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Pitru Paksha 2022 श्राद्ध के दिनों में मृत आत्माएं मुक्ति के लिए घूमती हैं। अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध या तर्पण करने का रिवाज है। यह भी कहा जाता है कि श्राद्ध के दिनों में यमराज आत्माओं को अपने परिवार को देखने के लिए भेजते ह
बल्केश्वर घाट पर आज पूर्णिमा के श्राद्ध का तर्पण करते लोग।
आगरा, । श्रद्धा का पर्व यानी श्राद्ध पक्ष आज से आरंभ हो चुका है। आज पूर्णिमा का पहला श्राद्ध है। पितरों को समर्पित इन 15 दिनों में तर्पण किया जाएगा लेकिन तर्पण करते समय विशेष नियमों का पालन जरूर करना चाहिए। धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी के अनुसार अपने मृत पूर्वजों को सम्मान देने के लिए यह पर्व मनाया जाता है। श्राद्ध के दिन पूरे मन से पूर्वजों को याद किया जाता है।
श्राद्ध की पूजन विधि
चंद्र कैलेंडर के अनुसार जिस पूर्वज की मृत्यु जिस तिथि को हुई थी, उनका श्राद्ध या तर्पण पितृ पक्ष की उसी तिथि को किया जाता है। पूजा करने वाले व्यक्ति को दूर्वा घास से बनी अंगूठी धारण करनी होती है। तिथि वाले दिन स्नान करने के बाद पूजन स्थल में बैठें। आसपास का माहौल शांत होना चाहिए। इसके बाद अपने पितरों का स्मरण करें। अब दोनों हाथों में जल या गंगाजल लेकर उसे भोग के चारों ओर घुमाएं और फिर एक पानी के लोटे में डाल दें।। इसे पिंड दान कहते हैं। इस दिन सात्विक भोजन का पितरों को भोग लगाया जाता है। पिंड दान में लगाए गए भोग को गाय, कुत्ते, कौअे या चींटियों को खिला दें। हवन कुंड की अग्नि में भोजन को अर्पित कर के भी पूर्वजों को याद कर सकते हैं। अब ब्राह्मण को भोज कराएं और दक्षिणा दें। दोनों हाथों को जोड़कर पितर की मुक्ति की कामना करें और उनका आशीर्वाद लें। पितृ पक्ष में दान-पुण्य का बहुत महत्व ह
पितृ पक्ष का महत्व
भारत में हर साल पितृ पक्ष मनाए जाते हैं। यह हिंदू पंचांग के अनुसार चातुर्मास में आता है। किवदंती है कि श्राद्ध के दिनों में मृत आत्माएं मुक्ति के लिए घूमती हैं। अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध या तर्पण करने का रिवाज है। यह भी कहा जाता है कि श्राद्ध के दिनों में यमराज आत्माओं को अपने परिवार को देखने के लिए भेजते हैं। परिवार के लोगों द्वारा मृत व्यक्ति का तर्पण करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है और वे अपने स्थान पर वापिस लौट जाते हैं। अपने पूर्वजों को सम्मान देने और उन्हें याद करने का यह एक तरीका है। यह शोक अवधि अश्विनी महीने में कृष्ण पक्ष या पूर्णिमा तिथि या पूर्णिमा के दिन शुरू होती है।
पितृ पक्ष के नियम
1- घर या परिवार के पुरुष ही पूर्वजों का तर्पण या श्राद्ध कर्म करते हैं। आमतौर पर परिवार का बड़ा बेटा यह कार्य करता है। पितृ पक्ष के दिन नहाने के बाद व्यक्ति धोती पहनता है और कुश घास से बनी अंगूठी पहनता है। हिंदू शास्त्रों के अनुसार कुश घास करुणा का प्रतीक है और पूर्वजों का आह्वान करने के साधन के रूप में प्रयोग की जाती है।
2- पिंडदान यानि तिल, चावल और जौ के आटे से बने गोले चढ़ाने की परंपरा है। पितृ पक्ष के अनुष्ठान पुजारी या पंडित के बताए अनुसार या उनकी मौजूदगी में ही किए जाते हैं। इसके बाद, 'दूर्वा घास' नामक एक अन्य पवित्र घास का उपयोग करके भगवान विष्णु का आशीर्वाद लिया जाता है। माना जाता है कि दरभा घास का उपयोग किसी के जीवन में बाधाओं को दूर करता ह
3- पितृ पक्ष की तिथि पर पितरों को भोग लगाने के लिए विशेष रूप से भोजन तैयार किया जाता है। इस भोजन का एक हिस्सा कौवे को अर्पित करने की प्रथा है, क्योंकि कौवे को भगवान यम का दूत माना जाता है। यदि कौआ भोजन करता है तो यह एक शुभ संकेत माना जाता है। इसके बाद, ब्राह्मण पुजारी को भोजन कराया जाता है और अनुष्ठान करने के लिए उन्हें दक्षिणा दी जाती है। इन सभी अनुष्ठानों को पूरा करने के बाद परिवार के सदस्य एक साथ बैठकर भोजन करते हैं।
4- पितृ पक्ष के दौरान, पवित्र हिंदू शास्त्रों जैसे अग्नि पुराण, गरुड़ पुराण और गंगा अवतारम और नचिकेता की विभिन्न कहानियों को पढ़ने की अत्यधिक अनुशंसा की जाती
धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी
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