RGA News Chief Editor
*किताबो में टीवी में देखते थे खेलने की चीजेंअसली में मिली तो खिल उठे मासूम चेहरे।*
*सोशल एक्टिविस्ट विशेष कुमार ने किया बच्चों के इस सपने को पूरा।*
*अध्यापकों से पूछते थे की कैसी होती है असली में फुटबॉल,बैडमिंटन, वॉलीवाल,वास्केटबाल,क्रिकेट किट।*
*फुटबॉल,बैडमिंटन,वॉलीवाल,वास्केटबाल,क्रिकेट किट आदि देख बच्चों की खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा।*
कहने को हम आज कितने भी विकसित होते जा रहे हो लेकिन असल मायने में भारत देश की अधिकांश आबादी आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में ही बसर करती है और ग्रामीण क्षेत्रों में पढ़ने वाले बच्चे सरकारी स्कूलों तक ही बमुश्किल सीमित रह जाते हैं ऐसे में भले सरकार द्वारा बहुत सारी योजनाएं चलाई जाती हैं जिसमें से ज्यादातर कागजों तक ही सीमित रह जाती हैं।आज ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित विद्यालयों की जर्जर स्थिति जग जाहिर ही है ऐसे में बच्चों को उनकी शिक्षा भली-भांति मिल जाए यही बड़ी बात है खेल कूद का सारा सामान तो बड़ी दूर की बात है।जो उनके मानसिक शारीरिक विकास की दृष्टि से भी बेहद जरूरी है।
खैर बचपन तो बचपन ही है ऐसे तमाम ख्वाहिशें उम्मीदें और मन में सपने होना भी लाजमी हैं
कुछ ऐसा ही देखने को मिला
बरेली से तकरीबन 40 किलोमीटर दूर ग्राम कादराबाद विकास क्षेत्र समरेर तहसील दातागंज जिला बदायूं में
पूर्व माध्यमिक विद्यालय में जहाँ पढ़ने वाले अरुण अरशद,सुमन,श्रीनिवास,नर्गिस,सुमन,सोहिल,बच्चे तमाम बच्चें हमेशा खेलने कूदने की चीजों के बारे अक्सर पूछा करते थे की असली क्रिकेट बैट,बैडमिंटन,वॉलीबॉल,फुटबॉल कैसा होता है।उन्होंने केवल इन सब चीजों को या तो किताबों में देखा या कभी टीवी में देख लिया।
या शिक्षकों ने आईसीटीसी टेक्नोलॉजी का प्रयोग करके उनको दिखा दिया दूसरी ओर बड़े स्कूलों में इंग्लिश मीडियम स्कूलों में इन सब चीजों की कमी तो दूर-दूर तक महसूस तक नहीं होती है।
बहराल जब इस बाबत विद्यालय की शिक्षिका डॉ दीपिका सिंह ने सोशल एक्टिविस्ट विशेष कुमार से जिक्र किया तो उन्हें भी सुनकर बुरा लगा उन्होंने उसी समय निर्णय लिया की वो सब चीजें लेंगे खुद विद्यालय आकर बच्चों को देंगे।जिसके बारे में बच्चें पूछा करते थे।उधर दीपिका सिंह ने भी उन सभी बच्चों को बताया जल्द ही वो ही सारी चीजें आपके स्कूल में मुहैया हो जाएंगी इतना सुनते ही सभी बच्चों की खुशी का मानो ठिकाना नहीं रहा बच्चे भी बड़ी ही उत्सुक्ता से इन सभी खेलने की चीजों का इंतज़ार करने लगे सोमवार की सुबह सोशल एक्टिविस्ट विशेष कुमार सारी चीजें खुद विद्यालय लेकर पहुचें और बच्चों को दी।चीजें पाकर नन्हे विद्यार्थियों कि खुशी का तो मानो ठिकाना ही ना रहा सब के सब खुशी से झूमने लगे।जब खेलने की सारी चीजें उनके सामने आईं जिन्हें वो अब तक किताबों में या सिर्फ टीवी में देखते आये।
ऐसे में हर किसी के चेहरे पर भीतरी मुस्कान साफ नजर आ रही थी साथ ही साथ स्कूल के शिक्षक भी काफी खुश नजर आए।
खुद समाज सेवा के क्षेत्र में बिल्कुल अलग अंदाज से काम करने किए सोशल एक्टिविस्ट विशेष कुमार जाने जाते हैं और हमेशा वे ऐसा संदेश देते हैं जो औरो को भी सेवा के क्षेत्र में कार्य करने के लिए प्रेरित कर जाता है।विशेष कुमार आर्ट ऑफ लिविंग के एबीसी मेंबर भी हैं।