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Jagannath Rath Yatra पंजाब प्रांत से आए साधक हरिदास ने पुरी से लाकर भगवान को किया स्थापित। पुरी में पुजारियों के नाराज होने पर राजा से मिले लेकिन वो भी नाराज हो गए। अन्न जल का त्याग कर समुंद्र किनारे बै
वृंदावन स्थित जगन्नाथ मंदिर में विग्रह का पूजन करते पुजारी।
आगरा, पंजाब प्रांत के साधक संत हरिदास ने यमुना किनारे भगवान की साधना के लिए डेरा डाल रखा था। संत हरिदास की साधना से प्रसन्न होकर भगवान जगन्नाथ ने उन्हें स्वप्न दिया कि पुरी में 36 वर्ष बाद विग्रह परिवर्तन होता है और जिस विग्रह की वर्तमान में पुरी में पूजा-सेवा हो रही है, उसे समुद्र में प्रवाहित कर दिया जाएगा। इस विग्रह को लाकर वृंदावन में यमुना किनारे स्थापित करो। भगवान की इच्छा को ध्यान में रखते हुए संत हरिदास पुरी के लिए रवाना हो गए और काफी दिक्कतों के बाद पुरी में सेवित विग्रह को लेकर वृंदाव आए और जगन्नाथजी को वृंदावन में स्थापित क
यमुना किनारे स्थित जगन्नाथ मंदिर के सेवायत नीलमाधव शर्मा ने बताया करीब पांच सौ साल पहले पंजाब प्रांत से आए भगवान श्रीकृष्ण के साधक संत हरिदास यमुना किनारे साधना करते थे। एक रात संत हरिदास को स्वप्न में भगवान जगन्नाथ दिखे और उन्हें आदेश दिया हरिदास तुम मेरी अनंत समय से भक्ति कर रहे हो, तो मेरी इच्छा है तुम जगन्नाथपुरी आओ। भगवान की इच्छा सुनकर पुरी के लिए चल दिए, लेकिन बीच रास्ते में पड़ाव के दौरान एकबार फिर भगवान सपने में आए और आदेश दिया हरिदास जब जगन्नाथपुरी जा रहे हो, तो वहां मेरा विग्रह परिवर्तित किया जाएगा। जो हर बार 36 वर्ष में एक बार किया जाता है और उस विग्रह परिवर्तित को समुद्र में प्रवाह कर दिया जाता है, लेकिन इस विग्रह परिवर्तन को आप समुद्र में ना बहाने देना और अपने साथ वृंदावन ले जाकर
प्रभु का आदेश सुन संत हरिदास जब जगन्नाथपुरी पहुंचे तो वहां विग्रह परिवर्तन में 4 दिन का समय था। ऐसे में हरिदास ने पंडितों से विग्रह परिवर्तन को अपने साथ जाने की बात कही। जिससे वह काफी नाराज हो गए। तो हरिदास जगन्नाथ पुरी के राजा रुद्रप्रताप के पास विग्रह परिवर्तन को लेकर बात करने के लिए पहुंचे। राजा ने संत हरिदास का सम्मान किया। लेकिन जब हरिदास ने अपना आने का कारण बताया तो राजा भी काफी नाराज हो गए। कहा ये कैसे संभव है, हम अनादि काल से विग्रह परिवर्तित को समुद्र प्रवाहित करते हैं। राजा क्रोधित हुए तो हरिदास समुद्र के किनारे आकर बैठ गए और अन्न जल का त्याग दिया। मन ही मन प्रभु जगन्नाथ से शिकायत भी करने लगे कि आप ने ही आदेश दिया कि मेरे विग्रह परिवर्तित हो वृंदावन ले जाओ और आप ही हैं जो राजा को भी ऐसा करने से मना भी कर रहे हैं। इसके बाद रात में राजा को स्वप्न में भगवान जगन्नाथ ने आदेश दिया कि हरिदास को विग्रह परिवर्तित ले जाने दीजिए। भगवान का आदेश पाते ही सुबह राजा खुद हरिदास को खोजते हुए समुद्र किनारे पहुंचा और हाथ जोड़ क्षमा मांग विग्रह को अपने साथ ले जाने की अनुमत
राजा ने न केवल अनुमति दी। बल्कि विग्रह परिवर्तित के साथ उपहार देकर हरिदास को विदा किया। राजा ने विग्रह को रथ पर विराजमान करवाया और संत हरिदास से वृंदावन ले जाने का आग्रह किया। तभी संत हरिदास भगवान जगन्नाथ के विग्रह को लेकर वृंदावन आए और यमुना किनारे संत हरिदास ने जगन्नाथ प्रभु का मंदिर बनवाया और विग्रह परिवर्तित को