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RGA News संवाददाता,लखनऊ
उत्तर प्रदेश के डीजीपी ओपी सिंह ने कहा कि उत्पीड़न के मामले में शिकायती प्रार्थना पत्र मिलने के बाद उसे परिवार कल्याण समिति (फैमिली वेलफेयर कमेटी) को संदर्भित करने की विधिक बाध्यता समाप्त हो गई है। जरूरी होने पर अब ऐसे मामलों में सीधे एफआईआर भी दर्ज की जा सकती है।
उन्होंने कहा कि यह व्यवस्था दहेज उत्पीड़न की धारा 498 'ए' के बारे में सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों में दी गई है। सुप्रीम कोर्ट की ओर से आईपीसी की धारा 498 'ए' के तहत मुकदमों के पंजीकरण, गिरफ्तारी एवं विवेचना के संबंध में पारित निर्णय में इन दिशा-निर्देश का उल्लेख है। डीजीपी ने कहा कि सभी एडीजी जोन, रेंज के आईजी-डीआईजी व जिलों के पुलिस कप्तानों को निर्देश दिया गया है कि सुप्रीम कोर्ट के इन दिशा-निर्देशों के बारे में गहन प्रशिक्षण के लिए स्थानीय स्तर पर कार्यशाला का आयोजन कर विवेचकों को समझौता होने पर हाईकोर्ट के आदेश से ही निरस्त होगी एफआईआर
आईजी कानून-व्यवस्था प्रवीण कुमार ने बताया कि ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य एफआईआर दर्ज करने से पहले कतिपय दशाओं में प्रारंभिक जांच कराने की व्यवस्था है, लेकिन सभी प्रकरणों में यह अनिवार्य नहीं है। यदि किसी प्रकरण में प्रारंभिक जांच कराने का निर्णय लिया जाता है तो जांच पूरी करने की समय सीमा 15 दिनों की है। अपवाद स्वरूप इसे आवश्यक कारणों का विशिष्ट उल्लेख करते हुए 6 सप्ताह तक बढ़ाया जा सकता है। इसी तरह अभियुक्तों की गिरफ्तारी के संबंध में भी सुप्रीम कोर्ट ने दिशा-निर्देश दिए हैं। मुकदमा दर्ज होने के बाद वैवाहिक विवाद के पक्षकारों के बीच समझौता हो जाने की स्थिति में सीआरपीसी की धारा 482 के तहत समझौते के आधार पर एफआईआर निरस्त करने का अधिकार केवल हाईकोर्ट को है। इस तरह समझौते के आधार पर विधिक कार्यवाही अब हाईकोर्ट के आदेश से ही समाप्त होगी।