सपा बसपा गठबंधन ही नहीं यूपी के मिशन-2019 में BJP के सामने हैं 8 चुनौतियां

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2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी (BJP) की डगर सपा-बसपा के गठबंधन के बाद अब और भी कठिन होने जा रही है। केन्द्र व राज्य सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं के प्रचार में कमी, अपनी सरकार में उपेक्षा से क्षुब्ध कार्यकर्ता, कर्जमाफी का असर न दिखना, सांसद और विधायक के बीच सामंजस्य का अभाव,  मंत्रियों की कार्यकर्ताओं से दूरी, कुछ मंत्रियों और उनके निजी स्टाफ के कदाचरण की शिकायतें, एससी-एसटी एक्ट में संशोधन से सवर्ण वर्ग में नाराजगी, सहयोगी दलों का असहयोगात्मक रवैया और छुट्टा जानवरों से खेती की बरबादी। भाजपा के लिए इन चुनौतियों से निपट पाना आसान नहीं है। 

1- राम मंदिर मुद्दे पर सहयोगी संगठन नाराज 
राम मंदिर मुद्दे पर सरकार द्वारा अध्यादेश लाने की चर्चा तो खूब हुई लेकिन बाद में सरकार ने इस मुद्दे पर अध्यादेश लाने की बात को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का इंतजार करने को कहा है। इससे विहिप व अन्य हिंदू संगठन खिन्न बताये जाते हैं। 

2- कार्यकर्ता नाराज  
पहले लोकसभा फिर 2017 विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत पाने वाली भाजपा 10 महीने बाद ही गोरखपुर, फूलपुर व कैराना लोकसभा सीट व नूरपुर विधानसभा उपचुनाव हार गई। प्रदेश में 15 सालों बाद सरकार बनाने के लिए जीजान से जुटे निचले स्तर के तमाम कार्यकर्ता सरकार में अपनी उपेक्षा से खिन्न होकर घर बैठ गए। 

3- सरकारी योजनाओं का जमीनी प्रचार नहीं
केन्द्र व राज्य सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं का लाभ तीन करोड़ लोगों को मिलने के दावे तो भाजपा ने बहुत किए, लेकिन प्रचार-प्रसार की कमी के कारण पार्टी लाभार्थियों को अभी तक सामने नहीं ला पाई। न तो सरकारी विभाग और न ही पार्टी के कार्यकर्ता उन्हें ढूंढते नजर नहीं आ रहे हैं।

4- सांसद-विधायकों का टकराव
प्रदेश के 30 ऐसे संसदीय क्षेत्र हैं, जहां भाजपा के सांसदों और विधायकों के बीच टकराव की स्थिति बनी हुई है। सांसदों और विधायकों में आपसी तालमेल के अभाव के कारण क्षेत्र में विकास के काम बाधित हो रहे हैं। यही नहीं इस बात का जनता के बीच संदेश अच्छा नहीं जा रहा है।

5- मंत्रियों व उनके निजी स्टाफ का कदाचरण
कुछ मंत्रियों और उनके निजी स्टाफ के कदाचरण की चर्चाओं ने भी अपने को 'पार्टी विद द डिफरेन्स' कहने वाली भाजपा पर छीटें डाली हैं। मंत्रियों के निजी स्टाफ के लोग घूस मांगने के आरोप में जेल जा रहे हैं। 

6- एससी-एसटी एक्ट में संशोधन से परांपरागत वोट बैंक पर असर
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व कायस्थ भाजपा के समर्थक माने जाते हैं। एससी-एसटी एक्ट में संशोधन की वजह से भाजपा के इस परम्परागत वोट बैंक में भी नाराजगी दिख रही है।

7- छुट्टा जानवरों से किसान परेशान
प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद अवैध स्लाटर हाउस तो बंद कर दिए गए, लेकिन गोवंश के पुनर्वास की स्थायी व्यवस्था न होने से छुट्टा जानवर किसानों की फसल को रौंदने लगे हैं। भाजपा के विधायकों ने भी विधानसभा में यह मुद्दा उठाया।

8- सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट में देरी 
भाजपा के दोनों सहयोगी दल अपना दल की प्रमुख अनुप्रिया पटेल और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के ओमप्रकाश राजभर भी सरकार और पार्टी में अपनी उपेक्षा का आरोप लगा रहे हैं। सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट न लागू होने से ओमप्रकाश राजभर ऐसे सहयोगी तो नाराज हैं ही, इसके साथ ओबीसी वर्ग के पार्टी से छिटकने का संकट बना हुआ है।

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