चरण हैं- सत्य, तप, दया और दान।

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