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RGA News ,बीजापुर
जीवन के लिए पानी अनमोल है, लेकिन अगर पानी जीवनरेखा की जगह 'जहर' बन जाए तो पूरा जीवन अपंगता के बोझ तले आ जाता है। बीजापुर जिला मुख्यालय से तकरीबन 60 किलोमीटर दूर भोपालपटनम स्थित छत्तीसगढ़ का एक ऐसा गांव है, जहां प्रदूषित जल के कारण युवा 25 वर्ष की उम्र में ही लाठी लेकर चलने को मजबूर हो जाते हैं और 40 साल के पड़ाव में बूढ़े होने लग जाते हैं।
यहां के हैंडपंपों और कुओं से निकलने वाले पानी में फ्लोराइड की मात्रा अधिक होने के कारण पूरा का पूरा गांव समय से पहले ही अपंगता के साथ-साथ लगातार मौत की ओर बढ़ रहा है। शुद्ध पेयजल की कोई व्यवस्था नहीं है। संबंधित विभाग एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डाल रहे हैं। इस गांव में आठ वर्ष की उम्र से लेकर 40 वर्ष तक के हर तीसरे व्यक्ति में कूबड़, दांतों में सड़न, पीलापन और बुढ़ापा नजर आता है।
गांव के सेवानिवृत्त शिक्षक तामड़ी नागैया, जनप्रतिनिधि नीलम गणपत और तामड़ी गोपाल का कहना है कि गांव में पांच नलकूप और चार कुएं हैं। सभी नलकूपों और कुओं में फलोराइड युक्त पानी निकलता है। प्रशासन ने सभी नलकूपों को सील कर दिया था, लेकिन गांव के लोग अब भी दो नलकूपों का इस्तेमाल कर रहे हैं। उनका कहना है कि हर व्यक्ति शहर से खरीदकर पानी नहीं ला सकता है, इसलिए यही पानी पीने में इस्तेमाल होता है। गर्मी के दिनों में कुछ लोग तीन किलोमीटर दूर इंद्रावती नदी से पानी लाकर उबालकर पीते हैं।
तीस साल से समस्या बढ़ी
ग्रामीणों के मुताबिक यह समस्या पिछले तीस साल से ज्यादा बढ़ी है। उससे पहले तक यहां के लोग कुएं का पानी पीने के लिए उपयोग किया करते थे, जब से नलकूपों के लिए खनन किया गया, यह समस्या विराट रूप लेने लगी। बताया जा रहा है कि यह पूरा गांव भूगर्भ में स्थित चट्टान पर बसा हुआ है और यही वजह है कि पानी में फलोराइड की मात्रा अधिक है।
ग्रामीणों की शिकायत के बाद गांव में कैम्प लगाकर लोगों का इलाज किया गया था। कुछ लोगों को बीजापुर भी बुलाया गया था। इस गांव के पानी में फलोराइड की मात्रा अधिक होने के कारण हड्डियों में टेड़ापन, कुबड़पन और दांतों में पीलेपन के साथ सड़न की समस्या आती है। इसका इलाज सिर्फ शुद्ध पेयजल से ही हो पाएगा। शिकायत के बाद गांव के अधिकांश हैंडपंप सील करवा दिए गए थे।
डॉ. बीआर पुजारी, सीएमएचओ