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Agra ka Petha गर्मियों में पहली पसंद बनता है आगरा का पेठा। बिना स्वाद के एक फल में विभिन्न फ्लेवर्स का जायका मिलाकर दिया गया रूप पेठे की विशेषता और स्वाद दोनों को दिन प्रतिदिन बढ़ा रहा है। पेठे का दैनिक कारोबार दो करोड़ रुपये से अधिक पहुंच चुक
आगरा का पेठे का दैनिक कारोबार दो करोड़ रुपये से अधिक पहुंच चुका है।
आगरा, । ताजमहल का दीदार करने वाले अपने जेहन में ताज की खूबसूरती के साथ यहां की मिठास को भी साथ लेकर जाते हैं। शहर की आन और शान पेठा, यूं ही विश्वभर में प्रसिद्ध नहीं है। बिना स्वाद के एक फल में विभिन्न फ्लेवर्स का जायका मिलाकर दिया गया रूप पेठे की विशेषता और स्वाद दोनों को दिन प्रतिदिन बढ़ा रहा है। इसे पसंद करने वालों ने आगरा की इस मिठाई को ग्लोबल मिठाई बना दिया है। विशेषकर गर्मियों में आगरा के पेठे की डिमांड बढ़ जाती है। क्योंकि पेठा न सिर्फ मिठाई बल्कि सेहत के लिए भी गुणकारी है
चिकित्सकों के अनुसार पेठा मिठाई पेट के लिए लाभकारी है। यदि भाेजन के बाद पेठे का पीस खाया जाए तो खाना जल्दी पचता है। यदि एसिडिटी की समस्या से पीड़ित हैं तो फ्रीज में रखे पेठे की ठंडक आपको आराम देगी।
कभी खांड और केवड़े का स्वाद लिये पेठा आज 60 से भी अधिक फ्लेवर्स के कारण मिठाइयों को भी पीछे छोड़ रहा है। ग्लोबल मार्केट में बढ़ी पेठे की डिमांड के चलते आज करीब पेठे का दैनिक कारोबार दो करोड़ रुपये से अध
एक नजर में पेठा उत्पादन
- 40 टन पेठे का हर रोज हाे रहा उत्पादन
- 500 पेठा उत्पादन इकाई हैं जिले में
- 2000 रिटेल दुकानें हैं शहर में
- 56 तरह के पेठे बनाए जाते हैं शहर में
- 10 हजार से अधिक मजदूर जुड़े हैं पेठा कारोबार से
पेठे की प्रमुख वैरायटी की दर
सामान्य पेठा- 85
सादा पेठा-
सादा अंगूरी- 150
लाल पेठा- 150
पान गिलोरी- 12 पीस 150
केसर पेठा- 150
केसर अंगूरी- 180
चैरी पेठा- 200
खस पेठा- 180
मिक्स चैरी- 200
कोकोनट- 200
रायल पेठा- 360
यहां बनता है पेठा
पेठा कारोबारी संजय बंसल के अनुसार आगरा में पहले पेठा सिर्फ नूरी दरवाजा क्षेत्र में ही बनता था। मगर, पर्यावरण संरक्षण को लेकर बरती जा रही सख्ती के चलते ये काम शहर के विभिन्न क्षेत्रों में फैल गया है। नूरी दरवाजे के साथ ही केके नगर, हलवाई की बगीची, एत्माद्दौला, रुनकता, खेरागढ़, फतेहाबाद, सैंया आदि क्षेत्रों में भी बन रहा है
महाभारत काल से उपयोग में आता रहा है पेठा
महाभारत काल से आयुर्वेद में पेठे को औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता रहा है। आयुर्वेदाचार्य डॉ कविता गोयल के अनुसार सदियों से लोग अम्लावित्त, रक्तविकार, वात प्रकोप, जिगर, स्त्री रोग आदि बिमारियों में इसका प्रयोग करते थे। जलने की दशा में भी पेठे से बनी दवा का प्रयोग लाभकारी होता है। कुम्हड़ा नाम के फल से पेठा बनाया जाता है। औषधीय गुणों से भरपूर होने के कारण इसे संस्कृत शब्द कूष्मांड के नाम से अनेक चिकित्सीय विधियों में प्रयोग करते हैं। पेठे की मिठाई में किसी तरह की चिकनाई का प्रयोग नहीं होता है।