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'हमारा सब जल गया, करने वाला हम अकेला आदमी है, अब हम क्या करेगा…' ये कहते-कहते शब्द रामचंद्र पंडित के गले में ही अटक गए और आँखों से आंसू टपकने लगे।
उनकी बात पूरी करते हुए सद्दाम ने बताया, "ये अपने घर में कमाने वाले अकेले आदमी हैं। दुकान ही पूरे परिवार का सहारा थी. जब से दुकान फुंकी है पूरा दिन रो-रोकर गुज़रता है. इधर-उधर सिर पकड़कर बैठे रहते हैं।
पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता से नेशनल हाइवे नंबर-19 (साल 2010 से पहले तक ग्रांड ट्रंक रोड का ये हिस्सा राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 2 था) पर दिल्ली की ओर क़रीब दो सौ किलोमीटर चलने पर एक सड़क बाएं मुड़ते ही रानीगंज पहुंचती है।
यहां भगवा झंडे लहरा रहे हैं. जैसे-जैसे सड़क रानीगंज की ओर बढ़ती है, सड़क को सजाने के लिए लगाए गए भगवा झंडों की संख्या भी बढ़ने लगती है।
तनाव में डूबा शहर
पहली नज़र में यहां सबकुछ सामान्य लगता है, सिवाए पुलिस बल की भारी मौजूदगी के।
घरों, चौराहों और सड़कों पर लहरा रहे भगवा झंडे बताते हैं मानो शहर भगवान राम के जन्म के जश्न में डूबा हो, लेकिन वास्तव में ये शहर अब तनाव में डूबा है।
रामनवमी का जश्न यहां दंगे का दाग़ दे गया। जुलूस निकाले जाने के दौरान हुई कहानसुनी आगज़नी में बदल गई और शहर सुलग गया।
कौन मदद करेगा...
रामचंद्र पंडित की दुकान के बगल में ही भगवान दास की दुकान है। कुछ दिन पहले तक उनकी दुकान हटिया बाज़ार की शान थी।
उन्होंने दुकान में काम करवाया था और लाखों रुपए का माल भरा था। अब यहां जले हुए फ़र्नीचर, टूटे हुए प्लास्टर और राख हो गई उम्मीदों के अलावा कुछ नहीं है।
भगवान दास कहते हैं, "हमारी टंगड़ी-हाथ सब टूट गया, अब तो खड़ा होने में ही छह-सात साल लग जाएंगे. कौन मदद करेगा हमारी, सरकार देगी पैसा? मज़ा लेने वाला मज़ा लेकर चला गया, दुकान वाला फंस गया. हमने तो दंगा किया नहीं, लेकिन हम सबकी दुकानें जल गईं।
भगवान दास जब अपनी व्यथा कह रहे थे तो पास ही खड़े नदीम ख़ान की आंखों में पानी भर रहा था. उनकी सौ साल से अधिक पुरानी पुश्तैनी दुकान भी दंगों की भेंट चढ़ गई।
नदीम कहते हैं, "पूरी दुकान जल गई है. कुछ नहीं बचा है, सब राख हो गया है, दो दिन से राख उठा रहे हैं, देख रहे हैं न पूरा हाथ काला हो गया है राख उठाते-उठाते।
सबसे ज़्यादा नुक़सान
रानीगंज के शायर रौनक नईम के बेटों की दुकानें भी दंगाइयों का निशाना बनीं।
उनके बेटे कहते हैं, "मेरी दुकान रौनक वॉच और मेरे भाई की दुकान रौनक कलेक्शन को लूट लिया गया। हमने कभी किसी हिंदू भाई को नुक़सान नहीं पहुंचाया, लेकिन हमारे साथ ऐसा हुआ. सिर्फ़ मुसलमानों का ही नुक़सान नहीं हुआ है, हिंदुओं का भी बराबर नुक़सान हुआ है।
हटिया बाज़ार की अधिकतर दुकानें जल गई हैं। सबसे ज़्यादा नुक़सान छोटे कारोबारियों का हुआ है जो पटरी पर दुकानें लगाते थे. सबसे बड़ी चोट इन्हीं को लगी है।
पटरी पर दुकान लगाने वाले एक युवा कहते हैं, "100-200 रुपए रोज़ कमाते थे। चार-चार, पांच-पांच बच्चों का पेट उसी से पल रहा था। उसे ही ख़त्म कर दोगे तो आदमी क्या खाएगा, कहां जाएगा?"
ये युवा अपनी बात पूरी कर पाता इससे पहली ही एक और दुकानदार विनोद कुमार बोल पड़े, "ई बैठा रहेगा, इसकी थाली में भात नहीं रहेगा तो हमारी थाली में भात रहेगा क्या? इसकी दुकान जल गई है इसलिए हम लोग भी दुकान बंद कर दिए।
दोनों की ग़लती है...
सद्दाम हुसैन विनोद कुमार को गले लगा लेते हैं.
विनोद कहते हैं, "हम लोग भाई-भाई हैं, अलग नहीं हैं। सब करके खाते हैं। हम किसी के बहकाए में नहीं आएंगे. कुछ लड़के ऐसे हैं जिन्होंने बहकावे में आकर ये काम कर दिया, लेकिन एक दिन उनको भी समझ आ जाएगी। उन्हें एहसास हो जाएगा, कितना भी कर लो, लेकिन पानी से पानी कभी अलग नहीं हो सकता।
हटिया बाज़ार से कुछ दूर शहर के एक दूसरे इलाक़े मज़ार रोड पर रानीगंज के बड़े कारोबारी विनोद सर्राफ़ की थोक की दुकान है। उस दिन दंगाइयों ने उनकी दुकान भी लूट ली।
विनोद कहते हैं, "मैं छत से सब देख रहा था. सैकड़ों लोग थे. उनके हाथों में लोहे की पाइप थी. लगातार पुलिस को फ़ोन कर रहा था, मैं थाने भी गया, लेकिन कोई मदद नहीं मिली. बगल में मेरे चाचा के बेटे की दुकान को भी आग लगा दी, उसने फ़ायर ब्रिगेड फ़ोन किया तो जवाब मिला हमारे पास कोई गाड़ी नहीं है."
विनोद कहते हैं, "जो हुआ है उसमें दोनों की ग़लती है. जुलूस को मस्जिद को सामने से क्यों निकाला गया जब पता था कि इससे तनाव हो सकता है, ऐसा करने की क्या ज़रूरत थी?"
अचानक पथराव शुरू हो गया...
इस दंगे में विनोद को क़रीब चार-पांच लाख रुपए का नुक़सान हुआ है, लेकिन उन्हें चिंता शहर के उन छोटे कारोबारियों की ज़्यादा है जिनका सबकुछ स्वाहा हो गया.
वो कहते हैं, "हम तो फिर भी नुक़सान झेल लेंगे, लेकिन छोटे कारोबारियों का क्या? जो आर्थिक नुक़सान हुआ उसकी भरपाई तो हो जाएगी, लेकिन भाई-भाई के बीच जो फ़ासला बढ़ गया वो कैसे मिटेगा।
स्थानीय पार्षद कहते हैं, "जहां घटना घटी वहां हम सुबह से ही थे। जुलूस का एक हिस्सा निकल चुका था, लेकिन दूसरे हिस्से में कुछ ऐसे नारे लगाए जा रहे और गाने बजाए जा रहे थे जिनका वहां के लोगों ने विरोध किया।
"ये नारे और गाने सीधे दूसरे धर्म को निशाना बना रहे थे। उसी बाताबाती में अचानक पथराव शुरू हो गया जिसने पूरे शहर को लपेट में ले लिया।
सांप्रदायिक तनाव
जो भी समाजी लोग वहां मौजूद थे उन्होंने काफ़ी देर तक हालात काबू में करने की कोशिश की, लेकिन पुलिस बल डेढ़ से दो घंटे तक मौके पर नहीं पहुंच पाए। ये मामला पूरे शहर में अफ़वाह की तरह फैल गया और बाकी जगह भी हिंसा होने लगी।
"यदि पुलिस समय पर पहुंच जाती और हालात को वहीं नियंत्रित कर लेती तो इतना भयावह दिन रानीगंज को नहीं देखना पड़ता।
पश्चिम बंगाल की धरती पर...
इससे पहले कभी सांप्रदायिक शब्द तक रिपोर्टों में नहीं लिखा जाता था। ये पहली बार है जब पश्चिम बंगाल की इस धरती पर ये सब हो रहा है. ये दुखद है. ये सिर्फ इस नगर या क्षेत्र के लिए ही नहीं बल्कि पूरे देश के लिए दुखद है।
रानीगंज बंगाल के बड़े ओद्योगिक क्षेत्र आसनसोल के क़रीब बसा क़रीब सवा लाख की आबादी का एक क़स्बा है जहां अधिकतर आबादी मिश्रित है। यहां दूसरे राज्यों से आए लोगों की भी बड़ी तादाद है।
यहां"भारत की पहली कोयला खदान रानीगंज में ही शुरू हुई थी। यहां भारत के अलग-अलग हिस्सों से आकर लोग बसे और इसलिए ही इसे मिनी इंडिया भी कहा जाता है. गंगा-जमुनी तहज़ीब यहां की ख़ास पहचान रही है। हम कभी सोच भी नहीं सकते थे कि रानीगंज में भी सांप्रदायिक तनाव हो जाएगा।
यहां के आम लोग, व्यापारी, समाजसेवी और स्थानीय नेता दंगों की दो बड़ी वजहें बताते हैं।
प्रशासन की ज़िम्मेदारी
पहली रामनवमी के जुलूस में उत्तेजक नारेबाज़ी और दूसरी पुलिस की स्थिति को भांपने और संभालने में पूरी तरह नाकामी।
रानीगंज चैंबर ऑफ़ कॉमर्स के अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद खेतान कहते हैं, "दंगे न हों ये प्रशासन की ज़िम्मेदारी है. रामनवमी के जुलूस को लेकर ये दंगा हुआ। पिछले चार-पांच सालों से रामनवमी के मौके पर इतनी ही बड़ी धार्मिक यात्राएं निकल रही हैं।
"सभी को पता था कि दस-पंद्रह हज़ार लोग रहेंगे। उन्हें काबू में रखने के लिए, अनहोनी की स्थिति में व्यवस्था को संभालने के लिए सबसे पहली ज़िम्मेदारी तो प्रशासन की है। "सरकार का ख़ुफ़िया तंत्र स्थिति पर नज़र रखने का काम करता है और उसी आधार पर स्थानीय प्रशासन व्यवस्था करता है. ज़रूरत पड़ने पर बल तैनात किए जाते हैं। अगर व्यवस्था ही नहीं होगी तो स्थिति कैसे संभलेगी?"
लोगों के दिल टूट गए हैं...
"26 मार्च को दंगा हुआ. अभी तक बाज़ार सामान्य नहीं हो पाया है. करोड़ों रुपए का नुक़सान हुआ है. लेकिन अभी हम पूरा आकलन नहीं कर पाए हैं. सबसे ज़्यादा नुक़सान ये है कि लोगों के दिल टूट गए हैं, हमारे शहर की गंगा-जमुनी तहज़ीब है उसे नुक़सान हुआ है।
"आपस के रिश्ते दरक रहे हैं हमें उनकी चिंता ज़्यादा है। दंगाई आग लगाकर चले जाते हैं और हमारे शहर के लोग अपने घावों को चाटते रहते हैं। हमें इस बात की तकलीफ़ ज़्यादा है।
शनिवार को पश्चिम बंगाल के राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी ने हिंसा प्रभावित आसनसोल और रानीगंज का दौरा किया।
स्थानीय पुलिस अधिकारी टायर की एक जली हुई दुकान दिखाते हुए राज्यपाल को बता रहे थे, "जुलूस उत्तेजक हो गया था। डीजे और नारेबाज़ी के चलते तनाव हुआ और लोग आमने सामने आ गए।
मंदिर पर लहरा रहा भगवा झंडा
आईपीएस अधिकारी शायक दास राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी को स्थिति समझा ही रहे थे कि रानीगंज के एक वयोवृद्ध पत्रकार ने अपना कार्ड राज्यपाल के हाथ में थमा दिया।
राज्यपाल ने जब पूछा कि क्या हुआ तो उन्होंने जवाब दिया, "जो नहीं होना चाहिए था वो हो गया। हमने कभी ऐसा नहीं देखा था। आपस में दरार पड़ गई है. जो भाई मिल-जुलकर रहते थे उनमें दरार पड़ गई है।
पत्रकार राज्यपाल को सबसे ज़्यादा प्रभावित हटिया बाज़ार ले जाना चाहते थे, लेकिन स्थानीय पुलिस ने कहा कि आगे गाड़ी नहीं जा सकती है।
राज्यपाल हटिया बाज़ार की हालत नहीं देख सके, लेकिन बाज़ार के कोने पर स्थित मंदिर पर लहरा रहा भगवा झंडा और पास ही की मस्जिद की मीनार हटिया बाज़ार को देख रही हैं। ठीक वैसे ही जैसे रानीगंज के लोग एक दूसरे का चेहरा देख रहे हैं। मानो पूछ रहे हों कि ये रानीगंज को क्या हो गया है?