यूक्रेन में युद्ध की विभीषिका का आंखों देखा हाल, रेलवे स्‍टेशन से लेकर सड़कों पर धमाके और गोलीबारी, आगरा की बेटियों ने किया बयान

Praveen Upadhayay's picture

RGAन्यूज़

यूक्रेन के खारकीव में 10 दिन तक युद्धक्षेत्र में फंसी आगरा की तीनों छात्राएं लौटीं और किया वहां का हाल बयान। आंखों के सामने स्टेशन पर गिरी दो मिसाइल डर से कांप गए थे सभी। घर पर ढ़ोल-नगाड़ों के साथ हुआ शानदार स्वागत मिलने वालों का दिनभर लगा रहा

Russia Ukraine War: यूक्रेन से आगरा अपने घर लौटकर अंजलि पचौरी माता-पिता से चिपकी रहीं

आगरा, । पल-पल होती गोलाबारी और फायरिंग से हर ओर दहशत थी। हमारे सामने ही रेलवे स्टेशन पर दो मिसाइल दागी गई, तो लगा कि आज जिंदगी का आखिरी दिन है। जैसे-तैसे ट्रेन के डिब्बे फांदते हुए दूसरी ट्रेन पकड़ने पहुंचे, तो यूक्रेनी सैनिकों ने विद्यार्थियों पर गन तान दी। सिर्फ बच्चों और बुजुर्गों को ही ट्रेन में सवार होने दिया। माइनस चार डिग्री तापमान में 35 किमी पैदल चलकर बड़ी मुश्किल से पेसोचिन पहुंचे। हर रोज ऐसा लगता था कि हम यूक्रेन से कभी निकल ही 

मंगलवार को यूक्रेन से लौटी शास्त्रीपुरम, ए ब्लाक निवासी अंजली पचौरी की आंखों के सामने अब भी पिछले 10 दिनों का घटनाक्रम तैर रहा हैं, जिसे याद कर वह थोड़ा सहम जाती हैं। बताती हैं कि हर दिन लगता था कि कहीं आज का दिन अंतिम न हो। दिन-रात होने वाली बमबारी और गोलीबारी सोने नहीं देती थी। 27 फरवरी को भारतीय दूतावास ने तुरंत खारकीव छोड़ने की एडवाइजरी दी, तो हम करीब एक हजार विद्यार्थी एकसाथ पैदल बग्जाल (रेलवे स्टेशन) के लिए पैदल ही निकल लिए, जो वहां से करीब नौ किमी दूर था। बमबारी और फायरिंग के बीच हम स्टेशन पहुंचे, तो हमारे सामने ही एक प्लेटफार्म पर दो मिसाइल गिरी, तो सुरक्षा कर्मियों ने हमें उसमें प्रवेश नहीं दिया। लेकिन एडवाइजरी के कारण हम दूसरे प्लेटफार्म पर खड़ी ट्रेन के डिब्बों पर चढ़कर दूसरी ट्रेन पर पहुंचें। लेकिन सुरक्षाकर्मियों ने विद्यार्थियों पर गन तान दी और ट्रेन में नहीं चढ़ने दिया गया। सिर्फ 18 साल से छोटे बच्चों और 60 वर्ष से अधिक के बुजुर्गों को ही जाने दिया। वहां ठहरना सुरक्षित नहीं था। इसलिए हम पैदल ही पेसोचिन गांव के लिए निकल लिए, जो 35 किमी दूर था। पूरे रास्ते फायरिंग और बमबारी होने के कारण हर पल लग रहा था कि किसी बम या गोली का शिकार हम भी न

कांप रही थी रिसार्ट की बिल्डिंग

भारतीय दूतावास ने हमें एडवाइजरी जारी कर पेसोचिन गांव पहुंचने के लिए एक लिंक शेयर किया था। वहां जाकर हम सुरक्षित थे, लेकिन धमाके रुक नहीं रहे थे। जिसके कारण रिसार्ट की पूरी बिल्डिंग थरथरा जाती थी। वहां पहले दिन खाने को कुछ नहीं मिला। दूसरे दिन विद्यार्थियों को चिकन सूप दिया गया, जिस पर हम कुछ वेजीटेरियन विद्यार्थियों ने विरोध किया, तो हमें वेज सूप और दो ब्रेड उपलब्ध कराए। लेकिन विरोध के बाद खाना भी मिला।

News Category: 
Place: 

Scholarly Lite is a free theme, contributed to the Drupal Community by More than Themes.