देश के हिमालयी क्षेत्र में पलायन रोकने को हरित कौशल विकास योजना शुरू

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RGA News अल्मोड़ा 

केंद्र सरकार के वन पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने देश के हिमालयी क्षेत्र में पलायन रोकने को युवाओं के लिए हरित कौशल विकास योजना शुरू की है, इसके तहत युवाओं में प्रकृति से जुड़े कौशल विकसित कर रोजगार के अवसर पैदा किए जाएंगे।

जीबी पंत हिमालय पर्यावरण एवं विकास संस्थान की सिक्किम इकाई ने इसी माह स्थानीय युवाओं के लिए नेचर टूरिज्म का प्रशिक्षण शुरू किया है। वहीं जीबी पंत संस्थान कटारमल में जैव विविधता से संबंधित पंजिका तैयार करने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। हिमालय क्षेत्र के युवाओं को पिरूल से कोयला तैयार करने, बेमौसमी सब्जी उत्पादन सहित अन्य तरह के प्रशिक्षण दिए जाएंगे।

केंद्र सरकार ने अब हिमालयी क्षेत्र में रहने वाले युवाओं में प्रकृति पर आधारित कौशल विकसित करके स्थानीय स्तर पर ही रोजगार के अवसर पैदा करने का निर्णय लिया है। इसके लिए जीबी पंत हिमालय पर्यावरण एवं विकास संस्थान कोसी कटारमल (अल्मोड़ा) द्वारा उत्तराखंड, हिमाचल, सिक्किम सहित सभी हिमालयी राज्यों में हरित कौशल विकास कार्यक्रम शुरू किए जा रहे हैं। जीबी पंत संस्थान के निदेशक डॉ.आरएस रावल ने बताया कि संस्थान की सिक्किम इकाई द्वारा जनवरी से मार्च तक तीन सप्ताह के नेचर टूरिज्म प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले युवा क्षेत्र में घूमने आने वाले पर्यटकों को ईको पर्यटन, स्थानीय वनस्पतियों सहित प्रकृति से जुड़े विषयों आदि के बारे में जानकारी देकर गाइड के तौर पर आय अर्जित कर सकेंगे।  

डॉ. रावल ने बताया कि जनवरी पहले सप्ताह से स्थानीय जीबी पंत संस्थान में उत्तराखंड के 15 बरोजगारों को लोक जैव विविधता पंजिकाएं तैयार करने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। उन्होंने बताया केंद्र सरकार द्वारा 2004 में पारित जैव विविधता अधिनियम के अंतर्गत अब ग्राम पंचायत से लेकर जिला पंचायत स्तर तक जैव विविधता प्रबंधन कमेटी बनाकर हर निकाय में जैव विविधता पंजिका तैयार करना जरूरी है। जैव विविधता प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद युवा निकायों में पंजिकाएं तैयार करवाकर आय अर्जित कर सकेंगे। इसके अलावा हरित कौशल विकास योजना के अंतर्गत युवाओं को पिरूल से कोयला और पेपर बनाने और बेमौसमी सब्जी पैदा करने आदि का प्रशिक्षण भी दिया जाएगा। संस्थान की हिमाचल प्रदेश शाखा द्वारा वहां के युवाओं को वनों में पैदा होने वाले हिसालु, किलमोड़ा आदि से जैम, मुरब्बा आदि बनाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है।

 

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