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शनि की पूजा करने का कोई खास विधान नहीं है बस छोटी छोटी बातों का ध्यान रखें। ...
व्रत से होते हैं प्रसन्न
शास्त्रों के मुताबिक शनिदेव सूर्य देव और देवी छाया के पुत्र हैं। इनका जन्म ज्येष्ठ मास की अमावस्या हुआ था। शुद्ध मन से प्रत्येक शनिवार को व्रत रखने से शनि अत्यंत प्रसन्न होते हैं। ऐसा करने वालों पर उनकी कुपित दृष्टि नहीं पड़ती।
शनि का प्रभाव भी खत्म होता
नव ग्रहों में सातवें ग्रह माने जाने वाले शनिदेव से लोग सबसे ज्यादा डरते जरूर हैं लेकिन वह किसी का बुरा नहीं करते हैं। वह लोगों के कर्मों के हिसाब से उनके साथ न्याय करते हैं। शायद इसलिए उन्हें न्यायाधीश के रूप में भी पहचाना जाता है। शनिवार को शनिदेव की पूजा करने से व्यक्ति पर से साढ़ेसाती और ढैया समाप्त हो जाती है। इसके अलावा कुंडली में मौजूद कमजोर शनि का प्रभाव भी खत्म हो जाता है।
ऐसे करें शनि देव की पूजा
शनि जयंती पर प्रात:काल उठकर स्नानादि कर शुद्ध हों। इसके बाद लकड़ी के पाटे पर एक काला कपड़ा बिछाकर उस पर शनिदेव की प्रतिमा रखें। इसके बाद उनके पाटे के सामने के दोनों कोनों में घी का दीपक जलाएं व सुपारी चढ़ाएं। फिर शनिदेव को पंचगव्य, पंचामृत, इत्र से स्नान कराएं। उन पर काले या फिर नीले रंग के फूल चढाएं। इसके बाद उनके गुलाल, सिंदूर, कुमकुम व काजल लगाए। पूजा में तेल में तली वस्तुओं का नैवेद्य समर्पित करें। इस दौरान शनि मंत्र का कम से कम एक माला जप करें।
विशेष लाभ के लिए करें उपाय
इस दिन कुछ खास उपाय भी किए जा सकते हैं। जैसे सूर्योदय से पहले शरीर पर तेल मालिश करने के बाद स्नान करें। इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करने से लाभ होता है। कहीं यात्रा पर नहीं जाना चाहिए। गाय और कुत्तों को तेल में बनी चीजें खिलाने से विशेष लाभ होता है। इस दिन शनि मंदिर में शनिदेव के साथ ही हनुमान जी के दर्शन करना शुभ होता है। शनिदेव की आंखों में नहीं देखना चाहिए और प्रयास करें कि शनिवार को सूर्य देव की पूजा न करें।