पटना लिटरेचर फेस्टिवलः हिंदी साहित्य को वाजपेयी ने दिए अटल शब्द

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RGA न्यूज़ पटना बिहार

तीसरे पटना लिटरेचर फेस्टिवल का आगाज हो गया है। तीन फरवरी तक राजधानी के ज्ञान भवन में आयोजित इस उत्सव में हर तरह के साहित्य का संगम होगा। ..

पटना :- साहित्य प्रेमियों के लिए इंतजार की घड़ियां खत्म हुईं। तीसरे पटना लिटरेचर फेस्टिवल का आगाज हो गया है। तीन फरवरी तक राजधानी के ज्ञान भवन में आयोजित इस उत्सव में हर तरह के साहित्य का संगम होगा। कला, संस्कृति एवं युवा विभाग और नवरस स्कूल ऑफ परफॉर्मिग आर्ट्स के द्वारा दैनिक जागरण के सहयोग से हो रहे तीन दिवसीय आयोजन में देशभर के 85 साहित्यकार शिरकत कर रहे हैं। 
नमन से हुआ उत्सव का आगाज 
शुक्रवार को इस उत्सव की शुरुआत 'नमन' से हुई। इसमें अटल बिहारी वाजपेयी, अन्नपूर्णा देवी, वीएस नायपॉल, केदारनाथ सिंह, प्रफुल्ल सिंह, कृष्णा सोबती को याद किया गया। अरुण कमल, पवन कुमार वर्मा, आलोक धन्वा, तारानंद वियोगी, डाक्टर रामाधार ने अपने संस्मण के साथ ही इन हस्तियों से अपने व्यक्तिगत संबंध की यादें साझा कीं। 
पूर्व राजदूत पवन कुमार वर्मा ने अटल बिहारी बाजपेयी के साथ अपने अनुभव बांटते हुए बताया, जब मैं बाजपेयी के साथ काम कर रहा था तो उन्होंने मुझसे उनकी लिखी कविताओं का अनुवाद करने के लिए कहा था। मैंने इस पर अपनी असहमति जाहिर की थी। मेरा जवाब था, मैं आपके राजनीति जीवन की कविताओं का अनुवाद नहीं करूंगा। हां, अगर आप चाहें तो निजी जीवन पर प्रकाश डाला जा सकता है। अटल की कविताओं ने साहित्य को ऊंचाई दी। साहित्य के लिए बाजपेयी ने अटल शब्द दिए। इस दौरान पवन ने 'ऊंचे बाग पर पेड़ नहीं लगते' आदि कविताओं से अटल बिहारी बाजपेयी को याद किया। 
केदार के शब्द आज की पीढ़ी से दूर 
अलोक धन्वा ने कहा कि मेरा निकट संबध केदारनाथ सिंह से रहा। केदारनाथ कई बार पटना आने पर मेरे घर ही रुके। वे नागार्जुन और शमशेर के बाद की पीढ़ी के कवि थे। एक समय ऐसा भी आया जब लोग कहने लगे थे कि केदारनाथ शमशेर के पदचिन्हों पर चल रहे हैं। उनकी सौंदर्य पर लिखी कविता आज भी प्रासंगिक है। केदार कहते थे कि लंबी कविता न लिखो। छोटी कविताएं भी पूïर्ण मानी जाती हैं। केदार के शब्द आज की पीढ़ी से दूर हैं। 
कृष्णा ने महिला लेखकों के लिए जलाई मशाल 
पद्मश्री ऊषा किरण खान ने कृष्णा सोबती पर विचार दिए। कहा, कृष्णा सोबती के जाने से इस वर्ष की शुरुआत काफी दुखद रही। कृष्णा कहीं गई नहीं हैं। पाठकों के दिलों में रची-बसी हैं। वहीं तारानंद वियोगी ने प्रफुल्ल सिंह 'मौन' को याद करते हुए कहा, प्रफुल्ल ने लोक गीतों को जीवत रखने के लिए लेखन किया। साहित्य के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। उनका योगदान नहीं भूला जा सकता।

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