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गुटखा पान-सुपारी खैनी तंबाकू का सेवन व धूमपान करने वाले को ओरल कैंसर का खतरा होता ही है वे लोग जिन्हें गर्म चीजें या अन्य मसालेदार चीजें खाने का शौक है उन्हें भी सतर्क रहने की
मुंह में लंबे समय तक कोई भी छाला या घाव, ट्मूयर में बदल सकता है।
अलीगढ़, चौंकिए मत, यह सच है। लिवर, स्तन, गर्भाश्य व फैंफड़ों के साथ ओरल (मुख) कैंसर के रोगियों की बढ़ती संख्या से यही संकेत मिल रहे हैं। गुटखा, पान-सुपारी, खैनी, तंबाकू का सेवन व धूमपान करने वाले को ओरल कैंसर का खतरा होता ही है, वे लोग जिन्हें गर्म चीजें या अन्य मसालेदार चीजें खाने का शौक है, उन्हें भी सतर्क रहने की जरूरत है। विशेषज्ञों के अनुसार मुंह में लंबे समय तक कोई भी छाला या घाव, ट्मूयर में बदल सकता है। गर्म खाने-पीने से मुख के अंदर की परत छिल या जल जाती है, पहले अल्सर और बाद में ट्यूमर बन जाता है। रोग की भयावता को देखते हुए अप्रैल को ओरल कैंसर जागरूकता माह के रूप में मनाया जाता है। आइए, इसके बारे में जानें...
ओरल कैंसर का कारण
पन्नालाल हास्पिटल एंड रिसर्च सेटंर के वरिष्ठ कैंसर रोग विशेषज्ञ डा. महेश श्रीवास्तव ने बताया कि हमेशा तंबाकू उत्पाद चबाते रहना, गर्मी चीजे खाने से तलवा जल जाना, धूमपान, टेढ़े-मेढ़े या नुकीले दांत आदि घाव-अल्सर बनने के प्रमुख कारण हैं। शुरुआत ल्यूकोप्लेकिया (गाल के अंदर की परत को नुकसान), सबम्यूकस फाइब्रोसिस (मुख का लचीलापन जाना, सूखना, कान में दर्द-बहरापन आदि) व लाइकेन प्लेनस (लालिमा, घाव,सूजन आदि) से होती है। लक्षण दिखते ही अलर्ट हो जाना चाहिए।
शराब के साथ सिगरेट अधिक खतरनाक
जीवन ज्योति हास्पिटल की वरिष्ठ कैंसर रोग व लेजर स्पेशलिस्ट डा. संगीता सिन्हा बताती हैं कि रोगियों की हिस्ट्री से पता चला कि ज्यादातर तंबाकू चबाने के अलावा बीड़ी, सिगरेट, सिगार के रूप में धूमपान और एल्कोहल (शराब) का सेवन करने से ओरल कैंसर की चपेट में आए। एल्कोहल के साथ धूमपान करने वाले लोगों में ओरल कैंसर की आशंका और ज्यादा होती है। कई बार तो धूपमान, तंबाकू या शराब का सेवन न करने वाले भी इस रोग से ग्रस्त से हो जाते हैं, इसकी वजह फाल्टी डीएनए मानी जाती है, जो परिवार में पहले से कैंसर रोगी रहे व्यक्ति से आता है।
ये हैं प्रमुख
- होंठ या मुंह के अंदर ठीक न होने वाला छाला
- मुंह के किसी भी हिस्से का बढ़ना
- मुंह से खून आना, दांत ढीले हो जाना
- मुंह में दर्द या खाना निगलने में कठिनाई
- मुंह का न खुलना या मुश्किल से खुलना
- गर्दन में अचानक गांठ हो जाना
- अचानक से वजन घटना
- होंठ, चेहरा, गर्दन या ठोड़ी सुन्न होना
- मुंह या होंठ पर लाल और सफेद धब्बे-निशा
- जबड़ा में दर्द या कठोरता, जीभ में दर्द
नहीं तकनीकी व दवा से उपचार संभव
डा. संगीता के अनुसार ओरल कैंसर की कई स्टेज होती हैं। यदि लक्षणों की पहचान हो जाए तो इलाज आसान होता है। ओरल कैंसर पर काफी काम हुआ है। लेजर, सर्जरी, रेडिएशन, कीमोथेरेपी, टार्गेटेड ड्रग थेरेपी व अन्य तकनीकी की मदद के काफी रोगी स्वस्थ हुए हैं।
रोगी की पीड़ा
गौंडा रोड स्थित भीमपुर के कुंवरपाल (50 वर्ष) ने बताया कि मुझे तंबाकू व बीड़ी की लत थी। पिछले वर्ष सर्दी के मौसम में कान के निचले हिस्से में गाठ उभर आई। टांसिल समझकर पास के ही डाक्टर से इलाज कराने पहुंचे। उपचार के बाद लाभ नहीं हुआ। जीवन ज्योति हास्पिटल में जांच कराई तो ओरल कैंसर की पुष्टि हुई। इलाज शुरू हुआ। काफी पैसा और समय बर्बाद हो गया। लोगों से अपील है कि वे तंबाकू व शराब का स