

RGA न्यूज़
Radha Ashtami 2022 चार सितंबर को है राधाष्टमी। राधाकृष्ण की प्राचीन लीलाओं को संजोए हुए है बरसाना का ब्रह्मांचल पर्वत। मोरकुटी पर राधा के लिए मोर बने थे कान्हा। भाद्रसुदी की नवमीं को जीवंत हो उठती है मयूर लीला।
बरसाना में ब्रह्मांचल पर्वत पर स्थित लाड़ली जी का मंदिर।
आगरा, । राधाकृष्ण के बाल लीलाओं का साक्षी वैसे तो पूरा ब्रज मण्डल है, लेकिन ब्रह्मांचल पर्वत का हर अंग कान्हा की दिव्य लीलाओं को संजोए हुए है। पर्वत पर स्थित मोरकुटी वो प्राचीन स्थल है। जहां भगवान श्रीकृष्ण राधारानी के लिए मोर बने थे। आज भी यह लीला बूढ़ी लीला महोत्सव के दौरान होती है
ब्रह्मांचल पर्वत पर स्थित प्राचीन मोरकुटी स्थल जहां आज भी श्याम सुंदर मोर रुप मे विचरण करते है। उक्त प्राचीन स्थल का प्राकट्य आज से साढ़े पांच सौ बर्ष पहले श्रील नारायण भट्ट जी ने किया था। जानकारों की माने तो पहले यहा सिर्फ रास चबूतरा हुआ करता था। जिसके बाद जयपुर नरेश माधो सिंह ने उक्त चबूतरा पर एक कमरा बनवाया था। लेकिन आज उक्त प्राचीन स्थल पर एक भव्य मंदिर बना हुआ है। जहा आज भी राधाकृष्ण के मयूर चित्र की पूजा अर्चना होती है। मान्यता है कि एक समय कुंवरि राधिका मोरकुटी आई, नृत्य मयूर कौ देख उत्कंठा जाइ। एक बार राधारानी अपनी सखियों के साथ विचरण करती हुई गहवरवन में मोर देखने गई थी। लेकिन वहाँ एक भी मोर न दिखने पर वो मायूस हो गई। बृषभान नन्दनी को मायूस देख खुद भगवान श्रीकृष्ण मोर का रुप धारण कर नृत्य करने लगे। इस दौरान मोर को नाचता देख राधारानी उसे लड्डू खिलाती है तो तभी उनकी सखिया पहचान जाती है कि खुद श्याम सुंदर मयूर बन के आयौ है ऒर कहती है राधा ने बुलायो कान्हा मोर बन आयो। उक्त प्राचीन लीला का मंचन आज भी बूढ़ी लीला महोत्सव के दौरान भाद्रसुदी की नवमीं को उसी स्थान पर किया जाता है। जहां राधारानी के लिए कान्हा मोर बन
ब्रह्माजी का अवतार है ब्रह्मांचल पर्वत
ब्रज में तीनों देवता पर्वत के रुप मे विराजमान है। गोवर्धन पर्वत साक्षात विष्णु का अवतार है तो वहीं ब्रह्मांचल पर्वत ब्रह्मा जी का अवतार है। नन्दगांव में स्थित नंदीश्वर पर्वत साक्षात भोलेनाथ का अवतार माना जाता है। ब्रह्मांचल पर्वत पर तमाम लीला स्थली मौजूद है। मोरकुटी, मानगढ़, दानगढ़, विलासगढ़, सांकरी खोर, गहवरवन यह तमाम प्राचीन स्थलों पर राधाकृष्ण ने अपनी बाल लीलाएं की थी। श्रील नारायण भट्ट ने ही इन प्राचीन स्थलों को प्राकट्य किया था। ब्रज में सबसे पहले रासलीलाओं की शुरुआत भी भट्ट जी ने शुरु करा
मोरकुटी वो प्राचीन स्थल है। जहां प्यारे श्याम सुंदर राधा के लिए मोर बने थे। आज भी यहां मोर भगवान की पूजा होती है। मोर राधारानी को सबसे ज्यादा प्रिय था। तभी तो राधा के व्याकुलता को देख मुरली मनोहर मोर बनकर नाचे थे। उक्त लीला का मंचन आज भी भाद्रसुदी की नवमीं को होता है। स्वामी हरिदास ने मयूर लीला का वर्णन करते हुए पद लिखा कि नाचत श्याम मोरन संग मुदित ही श्याम रिहझावत, ऐसी कोकिला अलावत पपैया देत स्वर ऐसो मेघ गरज मृदंग बजावत।L