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पुलवामा आतंकी हमले में शहीद हुए आगरा के कौशल कुमार रावत की अस्थियां बेटे और भतीजों ने चुनीं। आज भी छाई है कहरई में खामोशी।...
आगरा :- शहीद के श्रद्धा के फूल रविवार सुबह चुन लिये गए। हां बेशक आंखें नम थीं लेकिन दिल में गर्व की अनुभूति थी। जिस पिता की उंगलियां थामे चलना सीखा था आज उसी पिता की अस्थियों को एक कलश में समाहित करने के लिए अभिषेक और विकास के हाथ कांप भी रहे थे। शहीद की चिता की आग भले ही ठंडी हो गई थी लेकिन देश रूपी परिवार में क्रोध की ज्वाला अब भी धधक रही है।
जम्मू कश्मीर के पुलवामा में आतंकी हमले में शहीद हुए कौशल कुमार रावत की अस्थियां उनके बेटों अभिषेक और विकास के साथ भतीजों ने रविवार को चुन लीं। सोमवार को कासगंज के सोरों में अस्थियां विसर्जित की जाएंगी।
ताजगंज क्षेत्र के गांव कहरई में तीन दिन बाद भी गहरी खामोशी छाई है। अपने वीर सपूत को खोने की खामोशी है लेकिन इस खामोशी में गुस्से का गुबार भी शामिल है और गर्व की अनुभूति भी। पिता की चिता को मुखाग्नि देने वाले बेटे अभिषेक का कहना है कि पिता को खोने का दुख हमेशा रहेगा लेकिन जब शहीद का बेटा बुलाया जाएगा उसे गर्व की अनुभूति भी रहेगी।
अंतिम दर्शन को हर आंख रही थी व्याकुल
जिसने देश की खातिर खुद को कुर्बान कर दिया। जिनकी जांबाजी की बुलंदी के आगे हिमालय भी बौना हो गया। गजब की देशभक्ति से जिसने अमरत्व प्राप्त किया। शनिवार को उसी सपूत को सैन्य सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गई थी। सीआरपीएफ की टुकड़ी की राइफलों की गूंज, अमर रहे और भारत माता के जयकारों के बीच शहादत को नमन किया गया।
ताजनगरी के देशभक्तों ने सीआरपीएफ जवान कौशल कुमार की शहादत के सम्मान में पलक-पांवड़े बिछा दिए। हर आंख शहीद के अंतिम दर्शन को व्याकुल थी, तो हर हाथ उन्हें छूने को बेताब। चार किमी की पदयात्रा में जिस रास्ते से शहीद का पार्थिव शरीर गुजरा, काफिला बढ़ता गया। शनिवार तड़के पौने चार बजे सीआरपीएफ अधिकारियों की टुकड़ी शहीद कौशल कुमार का पार्थिव शरीर लेकर गांव कहरई पहुंची तो कोहराम मच गया। चार बजे से ही गांव में अंतिम दर्शन को लोग पहुंचने लगे। सात बजते-बजते भीड़ हजारों की संख्या में पहुंच गई। घर के बाहर ही एक मैदान में तिरंगे में लिपटा शहीद का पार्थिव शरीर लोगों के अंतिम दर्शन को रखा गया। साढ़े आठ बजे जिलाधिकारी एनजी रविकुमार ने पहुंचकर श्रद्धांजलि दी। सरकार की ओर से कैबिनेट मंत्री प्रोफेसर एसपी सिंह बघेल ने श्रद्धांजलि दी।
सवा नौ बजे फूलों से सजे वाहन में पार्थिव शरीर रख गांव की परिक्रमा की गई। जिस गली से शहीद का रथ गुजरा, ग्र्रामीणों के पैर खुद-ब-खुद पद यात्रा का हिस्सा बन गए। करीब दो घंटे तक चली पदयात्रा में गगनभेदी नारों से पूरा गांव गूंजता रहा। करीब चार किमी तक पदयात्रा घूमकर अंत्येष्टि स्थल पहुंची। हजारों लोग पदयात्रा के साथ थे, तो इतने ही पहले से अंत्येष्टि स्थल पर पार्थिव शरीर का इंतजार कर रहे थे।
अंत्येष्टि स्थल पर सीआरपीएफ के डीआइजी आरसी मीणा, कमांडेंट किशोर कुमार, डिप्टी कमांडेंट संतरा देवी, असिस्टेंट कमांडेट विक्रांत की अगुआई में सीआरपीएफ के जवानों ने मातमी धुन के बीच शहीद को अंतिम सलामी दी। करीब पौने 12 बजे शहीद के बड़े बेटे अभिषेक ने मुखाग्नि दी, तो 'कौशल कुमार अमर रहे' के नारे-गूंजते रहे।
इस रात की सुबह नहीं
कहरई के लाल कौशल की शहादत ने एक मां की कोख उजाड़ दी। पत्नी का सिंदूर मिटाने के साथ ही बच्चों के सिर से पिता का साया उठ गया। उनके पास कुछ रह गया है तो कौशल से जुड़ी यादें। परिवार के सामने असमय उपजे अंधकार ने अनुत्तरित सवाल खड़ा कर दिया कि इस रात की सुबह कब होगी।
पिता गीताराम और भाई कमल कुमार अहम मसलों में कौशल कुमार से ही मशविरा करते थे। पारिवारिक मामलों में कौशल की राय ही आखिरी मानी जाती थी। कई बार ऐसा भी हुआ कि पिता और भाई को अहम मसलों पर फैसला लेने के लिए उनके छुट्टी पर घर का इंतजार तक करना पड़ा। वह कहरई और गुरुग्राम में रहने वाले पत्नी ममता और बच्चों दोनों परिवारों की जिम्मेदारी उठा रहे थे। छोटे बेटे के भविष्य को लेकर प्लानिंग चल रही थी।
शनिवार भोर को शहीद का पार्थिव शरीर घर पहुंचा तो पत्नी इसी बात को लेकर बिलख रही थी। अब परिवार का मार्गदर्शन कौन करेगा। पार्थिव शरीर के साथ पहुंचे बेटे अभिषेक को देखते ही मां ममता उससे लिपटकर रोने लगी। मां को चुप कराने की कोशिश में बेटा भी रोने लगा। मगर, अगले ही पल उसे अपने बड़े होने की जिम्मेदारी का अहसास हुआ और मां के साथ छोटे भाई बहन को चुप कराने की कोशिश करने लगा।