प्रयागराज में बुलडोजर बाबा की उतारी गई आरती, ठठेरी बाजार में उड़े रंग गुलाल

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RGAन्यूज़

ठठेरी बाजार में होलिका दहन के तीसरे दिन रंग खेलने की परंपरा है। ठठेरी बाजार नवयुवक संगठन टेढ़ी बाजार उद्योग व्यापार मंडल द्वारा बुल्डोजर बाबा की आरती उतार कर होली खेलने का शुभारंभ हुआ। पूजा के बाद होलियारों की टोली ने घूम-घूमकर रंग-गुलाल खे

चौक की ठठेरी बाजार में जमकर धमाल हुआ। दुकानदारों व उनके स्वजन ने परंपरा के अनुरूप होली खेली।

प्रयागराज, चौक की ठठेरी बाजार में जमकर धमाल हुआ। दुकानदारों व उनके स्वजन ने परंपरा के अनुरूप होली खेली। इससे पहले बुलडोजर बाबा की आरती भी उतारी। एक-दूसरे के ऊपर रंग डाला, अबीर-गुलाल उड़ाए। फिल्मी गानों पर बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक ने जमकर धमाल मचाया। सुबह शुरू हुआ रंग खेलने का सिलसिला दोपहर बाद तक जारी र

ठठेरी बाजार में होलिका दहन के तीसरे दिन रंग खेलने की परंपरा है। ठठेरी बाजार नवयुवक संगठन, टेढ़ी बाजार उद्योग व्यापार मंडल द्वारा बुलडोजर बाबा की आरती उतार कर होली खेलने का शुभारंभ हुआ। पूजा के बाद होलियारों की टोली ने घूम-घूमकर रंग-गुलाल खेला। इसमें ठठेरी बाजार के सभी दुकानदार व उनके परिजन होली खेलने सड़क पर आते है। जो ऐसा नहीं करता उसके पूर्वज खुश नहीं होते। इस दौरान संगठन के संरक्षक सुशांत केशरवानी, अध्यक्ष आशीष केशरवानी, रोहित कसेरा, सुशील जायसवाल, प्रशांत पांडेय, संजय रस्तोगी, जानू कसेरा, गुड्डूू कसेरा, संजय केशरवानी, रिशु केशरवानी, प्रतीक,अरविंद आदि ने होली खेली

साइकिल की निकाली शव यात्रा

होली खेलने वाले लोगों ने माहौल को हंसी-ठिठोली युक्त बनाने के लिए साइकिल की शव यात्रा निकाली। इसके साथ दूल्हा-दुल्हन की प्रतीकात्मक बरात निकाली गई। ''जय श्रीराम, भारत माता की जयÓ का उद्घोष करते हुए एक-दूसरे के ऊपर रंग बरसाया। सुशांत केशरवानी के अनुसार हमारी मान्यता है कि जिस कुंवारे की शादी नहीं होती, उसको होली पर दूल्हा बनाने पर अगले लग्न में उसका विवाह हो जाता है।

 

इसलिए खेलते हैं तीसरे दिन रंग

सदियों पहले पीतल की पिचकारी का चलन था। सिर्फ ठठेरी बाजार में ही पीतल की पिचकारी मिलती थी। उसे बनाने में काफी समय लगता था। सारे दुकानदार व कारीगर होली के दिन व्यस्त रहते थे। इसी से ठठेरी बाजार के व्यापारी होलिका दहन के तीसरे दिन होली खेलते थे। मौजूदा समय ठठेरी बाजार के लोग होलिका दहन के पहले व दूसरे दिन भी रंग खेलते हैं। साथ ही परंपरा का निर्वाहन करने के लिए तीसरे दिन भी 

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