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RGAन्यूज़
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि उचित सजा का फैसला करने में अपराध की गंभीरता पर ही मुख्य रूप से विचार करना चाहिए और अगर सजा कम करके अनुचित सहानुभूति दिखाई जाती है तो इससे कानून की प्रभावशीलता में लोगों की आस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
सजा कम करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट की दो टूक, कहा- कानून प्रभावी होने के विश्वास पर पड़ता है प्रतिकूल असरसजा कम करने से कानून प्रभावी होने के विश्वास पर पड़ता है प्रतिकूल असर
नई दिल्ली,सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि उचित सजा का फैसला करने में अपराध की गंभीरता पर ही मुख्य रूप से विचार करना चाहिए और अगर सजा कम करके अनुचित सहानुभूति दिखाई जाती है तो इससे कानून की प्रभावशीलता में लोगों की आस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एएस ओका की पीठ बांबे हाई कोर्ट के एक फैसले के खिलाफ अपील पर सुनवाई कर रही थी। 1992 के एक मामले में तीन दोषियों को दी गई एक साल की साधारण कारावास की सजा को शीर्ष अदालत ने छह महीने और
सजा कम करने का पड़ता है प्रतिकूल असर
अपने दिसंबर, 2016 के फैसले में हाई कोर्ट ने निचली अदालत द्वारा चार व्यक्तियों को दी गई तीन साल की सजा को घटाकर एक वर्ष कर दिया था। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि एक आरोपित की मौत हो गई है और शिकायतकर्ता द्वारा उसके विरुद्ध दायर अपील खारिज हो जाती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट के फैसले के अवलोकन से पता चलता है कि आरोपित के पक्ष में गंभीरता को कम करने वाली किसी भी प्रासंगिक परिस्थिति के अस्तित्व के संबंध में कोई निष्कर्ष दर्ज नहीं किया गया। शीर्ष अदालत ने तीनों आरोपितों को अपीलकर्ता और घायल गवाह को 40,000 रुपये की अतिरिक्त राशि का भुगतान करने और छह महीने का साधारण कारावास भुगतने के लिए छह हफ्ते में आत्मसमर्पण करने का निर्देश भी दिया। अभियोजन पक्ष के अनुसार मार्च, 1992 में चार लोगों ने अपीलकर्ता और गवाह से मारपीट
जातिगत भेदभाव के शिकार लोगों को न्याय दिलाने में है समाधान
समाज को जातिविहीन बनाना समाधान नहीं है, बल्कि जातिगत भेदभाव के शिकार लोगों को न्याय दिलाने में है। आइआइटी दिल्ली में रियलाइजिंग डायवर्सिटी: मेकिंग डिफरेंसेज मैटर इन हायर एजुकेशन विषय पर न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि जाति हमारे समाज की सबसे हानिकारक विशेषताओं में से एक है। जब जातिगत भेदभाव के आधार पर किसी के साथ अन्याय होता है, तो जाति ही उसकी पहचान बनती है। इसलिए उन लोगों सक्षम बनाने पर ध्यान देना चाहिए, जो वर्षों से जातिगत भेदभाव के शिकार हैं और उनके साथ यह भेदभाव अभी भी जारी है। उन्होंने कहा कि उच्च जाति के लोग जाति को एक समस्या मानते हैं, लेकिन यह ऐसी समस्या है जिसका समाधान हो सकता है। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने आगे कहा कि विविध पृष्ठभूमि के न्यायिक क्लर्को के साथ बातचीत करने के उनके अनुभव ने उन्हें जीवन और समाज को देखने