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RGAन्यूज़
पौराणिक वनों में बिलायती बबूल का स्थान लेंगे ब्रज के पौधे। वन विभाग ने भेजा भारत सरकार को प्रस्ताव यूपीबीटीवीपी की बैठक में मुख्यमंत्री के समक्ष भी उठा था ये मुद्दा। बिलायती बबूल एक केमिकल (इसे एलएलओ पैथी कहते है) छोड़ती है
मथुरा के वनों से बिलायती बबूल को हटाकर ब्रज में पाए जाने वाले पौधे लगाए जाएंगे।
आगरा, ब्रज 84 कोस के पौराणिक 12 वन और 24 उपवनों से बिलायती बबूल (प्रोसापिस जूलीफ्लोरा) को हटाकर ब्रज में पाए जाने वाले पौधे लगाए जाएंगे। वन विभाग ने लखनऊ मुख्यालय के माध्यम से भारत सरकार को जनवरी में इसका प्रस्ताव भेजा था। पांच दिन पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ली उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ विकास परिषद की बैठक में इस मुद्दे को रखा गया था। मुख्यमंत्री ने भी इस पर अपनी सहमति दे दी है। भारत सरकार और सुप्रीम कोर्ट से इसकी अनुमति मिलने पर बिलायती कीकर को प्रतिस्थापित कर उसके स्थान पर स्थानीय प्रजाति के पौधे लगाने का कार्य आरंभ
ब्रज 84 काेस परिक्रमा मार्ग में 12 वन, 12 उपवन, 12 प्रतिवन, और 12 अधिवन का उल्लेख पुराणों और उपनिषदों में मिलता है। अन्य विशेष वनों को शामिल किया जाए तो कुल 137 पौराणिक वन है। इनमें से 37 वनों के स्थल ऐसे हैं जो अत्यधिक जैविक दबाव के कारण अब वन स्वरूप में विद्यमान नहीं हैं। इन वनों के स्थलों को राजस्व के पुराने रिकार्ड के अनुसार चिन्हित करने का प्रयास कर रहा है। ये 37 वन वर्तमान में बिलायती बबूल से आच्छादित है। बिलायती बबूल का जीवनकाल 10 से 30 वर्ष
प्रभागीय निदेशक सामाजिक वानिकी प्रभाग मथुरा रजनीकांत मित्तल ने उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ विकास परिषद के माध्यम से उत्तर प्रदेश की तरफ से आइए याचिका सर्वोच्च न्यायालय में दायर कराकर और बिलायती बबूल के वनों को प्रतिस्थापित कर उनके स्थान कदम्ब, पीपल, बरगद, पाकड़, नीम जैसे चौड़ी पत्ती के पौधे लगाने की अपेक्षा की थी। पांच जून को हुई परिषद की बैठक में इस प्रस्ताव को मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ के समक्ष प्रस्तुत किया गया और मुख्यमंत्री ने इस पर को एतराज नहीं किय
जनवरी में भेजा गया था प्रस्ताव
वन विभाग ने जनवरी में बिलायती बबूल को प्रतिस्थापित कर उनके स्थान पर ब्रज मंडल में पाए जाने वाले स्थानीय प्रजाति के पौधे लगाने की अनुमति के लिए जनवरी में ही प्रस्ताव मुख्यालय को भेज दिया। डीएफओ रजनीकांत मित्तल ने बताया कि लखनऊ से इस प्रस्ताव को भारत सरकार को भेजा गया है। भारत सरकार की अनुमति के बाद सुप्रीम कोर्ट से इसकी अनुमति ली जाएगी। जब सुप्रीम कोर्ट से इसकी अनुमति मिल जाएगी तो पहले मथुरा में पायलट प्रोजेक्ट पर कार्य किया जाएगा और उसके बाद इसे बड़े स्तर कार्य शुरू करा दिया जाएगा।
ये है दिक्कत
बिलायती बबूल एक केमिकल (इसे एलएलओ पैथी कहते है) छोड़ती है। जो किसी दूसरी जाति के पौधे को नहीं होने देती है। इसलिए इन के बीच मेंं कोई पौधा नहीं लगाया जा सकता है। इसको उखाड़ कर दूसरे स्थान पर प्रतिस्थापित कर दिया जाए तो भी यह कोई आवश्यक नहीं है कि वह उस स्थान पर उगेगी नहीं। दोबारा से उग सकती है। दोबारा उग आई तो ये प्रोजेक्ट फेल हो जाएगा। इसलिए वन विभाग भारत सरकार और सुप्रीम कोर्ट से अनुमति लेकर पहले छोटा प्रयोग करेगा। सफल होने पर बड़े-बड़े प्रयोग किए जाएंगे। प्रयोग के सफल होने पर ब्रज के पौराणिक वन बिलायती बबूल विहीन हो जाएंगे। डीएफओ ने बताया, पूर्व में ऐसे प्रयोग ब