संप्रदाय अलग अखाड़ा बनाने को आतुर, अगले कुंभ तक करना होगा इंतजार

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RGA News प्रयागराज

किन्‍नर अखाड़े की तर्ज पर अब सखी संप्रदाय भी अलग अखाड़ा बनाने को आतुर है। इसके लोग निर्मोही अखाड़े से मिले तो आश्‍वासन दिया गया कि तैयारी करो हरिद्वार कुंभ में पट्टाभिषेक करेंगे।...

 कुंभनगर : किन्नर अखाड़े की तरह अब सखी संप्रदाय भी अलग अखाड़ा बनाने को आतुर है। अपने बीच में एक सखी को महामंडलेश्वर बनाने की तैयारी भी है। संखी संप्रदाय की काफी सखियां निर्मोही अखाड़े पहुंचीं। शाही स्नान में शामिल होने की इच्छा जाहिर की। उन्होंने कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति का भाव सबके सामने प्रदर्शित किया। अखाड़े के पदाधिकारियों ने कहा कि आप सभी अगले कुंभ तक अपने को तैयार करो। संप्रदाय की सखियों की अगुवाई कर रही कर्णप्रिया दासी को महामंडलेश्वर बनाने का भी आश्वासन दिया गया।

श्रीकृष्ण की सेवा में रमीं सखियां

कुंभ में पर्व में काफी संख्या में सखी संप्रदाय की सखियां भी विचरण कर रही हैं। वैरागी अखाड़े से जुड़ी सखियां अपने व्यक्तित्व पुरुष भाव को भूलकर स्त्री भाव में कृष्ण की सेवा में रहती हैं। शनिवार दोपर बाद इस संप्रदाय से जुड़ी सखियां निर्मोही अखाड़े में पहुंचीं तो उनका साधु-संतों ने माला पहनाकर स्वागत किया। इन सभी ने कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति को प्रदर्शित करते हुए नृत्य भी प्रस्तुत किया। फिर अखाड़े के सचिव श्री महंत राजेंद्र दास के सामने अपनी बात रखी। किन्नर अखाड़े को जूना में शामिल किया गया है। ऐसे में उनको भी अलग से महत्व देकर अखाड़ा अपने में अंगीकार करे।

नियमों का पालन करना होगा : महंत राजेंद्र दास

महंत राजेंद्र दास ने कहा कि अखाड़े की परंपरा में आने के लिए सबको उसके नियमों का पालन करना होगा। उन्होंने कर्ण प्रिया दासी से कहा कि वह तैयारी करें। अगले हरिद्वार कुंभ में आपको महामंडलेश्वर बनाकर शाही स्नान में सम्मिलित करके सम्मान दिया जाएगा।

प्यारे हैं लेकिन कहते प्यारी

सखी संप्रदाय के संत अपना सोलह श्रंृगार नख से लेकर चोटी तक अलंकृत करते हैं। इनमें तिलक लगाने की अलग ही रीति है। रजस्वला के प्रतीक के रूप में स्वयं को तीन दिवस तक अशुद्ध मानते हैं। इस संप्रदाय की सखियों को प्रेमदासी भी कहा जाता है। आठो पहर भगवान की सेवा करती हैं। अखाड़े के श्रीमहंत विजयदास भैयाजी बताते हैं कि सखियां दासी भाव में वैरागी अखाड़ों में विचरण करती हैं। इन्हीं के बीच रहती हैं। जो पुरुष का व्यक्तिव्य भूल कर स्त्री भाव में आता है उसे सखी संप्रदायी में दीक्षा लेनी पड़ती है। यह विरक्त वैष्णव, रामानंदी, विष्णुस्वामी, निंबार्की एवं गौड़ीय संप्रदाय से संबंधित रहती हैं।

निंबार्क मत की शाखा है सखी संप्रदाय

सखी संप्रदाय निंबार्क मत की एक शाखा है जिसकी स्थापना स्वामी हरिदास ने वर्ष 1441 में की थी। इसे हरिदासी संप्रदाय भी कहते हैं। इसमें भक्त अपने आपको श्रीकृष्ण की सखी मानकर उसकी उपासना और सेवा करते हैं। यह स्त्रियों के वेश में रहकर उन्हीं के आचारों व्यवहारों आदि का पालन करते हैं।

साधु समाज करता है पालन

सखी संप्रदाय का भोजन आदि का इंतजाम वैरागी अखाड़े के साधु-संत करते हैं। आम लोगों से कुछ नहीं मांगते हैं। साधु जैसा जीवन व्यतीत करते हैं। निर्मोही अखाड़े के सचिव श्रीमहंत राजेंद्र दास बताते हैं कि कृष्ण को अपने पति के रूप में देखते हैं। राधा को सखी के रूप में मानती हैं।

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